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6 Jan 2019 · 1 min read

गीतिका

समरांगन सा है यह जीवन ,करो इसे स्वीकार।
कभी विजय का वरण यहाँ है,और कभी है हार।।1

माता-पिता सोचते बैठे,हुए आज कंगाल,
बँटवारे में खड़ी हुई जब,आँगन में दीवार।।2

सदाचार नैतिकता का अब,कौन पढ़ाए पाठ,
मूली अपने पत्तों का ही,उठा न पाए भार।।3

तंबू में वर्षों से रहते, आए हैं प्रभु राम,
नहीं यत्न मंदिर हित करती, कोई भी सरकार।।4

यदि इच्छा यह उर में पलती,हो समाज उत्थान,
अच्छी बातों को अपनाएँ,मिलकर करें प्रसार।।5

बाबा मुल्ला और पादरी,करें कलंकित धर्म,
विषय वासना में ये डूबे,करते हैं व्यभिचार।।6

दिये देश ने जिन्हें सदा ही,बड़े-बड़े सम्मान,
देश विरोधी गतिविधियों के,वही बने सरदार।।7
डाॅ बिपिन पाण्डेय

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