मुक्तक
डोर उम्मीदों की छूटी हर मेहनत बेकार हुई,
मेरे जीवन की पीड़ा अब दोधारी तलवार हुई,
मुद्दत से ख़ामोश थे लब सन्नाटा था ज़हन में पर
एक अजब सी तन्हाई, महसूस मुझे इस बार हुई…
डोर उम्मीदों की छूटी हर मेहनत बेकार हुई,
मेरे जीवन की पीड़ा अब दोधारी तलवार हुई,
मुद्दत से ख़ामोश थे लब सन्नाटा था ज़हन में पर
एक अजब सी तन्हाई, महसूस मुझे इस बार हुई…