मयखाना
अब मुझे मयखाना भा गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
देख मंजर इस हसीं शाम का,
है छलकता यहाँ पैमाना जाम का।
फिक्र नहीं अब मुझे पीना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
देख साकी तू इतना करना,
इस मय में थोड़ी मौज़ भरना।
देखने मुझको जमाना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
पग लड़खड़ाए तो साकी सँभाल लेना,
जाम कम पड़ जाए तो और डाल देना।
अब नशे में मुझको रहना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
चोट दिल पे पड़ती है तो ये सँभाल लेती है,
क्या खूब है मुश्किलों से निकाल लेती है।
देखलो यारों मुझको जीना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
छलकते जाम जब महफिलें खूब होती हैं,
नशे के बाजार में ‘मजबूर’ यूँ नीलाम होती हैं।
तमाशा देखने कोई दीवाना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
हो गई है यहाँ मदहोश जवानी इस तरह,
आ गई मयखाने में रवानी इस तरह।
यूँ लगा सारा जमाना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
भूलने उस बेवफा की याद को,
है जाम ये आज अपने साथ तो।
रुख हवाओं का बदलना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
हाथ में जब जाम तो डर किस बात का,
अब गँवारा नहीं मुझे किसी के साथ का।
साथ देने मेरा ये मयखाना आ गया है,
यूँ ये ‘हंस’ मधुशाला आ गया है।
सोनू हंस