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21 Jan 2019 · 1 min read

कहाँ गए वो दिन

उफ ये कारी बदरिया….
ऐसे मुझको क्यूँ रिझाए।
देख इसे क्यूँ बार बार मुझे….
अपना कोई याद आए।
झांकना भी चाहे मन….
यादों के झरोखों में।
बह गये वो प्यारे से दिन ….
क्यूँ बेदर्द हवा के झोंकों में।
आ गयी ओ काली घटा….
तेरे पीछे पीछे मैं अकेली यहां।
तू ही बता दे वो मेरे….
मीठे दिन गये अब कहाँ।
न तो जीते ही बनता है अब ….
और न मौत ही है आती।
जिन्दगी मेरी रह गयी है….
दोनों के बीच डूबती उतराती।
न किसी का साथ मांगू अब….
अकेलापन ही मुझे अब रास आए।
छिपती फिरती हूँ जमाने से अपना….
चेहरा ही क्या अपना वजूद भी छिपाए।

रंजना माथुर
अजमेर (राजस्थान )
(मेरी स्व रचित व मौलिक रचना)
©

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