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20 Nov 2018 · 1 min read

आश्रयहीन अभिलाषाएं

शेष नही कही समर्पण है ।
मन कोने में टूटा दर्पण है ।
आश्रयहीन अभिलाषाएं ,
अश्रु नीर नैनो से अर्पण है ।

…विवेक दुबे”निश्चल”@.

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