Lekh
जब इन्सान के पास कई ऑफर होते है तो वह कन्फ्यूज हो जाता है। वह डिसाइज नही कर पाता है कि उसे क्या चाहिए होता है और वह गलत डिसिजन ले लेता है। इस चक्कर मे वह थोडा भी खो देता है।
इंसान एक कश्ती मे नही बल्कि कई कई कश्तियों में
पाँव रखकर चलने की कोशिश कर रहा होता है।जिस कश्ती मे वह सवार है। वह उससे अलग दूसरी कश्ती में भी सवार होना चाहता है। चाहे वह उसकी पहुँच से कोषों दूर क्यो ना हो। क्योकि दूर की नाव को देखकर उसकी नियत बदल जाती है। वह उसे देखकर यह शोचता है, अनुमान लगाता है कि वह कश्ती बहुत बडी है, बहुत सुन्दर है। जिसकी उसने कल्पना भी नही की थी। अब तक आखरी इच्छा वह थी ,जिसमे वह सवार था। लेकिन अब उसकी खवाईश, उस बडी व सुन्दर (अदभुद) नाव में सफर करने की है। जिस नाव को उसने अभी करीब से देखा भी नही है। जो उससे कोशो
दूर है। जिसकी आने- जाने की दिशा भी निर्धारित नही है। जो एक स्वपन के समान है। जिसका परिणाम अभी निर्धारित करना असम्भव है। जो उसकी आखरी इच्छा बन चुकी है।
अब इंसान दोनो हाथो मे लड्डू तो रखता ही है।लेकिन वह लड्डू वह पहले ही चखे होता है। पहले लडडू और इन लड्डू को वह समान समझ बैठता है। अत: उसे दोनों लड्डू समान ही नजर आते है। इसलिए वह उन दोनो मे कोई तुलना नही करता है। आज के समय मे हर इंसान को ज्यादा चाहिये होता है, लेकिन वह कम मे ही सन्तुष्ट हो जाता है। अब इंसान इंसानों के गुणों की तुलना नही करता है। बल्कि उसके नाम, शोहरत और दौलत आदि की तुलना करता है। ये चीजे ज्यादा चाहिये आज के समय मे,और जिसके पास ये सब नही है। वह तो बेकार है । आज के समय मे , उसकी कोई वैल्यू नही है।…