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1 Nov 2018 · 1 min read

जननी (माँ)

जननी (माँ)
हिलती नींव, बिखरता रिश्ता
जबसे तात, तुम हुए फरिश्ता
दरकती शाख, फुनगी पे आँख
मर्माहत मूल, ये कैसी भूल
देख के मौका, बिलग हुआ चौका
खेतों के मेड़, किए उलटफेर
ये गाछ,झाड़-झंखाड़, किए दिलों में दरार
तिकड़म और तकरार, आँगन में उठती दीवार
कुहकती कोख,भाग्य-भर संतोख
अतीत की परछाई, धुंध-सी छाई
अविरल अश्रुधारा, संतति संग बेसहारा
लहराती टहनियाँ, एकांकी दुनिया
विलुप्त हुए घाम, जिन्दगी की शाम
घना कुहरा, कालिमा का पहरा
पलभर शेष रात्रि,बोझ भई धात्री
हृदय में छाले, किये दो निबाले
सम्पदा के वारिस, रिश्ते हुए खारिज
बनके मीर,खींचे लकीर
विभाजित जागीर, सुसुप्त जमीर
अचल है धरणी, कैसे बँटे जननी?

-©नवल किशोर सिंह
तिरुचिरापल्ली (तमिलनाडु)

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