कभी कभी परिस्थिति वश इंसान बेबस हो जाता है।संदेश भरा संस्मरण
धन्यवाद !
पुराने समय की शादियों की याद ताजा हो गईं। संस्मरण बहुत ही सुन्दर रचना, आपको सादर अभिवादन।
धन्यवाद !
अति सुन्दर, कथा रोचक भी है और प्रेरणादायक भी । परिस्थिति वश लोग अनर्गल कार्य करने को विवश हो जाते हैं किन्तु ईमानदारी उस कुकृत्य को सुधारने में पीछे भी नहीं हटते ।
धन्यवाद !
मनुष्य की आत्मा पवित्र होती है। जब कोई मनुष्य गलत कार्य करता है तो उसे उसकी आत्मा कचोटती है और उसे अपने किए पर पर पश्चाताप का अनुभव होता है। वह एक अपराध बोध से ग्रस्त हो जाता है और वह इस स्थिति से निकलने का प्रयत्न करता है। जो व्यक्ति आदतन चोर नहीं होते उनके साथ अक्सर प्रथम चोरी में ऐसा अनुभव होता है। इनमें कुछ अक्सर अपने मन को समझा कर कि दूसरे व्यक्ति को जो धनवान है उसको कोई फर्क नहीं पड़ेगा संतोष कर लेते हैं। धीरे-धीरे यह प्रवृत्ति उन्हें आदतन चोर बना देती है। गंभीरता से सोचा जाए तो चोरी एक मानसिक विकृति है जो कुछ लोगों में पाई जाती है। मैंने यह प्रवृत्ति संपन्न व्यक्तियों में भी पाई है क्योंकि वे अपनी आदत से मजबूर होते हैं। दरअसल यह प्रवृत्ति मनुष्य में बचपन से ही विकसित होती है। और यदि इसमें सुधार ना किया जाए बड़े होने पर भी यह आदत जाती नहीं है। अतः यह आवश्यक है कि हम अपने बच्चों में इस प्रवृत्ति को विकसित ना होने दें। नहीं तो जीवन पर्यंत यह आदत उनसे नहीं जाएगी।
धन्यवाद !
बहुत अच्छा संस्मरण और प्रेरणादायक भी कि गलतियों को मानकर , भूल सुधार हो सकती है, अगर दिल ईमानदार है तो।
धन्यवाद !
आज के परिवेश में ऐसा भी होता है, पढ़-सुन कर आश्चर्य होता है, इस घटनाक्रम को किस तरह लिया जा सकता है,यह भी दिलचस्प है, फिर भी इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि कभी कोई व्यक्ति गल्ती से गलत कर दे, और फिर उसका परिमार्जन करना चाहे तो उसे वह अवसर मिलना चाहिए। रोचक प्रसंग के लिए आभार,सादर नमस्कार।
धन्यवाद !
बहुत सुंदर