Listen my dear friends…!!
Listen my dear friends…!!
एक वक्त होता है जब हम सोचते हैं कि बस एक ठीक-ठाक नौकरी मिल जाये या फिर अपना खुद का व्यवसाय स्थापित कर लें तो फिर life set है…!
लेकिन शायद सब कुछ ठीक कभी नहीं होता, अभी नौकरी मिल गई या एक व्यवसाय व्यवस्थित करने या होने तक पहले तो घर छूटा, फिर दोस्त छूटे, परिवार छूटा ही रहता और समय की रफ़्तार ऐसे की सबकुछ छूटता ही जा रहा होता है…!
और हम सोचते हैं कि बस इतना हासिल कर लू फिर परिवार और दोस्तों के साथ life enjoy करना है, लेकिन जैसे ही हमारा वो लक्ष्य पूरा होता है कि दूसरा Goal हमें आकर्षित करने लगता है, और इसी तरह जिंदगी कब निकल जाती है और हमें पता भी नहीं चलता..!
मैं अक्सर सोचता हूँ किसी एक चीज को पाने के क्रम में हम क्या-क्या छोड़ आते है उसका भी हिसाब होना बहुत जरुरी है…!
त्योहारों पर ये सब जरूर याद आता है। पुराने दिन, गांव, घर, माता पिता, रिश्तेदार, आस पड़ोस पुराने मित्र यार और मदमस्ती के वो दिन जब न कोई चिंता होती थी न कोई फिक्र…!
सच ही कहा है किसी ने कि -: शौक तो बाप के पैसों से ही होते हैं, अपनी कमाई से तो सिर्फ आवश्यकताए पूरी होती है…!