मॉं
मॉं
जब भी उदासी में होती हॅूं मैं
तो मॉं प्यार भरी बाहें खिलार देती हैं।
जब भी कभी रोती हॅूं मैं
तो मॉं अपने आंचल से आंसू पोंछ देती है।
जब भी कभी बेसुघ होती हॅूं मैं
तो मां फूलों जैसी खुशबू बिखेर देती हैं।
जब भी कभी नींद आती हैं मुझको
तो मॉं अपनी गोद में सुला देती है।
जब कभी नींद न आए मुझको
तो मॉं प्यारी भरी लोरी सुना देती है।
तब कभी अश्क न रूकते हो मेरे
तो मॉं प्यार से पुचकार देती है।
जब कभी रास्ता भूल जाती हॅूं मैं
तो मॉं उंगली पकड़ कर ले जाती हैं।
जब कभी भूख लगती है मुझको
तो मॉं प्यार से खाना खिलाती है।
जब कभी काम में जाती हॅूं मैं
तो मॉं आके मेरे सारे काम कर जाती है।
जब कभी चोट लगती है मुझको
तो मॉं आ के मेरा सारा दर्द ले जाती है।
जब कभी मुसीबत में होती हॅूं
तो मॉं भगवान से सारी दुआंए ले आती हैं।।
ऐ भगवान कैसी बनाई है ये मॉं
सामने न हो तो मुझे इसकी याद सताती है।
कृति भाटिया, बटाला