Sahityapedia
Sign in
Home
Your Posts
QuoteWriter
Account
13 May 2019 · 1 min read

तुम चले आओ

ग़ज़ल
******
जरा सा देने मुझे मान तुम चले आओ
करो ये आखिरी अहसान तुम चले आओ

है इंतज़ार निगाहों को बस तुम्हारा ही
न मानती हैं ये नादान तुम चले आओ

सदा जो गूँजती रहती है मेरे कानों में
सुनाने मीठी वही तान तुम चले आओ

तुम्हारी याद में रो रो के दिन गुजारे हैं
खिलाने चेहरे पे मुस्कान तुम चले आओ

धड़कना ही नहीं चाहे ये दिल तुम्हारे बिन
निकल न जाये कहीं जान तुम चले आओ

की जब भी ‘अर्चना’ मैंने तुम्हें ही माँगा है
अधूरा है अभी अरमान तुम चले आओ

12-05-2019
डॉ अर्चना गुप्ता
मुरादाबाद

Loading...