लड़ता रहा जो अपने ही अंदर के ख़ौफ़ से
जब हक़ीक़त झूठ से टकरा गयी…!
*त्योरी अफसर की चढ़ी ,फाइल थी बिन नोट * [ हास्य कुंडलिया 】
मैं ढूंढता हूं रातो - दिन कोई बशर मिले।
🥀 *गुरु चरणों की धूल*🥀
जूनियर झनक कैलाश अज्ञानी झाँसी
बस जाओ मेरे मन में , स्वामी होकर हे गिरधारी
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
"साहित्यपीडिया" वालों को अपनी प्रोफाइल "लॉक्ड" करने के साथ ए
बिड़द थांरो बीसहथी, चावौ च्यारूं कूंट।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ये ज़िंदगी तुम्हारी है...
सूरज चाचा ! क्यों हो रहे हो इतना गर्म ।