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25 Aug 2019 · 1 min read

मैं बादल का पांव धरूंगी

उसने बादल को भेजा था

आंगन मेरा तर कर जाने को

मैं सूरज का पांव धरूंगी

बादल की छाया हटाने को।

मन तो यूँ ही भींगा है

आंखों का पानी ही काफी है

तन की दीवार भिंगाने को

मैं बादल का क्या करूंगी

तन मन दोनों गीला-गीला है।

सूखा पड़ा था चहु ओर सखी री

अबके सावन कुछ यूँ आया है

अपने संग जाने कितने बादल

कितनी बूंदों का त्राहि लाया है,

सब कुछ पानी में बहाने को ।

उस पर प्रीतम का बादल,

अलग ही रूप रंग में आया है

सोचो रहेगा क्या बचाने को…?

मैं तो अब पवन का पावं धरूंगी

बादल को उड़ा ले जाने को

जिस आंगन में सूखा पड़ा है

जिन खेतों में दरार फटा है

जम के वहां बुँदे बरसाने को

मैं बादल का पांव धरूंगी

मेरी गली से जाने को…

…सिद्धार्थ

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