मुक्तक
आज़ादी मिल गई, ग़रीबी किन्तु नहीं मिट पाई,
जन जीवन को निगल रही है मौत बनी महंगाई।
‘रामराज’ का नहीं आज तो ‘काम-राज’ का युग है
पद-लोलुपता ही सबके है दिल में आज समाई।
आज़ादी मिल गई, ग़रीबी किन्तु नहीं मिट पाई,
जन जीवन को निगल रही है मौत बनी महंगाई।
‘रामराज’ का नहीं आज तो ‘काम-राज’ का युग है
पद-लोलुपता ही सबके है दिल में आज समाई।