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16 May 2019 · 1 min read

जिन्दगी बहती सी झरना

दिनांक 16/5/19

जिंदगी है
झरने सी
कभी बहती
कभी रुकी सी

इन्सान है
कठपुतली
उस मौला की
कभी बोलती
कभी मौन

बहता झरना
है सुखदायी
इन्सान ने
प्रदुषित किए
नदी ताल

है कैसी
विडम्बना
लाज लज्जा
सूख गयी
इन्सान ने
चूस लिया
झरने का पानी

बहता झरना
मन भाए
आँखो में
ये समाए
शीतलता और
सुकून बरसाए

बहने दो
झरनों को
उन्मुक्त
पर्यावरण हो
साफ स्वच्छ
है यही आज
उपयुक्त

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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