मुक्तक
उम्र भर रहिये उगाते आप गमले में गु़रूर।
हम बहुत खुश हैं जड़ों में और बीजों में हुज़ू़र।
कुर्सियों की रोशनी में कुछ नज़र आता नहीं
है सियासी सहसवारों का नहीं कोई क़सूर।
उम्र भर रहिये उगाते आप गमले में गु़रूर।
हम बहुत खुश हैं जड़ों में और बीजों में हुज़ू़र।
कुर्सियों की रोशनी में कुछ नज़र आता नहीं
है सियासी सहसवारों का नहीं कोई क़सूर।