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4 Nov 2018 · 1 min read

जीवन का पहला अक्षर 'माँ'

कौन कहता है कि अक्षरें, ‘अ’ से शुरू होती हैं
मेरे जीवन का पहला अक्षर तो, ‘माँ’ से शुरू होती हैं

माँ वो जिसने मुझे अपने, खून से सजाया
अभिमन्यु की तरह अनेक बातें, गर्भ में ही सिखाया

एक-एक कतरा दूध का उनके, अमृत सा बना मेरा
खुद सोई वो धूप में और साया, हरदम बना मेरा

उनके रहते बदनज़र, क्या छू सकता है मुझे कभी
आशीर्वाद मेरी माँ का तो, दवा भी है – दुआ भी

इक बूँद आँसू पर मेरे, खिलौने वो हजार लाये
मैं कह दूँ तो आसमान के, तारे भी उतार लाये

और क्या-क्या मैं बयाँ करू, मेरी माँ मेरी क्या है
मुहब्बत माँ का तो आँकना भी, सच में गुनाह है।

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