बहुत सुंदर भाव है, आपको सादर अभिवादन
Thanks ji
आध्यात्मिक रूप से तो आत्मा के एक शरीर छोड़कर फिर पुनर्जन्म होने की यात्रा भी इन पंक्तियों में आभासित होती है।स्त्री का विवाह एक पुनर्जन्म ही है, समाज ने अनगिनत रस्मों व सैकड़ो सम्मानित व्यक्तियों को साक्षी कर एक विश्वास जगाने का प्रयास किया है ।विवाह के गीतों, सहेलियो की छेड़छाड़ से सम्बल तो मिलता ही है, पर नैसर्गिक आकर्षण और प्रकृति प्रदत्त सामसज्य का आत्मविश्वास ही एक ऐसे मार्ग पर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है ,जो नया तो है पर नितान्त अपरिचित नही। बचपन से गुडडे, गुड़ियो के खेल मे कितनी ही बार इन कल्पनाओ को जिआ जाता है ।
क्या मेरी दशा भी है
उस नन्हे पौधे सी??
जिसे कहीं और रोपा जाएगा
किसी और को सौंपा जाएगा
मुरझा जाएगा या होगा चेतन
कैसा है ये असमंजस?
कैसा ये आकर्षण?
पर इतना सब होते हुये भी ,उपरोक्त पंक्तिया वाग्दत्ता की मनःस्थिति का सम्यक चित्रण करती है, मनचाहा साथी पाने का हर्षोल्लास ,संशयों को कम करता है। पर समस्त विचार शील पुरुष यह जानते है कि स्त्री नन्हा पौधा नही अपितु अथाह सम्भावनो समेटे कल्पवृक्ष होती है जो घर और बाहर एक मोहक सृष्टि की रचना करती है, जिसके केन्द्र में स्वयम ही होती है पर सदाशयता से पुरुष को मान देती है।
सावन की मन्द बयार में भीनी फुहार सी रचना अन्तर्मन में पढते पढते ही बस जाती है।
पिछले चार पांच महिनों मे जितनी सुन्दर कविताओ की रचना की है ,वो शायद साहित्योपीडिया में उससे पहले की रचनाओ से भी अधिक है।इसमें साहित्योपीडिया के स्नेहिल उत्सुक पाठको के सतत प्रोत्साहन व प्रशंसा के खाद व पानी की भी किन्चित भूमिका हो सकती है।एक विशाल कैनवास पर इतने दृश्य चित्रित किये हैं कि जीवन के अधिकांश रंग आ गये हैं।
सादर अभिनन्दन।
किस वर्ष में।
विशाल कविता संग्रह है ,जीवन्त और भावपूर्ण। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय की पत्रिका मे भी प्रकाशित हुआ होगा।
Nhi nhi itna Purana nhi , actually mujhe pta nhi tha ki kaise bheji jati publishers ko ,bs Likha aur chhod diya
उम्दा☺
Thanks ji
नारी के जीवन में उद्वेलित अंतर्मन की भावनाओं की अति सुंदर प्रस्तुति।
Thanks ji