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12 Oct 2018 · 2 min read

दुश्मन जो भाषा समझे उसमे बात करे --आर के रस्तोगी

अंधों को दर्पण दिखाना क्या
बहरों को भजन सुनाना क्या,

जो रक्त पान करते उनको,
गंगा का जल पिलाना क्या,

हमने जिनको दो आँखे दीं,
वो हमको आँख दिखा बैठे,

हम शांति यज्ञ में लगे रहे,
वो श्वेत कबूतर खा बैठे,

वो छल पे छल करता आया,
हम अड़े रहे विश्वासों पर,

कितने समझौते थोप दिए,
हमने बेटों की लाशों पर,

अब लाशें भी यह बोल उठीं,
मत अंतर्मन पर घात करो,

दुश्मन जो भाषा समझ सके,
अब उस भाषा में बात करो,

वो झाडी है,हम बरगद हैं,
वो है बबूल हम चन्दन हैं,

वो है जमात गीदड़ वाली,है
हम सिंहों का अभिनन्दन हैं,

ऐ पाक तुम्हारी धमकी से,
ये धरा नही डरने वाली, है

यह अमर सनातन माटी है,
ये कभी नही मरने वाली है

तुम भूल गए सन 48 को
तुम पैदा होते ही अकड़े थे,

हम उन कबायली बकरों
की गर्दन हाथों से पकडे थे,

तुम भूल गए सन पैसठ को
तुमने पंगा कर डाला था

छोटे से लाल बहादुर ने
तुमको नंगा कर डाला था

तुम भूले सन इकहत्तर को
जब तुम ढाका पर ऐंठे थे

नब्बे हजार पाकिस्तानी
घुटनो के बल पर बैठे थे

तुम भूल गए करगिल का रण
हिमगिरि पर लिखी कहानी थी

इस्लामाबादी गुंडों को जब
बेटा याद दिलाई नानी थी

तुम सारी दुर्गति भूल गए,
फिर से बवाल कर बैठे हो,

है उत्तर खुद के पास नही
हमसे सवाल कर बैठे हो,

बिगड़ैल किसी बच्चे जैसे
आलाप तुम्हारे लगते हैं

तुम भूल गए हो रिश्ते में
हम बाप तुम्हारे लगते हैं,

बेटा पिटने का आदी है,
बेटा पक्का जेहादी है,

शायद बेटे की किस्मत में,
बर्बादी ही बर्बादी है,

तेरी बर्बादी में खुद को,
बर्बाद नही होने देंगे,

हम भारत माँ के सीने पर
जेहाद नही होने देंगे,

तू रख हथियार उधारी के,
हम अपने दम से लड़ लेंगे
,
गर एटम बम से लड़ना हो
तो एटम बम से लड़ लेंगे,

जब तक तू बटन दबायेगा,
हम पृथ्वी नाग चला देंगे,

तू जब तक दिल्ली ढूंढेगा,
हम पूरा पाक जला देंगे,

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