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3 Mar 2019 · 1 min read

बसंत

बसंत

प्रकृति नवोढ़ा बदल रही है,
पहन रही परिधान नया।
नित्य दिवाकर की किरणों से,
होता सुखद विहान नया।

तरु शिखरों पर खिली मंजरी,
भ्रमर भ्रमर मदमाये है।
पुष्पों के नव रंग निराले,
मोहक गंध समाये हैं।
शुक पिक कोयल झूम झूम कर,
गाते हरदिन गान नया।
प्रकृति नवोढ़ा बदल रही है,
पहन रही परिधान नया।।

गिरि गव्हर वन सरिता तट सब,
नव रोचक व्यवहार करें।
खिले कमल पाटल सर्षप नव,
पीड़ा का प्रतिकार करें।
निर्मल नभ से वायु भूमि पर,
नवता सह प्रस्थान करें।
प्रकृति नवोढ़ा बदल रही है,
पहन रही परिधान नया।।

शीत ताप से रहित सुखद ऋतु,
श्रृंगारित ऋतुराज हुऐ।
फिर अनंग ने चाप चढा ली,
हृदय शिथिल रति काज हुऐ।
प्रेम उदित हो हृदय सदन में,
छेड़ रहा अभियान नया।
प्रकृति नवोढ़ा बदल रही है,
पहन रही परिधान नया।।

अंकित शर्मा ‘इषुप्रिय’
रामपुर कलाँ, सबलगढ़(म.प्र.)
मो.- 9516113124

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