हे कौन वहां अन्तश्चेतना में
सुशील मिश्रा ' क्षितिज राज '
*जो सजे मेज पर फल हैं सब, चित्रों के जैसे लगते हैं (राधेश्या
हर मौहब्बत का एहसास तुझसे है।
ज़िम्मेदार ठहराया गया है मुझको,
सोचा नहीं था एक दिन , तू यूँ हीं हमें छोड़ जाएगा।
इक ग़ज़ल जैसा गुनगुनाते हैं
Nature ‘there’, Nurture ‘here'( HOMEMAKER)
किसी भी रिश्ते में प्रेम और सम्मान है तो लड़ाई हो के भी वो ....
कितना तन्हा, खुद को वो पाए ।
उनके रुख़ पर शबाब क्या कहने
कहीं खूबियां में भी खामियां निकाली जाती है, वहीं कहीं कमियो