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19 Jan 2019 · 1 min read

विघटन

अधरों पर मुस्कान सजाए ,दिल में सौ तूफान लिए
लो चली आज अबला नारी ,फिर जीने का सामान लिए।

अरमानों की चिता जलाकर, होम किए सपने सारे
झुकी हुई नजरों से देखो ,टूट रहे अगनित तारे।
टूट रहा संयम लेकिन ,उम्मीदों का संज्ञान लिए
लो चली आज अबला नारी फिर ,जीने का सामान लिए।

अभयस्त अडिग कदमो से है ये ,आज भी तूफाँ झेलेगी
सांसों से बोझिल मन पर, उम्मीद नयी कोई सी लेगी।
निशब्द रही अधरों से मगर ,कर्मोँ का वरदान लिए
लो चली आज अबला नारी फिर जीने का सामान लिए।।

ममता महेश

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