बहुत बढ़िया
Thanks ji
बहुत खूब !
आप की पेशकश पर मेरा अंदाज़- ए- बयां पेश है :
आजकल गैरों से क्या हमने अपनों से फरेब खाए हैं।
जज़्बात की रौ में बहकर हम अब तक इस्तेमाल होते हुए आए हैं।
कितने नादान थे हम जान न सके सके हमारे कंधे पर बंदूक रख उन्होंने निशाने लगाए हैं ।
जो गुनाह हमने किया नही उसके कसूरवार ठहराए गए हैं ।
जानी पहचानी गलियों से भी गुज़रते अब खौफज़दा रहते हैंं ,जबसे सुना पीठ पीछे वार होने लगे हैं ।
अब तो झूठ को छुपाकर सच्चाई का ढिंढोरा पीटा जाता है।
अब तो शहर का सबसे बड़ा गुंडा नेता बनकर पूजा जाता है।
किसे ख्याल है डूबते सितारों का, अब तो जमाना है उरूज़ के मेहर का।
क्यों इस कदर तू गम़ज़दा प़शेमाँ होता है , इस मुक़द्दर पर कब किसी का इख्त़ियार होता है ,
थामकर सब्र का आंचल , तू आगे बढ़ चल अपनी मंज़िल ,
तय़ है ख़ुदा की ऱहमत तुझ पर होगी , और तेरी जुस्तजू की मंज़िल तुझे हास़िल होगी।
खुश़ाम़दीद !
बहुत खूब,,,शुक्रिया
wah wah
धन्यवाद ji
बहुत सुंदर
Dhanyawad ji
झूठों का सरदार होता है ।
बहुत खूब ।
बहुत बहुत आभार