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11 May 2019 · 1 min read

भागती दौड़ती जिंदगी

दिनांक 11/5/19

है कैसी विडम्बना
जिन्दगी की
न कभी चैन न आराम
घिरा रहता है आदमी
जिन्दगीभर जिम्मेदारियों से

है हर प्राणी का
दायित्व करे
पालन पोषण
परिवार का

भागते दौड़ते
उम्र गुजर जाती है
बुढ़ापे में बस सुकून
चाहता है इन्सान

अगर नकारा
निकल जाए औलाद
टीस उठती रहती है
जिन्दगी में ताउम्र

रखें अपने
कंधे मजबूत
हिम्मत न छोड़े
वरिष्ठ जन
गर न मिले साथ
किसी का
अकेले ही चलें
राह जिन्दगी की
नहीं हो कोई
ऐसे हालात
समझदारी से
निपट जाए
जीवन की
जिम्मेदारी सारी

स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल

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