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24 Dec 2018 · 1 min read

अजब है।

जनता अजब है
नेता गजब हैं
जो शरीफ है चुप है
जो बदमाश है
उन्हें माइक देते है

तरह-तरह के हंगामे है
शोर है सरगर्मी है
यहाँ शोक ही उत्सव है
दुश्मन बने चहेते हैं

है बहुत चेहरे
उससे ज्यादा आईने हैं

दल बदलते रूप बदलते
मानो हर एक बहरूपिया हो

अस्ताचल हो तो
फैलता अंधेरा है
चमकता सूरज हो तो
ये जलती दोपहरी हैं

दुपहरी में गले मिलते और रात में
इसकी-उसकी-अपनी
गर्दन रेत देते है
जनता अजब है
नेता गजब है

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