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1 Feb 2019 · 1 min read

यादें

तुम को छूकर जो हवा आती है
अक्सर मेरी दहलीज पर ठहर जाती है
पैगाम है कहीं से खास दुआओं का
सहलाकर यूं मेरे मन को चली जाती है
रंग खिलते रहें बदलते मौसम में सनम
यूं उम्मीद मेरे मन को छली जाती है
वक्त की रेत को हम कैसे सरकने देते
तेरी यादों की ओस से जमी जाती है
आओ तो कभी बैठकर दामन भर लूं
मद्विम सी जो लौ है दिये की जली जाती है
तूम हो अगर यादों मे भी तो कट जाएंगी राहें
ऐसे तो ये अक्सर संयम सी भटक जाती है।

ममता महेश

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