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10 Nov 2018 · 1 min read

सिर्फ तेरी मुस्कान को मैं लिखता रहा ...

बैठ के सुबह शाम को,मैं लिखता रहा ,
ख़त एक अन्जान को मैं लिखता रहा .

नीद कम आंख नम होने लगी ,
फिर भी ख्याल गुमनाम को मैं लिखता रहा ….

और भी शै हैं मैंने जाना नही,
सिर्फ तेरी मुस्कान को मैं लिखता रहा …

जब जब तुमको देखा सोचा किया ,
एक नज़्म तेरे सलाम को मैं लिखता रहा …

हाले दिल तो कुछ तुमसे कह ना सका ,
ख़त में अपनी जुबान को मैं लिखता रहा …

लाश में मेरी जिन्दा तू रह गयी,
बात ये रोज़,शमशान को मैं लिखता रहा …

अंजाम मोहब्बत का नज़र आ रहा ,
जाने क्यों मौत के सामान को मैं लिखता रहा ….!!!

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