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20 Jan 2019 · 1 min read

सभी बहला रहे हैं

हमें अब ये सभी बहला रहे हैं
कई तो अब कसम भी खा रहे हैं

उलझती जा रही अब ये सियासत
अभी से ज़ाल फेंके जा रहे हैं

चलो अब ये शहर वीरान होगा
यहाँ मातम मनाये जा रहे हैं

दिखा जब उस तरफ़ जोे फ़ायदा तो
हमारी सब वफ़ा झुठला रहे हैं

इधर भी तो धुआँ उठने लगा है
उधर के घर जलाये जा रहे हैं

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