मुक्तक
“ज़िन्दगी तू दुख में मुझ को यूँ लगी
जिस तरह पंछी परों से हीन हो,
किसी पर बेवज़ह उँगली उठे
क्यों किसी की बेवज़ह तौहीन हो “
“ज़िन्दगी तू दुख में मुझ को यूँ लगी
जिस तरह पंछी परों से हीन हो,
किसी पर बेवज़ह उँगली उठे
क्यों किसी की बेवज़ह तौहीन हो “