LALSA
लधुकथा – लालसा
रामनगर शहर में रवि व राजू दोनों मित्र की शानदार जोड़ी प्रसिद्ध थी । यें दोनो अंहिसा नगर में उत्कृष्ट शासकीय महाविद्यालय में पढ़ाई करते थे । पढ़ाई में अव्वल रहकर समाज में भी सहयोग के भावनाओं से जगह बना रखी थी । दोनों ही गरीब परिवार से थे । हम भी गरीब न रहते हुये मेहनत , ईमानदारी से अपना भविष्य के लिए बहुत पैसे वाले बनने की लालसा थी । राजू स्वभाव से अहंकारी व्यक्ति था । उसे किसी भी बात में पिछ़डना या किसी भी तरह से पीछे रह जाना बिल्कुल पसन्द नहीं था । वो बौद्धिक था , हमेशा पढाई में ज्यादा से ज्यादा अंक अर्जित करता था । लेकिन रवि एक शांत , मनन चिंतन करनेवाला , हमेशा धार्मिक संस्कार में रहकर सभी के लिए कल्याणकारी भावना से ओतप्रोत था । रवि ज्यादा पैसे , लालची प्रवृत्ति से दूर रहता था ।
दोनो अच्छे से विचार विनिमय करते थे लेकिन लालची भावना , बहुत पैसे वाला होना , सदैव प्रतिस्पर्धा की भावना व सबसे ज्यादा अहंकार को राजू छोड़ने को तैयार नहीं था । किसी के लिए भी अंहकार बहुत घातक रहता हैं यह समझाकर भी राजू के दिमाग में अब्जपति और मेरे शिवाय कोई नहीं यही धारना बनाकर रखा था ।
परिक्षा का परिणाम आता हैं , राजू को मात्र 100 अंको में से सभी विषयों में सरासरी 35 – 35 अंक आते हैं , और रवि प्रथम श्रेणी में विशेष योग्यता लेकर पास होता हैं । निराशाजनक अंक देखकर राजू बहुत दु:खी होता है और क्रोधित होकर महानगर की और दौड़ लगाता हैं । महानगर में राजू की संगति छोटे – मोटे गलत कार्य करनेवाले नशीले पदार्थ सेवन करने वाले साथी युवाओं से होती हैं । धीरे – धीरे नशीले पदार्थ एक जगह से दूसरे महानगर पहूंचाने का कार्य करने लगा । राजू साहस के दम पर बहुत ज्यादा खतरनाक होकर खुलेआम कार्य करने लगा , फिर ज्यादा मात्रा में पहूंचाने लगा । करोड़ पति से अब्जपति बनने का स्वप्न पूर्ण हो रहा था ।
रवि एक साधारण नौकरी व समय का उपयोग कर छोटे बच्चों की ट्यूशन लेने लगा । यह कार्य में उसे संतोष था क्योंकि नौकरी करके समाज के लिए अच्छा कार्य हो रहा था ओर खुश था । एक दिन अचानक गैर कानूनी कार्य करनेवाले की धरपकड़ होने लगी । किसी ने राजू के कारनामों की खबर पुलिस को बताकर उसके हर हरकत की जानकारी दी गई । एक दिन रवि किसी कार्य के लिए महानगर आता है । उसी दिन राजू अपनी जान बचाकर संकरी गलियों से लोमड़ी के समान भागता हैं । पुलिस को चकमा देकर एक बिल्डिंग के कमरे में पहूंच जाता हैं , अचानक गौर से देखता है तो यह तो मेरा दोस्त रवि हैं । दोनों बहुत भावूक होकर गले मिलते हैं , राजू बताता है , पुलिस मेरे पिछे लगी हैं । रवि कहता हैं डरने की बात नहीं , मै देखता हूँ । फिर चाय , नास्ता करते हैं । राजू के तेवर वहीं रहते हैं , रवि यह महानगर में स्थायी आकर रह ले , क्या नहीं मेरे पास बहुत पैसा हैं , पैसा हैं तो सबकुछ हैं , सब को खरीद लुंगा । ऐसे साधारण ईन्सान कब तक रहेगा मेरे भाई । रवि शांत भाव से राजू की अहंकार भरी बाते चुपचाप सुन रहा था । पुलिस छान – बिन करते हुये बिल्डिंग में आ जाती हैं , पुलिस को संदेह के आधार पर रवि के कमरे का घेराव कर आखिर में राजू को दबोच लेते हैं , फिर भी अपनी ताकत से भागता हैं , पुलिस को मजबुरी में पैर में गोली मारते हैं फिर भी भागता हैं , ओर दूसरी गोली से राजू ढेर हो जाता हैं । पुलिस भी लावारिस लाश समझकर शमशान फेकदेना चाहती हैं , परन्तु रवि मानवता रखकर , रवि की लाश को लेकर अंतिम संस्कार करता हें ।
रवि को और बुरा लगता हैं , आप बुरे आचरण से बच नहीं सकते । समय पर धनदौलत किसी काम की नही आती । ज्यादा ताकत दिखाकर अंजाम मृत्यु ही होती है । हाँ एक गीत शान फिल्म का याद आ रहा हैं , आते – जाते सबकी नज़र रखता हूँ नाम मेरा अबदूल हैं । ज्यादा भागदौड़ , अति नजर भी मृत्यु प्राप्त होकर ही रहती है । जीवन में आधा दु:ख गलत लोगों से उम्मीद रखने से आता हैं और बाकी का आधा दु:ख सच्चे मित्र की सलाह न मानते हुये उन पर शक करने से आता हैं ।
ज्यादा धन – दौलत की लालसा ही मौत का कारण बन जाती हैं ।
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राजू गजभिये
Writer & Counselor
दर्शना मार्गदर्शन केंद्र ,हिंदी साहित्य सम्मेलन बदनावर जिला धार (मध्यप्रदेश)
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