आज़ाद गज़ल
रिश्ते भी अब रिसने लगें हैं
गैर मुझे सब दिखने लगें हैं ।
कल तक था जो मन मुटाव
बन के नासूर टिसने लगें हैं ।
सच्चाई, ईमानदारी, तहजीब
धीरे-धीरे सब घिसने लगें हैं ।
बेहयाई ,बेईमानी,भ्रश्टाचारी
लंबे समय तक टिकने लगें हैं ।
हालात और हसरत के बीच
इंसानियत अब पिसने लगें हैं ।
-अजय प्रसाद