नया राष्ट्र
सर्द की अलासाई भोर में उठती बालो को समेटते हुए
चाय का प्याला लिए देखा अखबारों को खोलते हुए
असमंजस्य हुआ अखबार है या इतिहास की पन्ने
सुना था लूटा है दिल्ली को गजनी के लुटेरों ने
पर आज कौन गजनी से आया है
कौन सी सेना और कौन सी तलवार लाया है
क्या कोई मयूर सिंहासन लेगा
या लेगा कोई तख्त–ए–ताज
क्या ले जाएगा बहु बेटियां
या कब्जाएगा कोई भूभाग
नही… आज समय जो बदला है
अफगान नही, कोई गोरा है
पर कहां गए वीर सावरकर
या कहां गए मेरे गांधी
हाय! इंकलाब का नारा था
खादी ही सबसे प्यारा था
नए राष्ट्र का स्वपन लिए
दिग्विजय के लिए निकले थे
कितने खाए थे गोलियां
कितने फाशी पे चढ़े
नया राष्ट्र कैसा होगा …
यह प्रश्न है या विराम है
कलम का या विचार का
एक और हत्या हुई
प्रेम आशा और विवेक का
संवेदना ठहरी रही
चाय के खत्म होने तक
धुंध हो गई स्मृतियाॅ
अखबार के रद्दी होने तक।।