थोड़ा सा बिखरकर थोड़ा सा निखरकर,
मै पूर्ण विवेक से कह सकता हूँ
तुझे पाने की तलाश में...!
singh kunwar sarvendra vikram
तूं ऐसे बर्ताव करोगी यें आशा न थी
हम न रोएंगे अब किसी के लिए।
मौहब्बत जो चुपके से दिलों पर राज़ करती है ।
प्यार के बदले यहाँ प्यार कहाँ मिलता है
*खर्चा करके खुद किया ,अपना ही सम्मान (हास्य कुंडलिया )*
आँखों की कुछ तो नमी से डरते हैं
प्रकृति का अंग होने के कारण, सर्वदा प्रकृति के साथ चलें!
गौ नंदिनी डॉ विमला महरिया मौज