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28 Sep 2018 · 1 min read

मेरे जिंदगी की चाहत..!..

मेरे जिंदगी की चाहत, पल भर जरा ठहर।
अभी तो कदम बढ़े है, आगे कारवां जुड़ेगा।।
मेरे जिंदगी की चाहत..!..

बसे प्रेम की वो दुनिया, सपनो का वो महल,
अभी तो है पंख निकले, आगे आसमाँ मिलेगा,

मेरे जिंदगी की चाहत, पल भर जरा ठहर।
अभी तो कदम बढ़े है, आगे कारवां जुड़ेगा।।
मेरे जिंदगी की चाहत..!..

न तो फिक्र बारिसों की, ना डर हो आंधियो का,
चल कोई बसर को ढूँढें, घटा ठंडी वादियों का,

परवान भी चढेंगे, यूँ अरमानो के चमन में,
अभी तो कली है फूटी, आगे गुलसिता खिलेगा,

मेरे जिंदगी की चाहत, पल भर जरा ठहर।
अभी तो कदम बढ़े है, आगे कारवां जुड़ेगा।।
मेरे जिंदगी की चाहत..!..

जब भी पकड़ हो ढीली, जीवन की डोर पे,
तू जोड़ देना आकर, साँसे अपनी ओर से,

बन के तू मेरा हमदम, मेरे जीने का सहारा,
अभी तो जगी है धड़कन, आगे दिलबरा मिलेगा,

मेरे जिंदगी की चाहत, पल भर जरा ठहर।
अभी तो कदम बढ़े है, आगे कारवां जुड़ेगा।।
मेरे जिंदगी की चाहत..!..

तेरे रंग – रूप को ‘चिद्रूप’ , रख लेगा छुपाव में,
कोई जान भी ना पाएगा, लु न तेरा नाम मैं,

कोई पा ही ना सकेगा, तेरे अक्स का भी साया,
कभी तो ‘किरण’ दिखेगी, कबतक शमाँ जलेगा,

मेरे जिंदगी की चाहत, पल भर जरा ठहर।
अभी तो कदम बढ़े है, आगे कारवां जुड़ेगा।।
मेरे जिंदगी की चाहत..!..

©® पांडेय चिदानंद “चिद्रूप”
(सर्वाधिकार सुरक्षित २८/०९/२०१८)

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