Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
Comments (11)

You must be logged in to post comments.

Login Create Account
20 Nov 2023 01:50 PM

अति सुन्दर शीर्षक
हार्दिक बधाई

धन्यवाद डॉक्टर साहिब…
💐

यह शीर्षक मैंने तुलसी कृत, रामचरितमानस के सुंदर कांड से लिया। जब हनुमान जी माता सीता को अपना प्रथम परिचय श्रीराम की मुद्रिका देकर करते हैं। वह मिद्रिका परिचय से ज्यादा राम और सीता के मिलन की भावनाओं का काव्य था। जिसे याद कर सीता का दुखी मन खुशी के आंसुओं से बसंत की तरह खिल उठा था। क्योंकि भौतिक और सामाजिक शरीर को प्रत्येक क्षण एक आलंब की जरूरत होती है, स्थापना की जरूरत होती है, इसलिए ही मूर्ति, मंदिर, मस्जिद आदि का निर्माण किया जाता है, जिससे शरीर को, दृष्टि को, मन को एक आलंब मिल सके, जिसे पकड़ कर शरीर अपने दुख, कष्ट आदि सहन करते हुए आगे बढ़ता रहे ,बस इस आसरे कि वह जीवन के इस भवसागर में इन्ही आलंब की नाव से दूसरा छोर पकड़ने की कोशिश कर रहा है, कोई है जो उसके साथ है। इसलिए सीता साक्षात भगवती होते हुए भी देहधारी भेष में उनको आलंब की जरूरत हुई, और यही आलंब श्रीराम की मुद्रिका बनी।

हार्दिक बधाईया।

धन्यवाद सिंह भाईसाहब …
💐

बहुत बहुत बधाई शुभकामनाएं 🙏🎉

बहुत बहुत बधाई हो 💐

धन्यवाद, कर्ण साहब..💐

16 Nov 2023 09:16 PM

Congratulations 🎉👏

Loading...