खरीददार बहुत मिलेंगे
बाजार में बेपर्दा न बैठो खरीद दार बहुत मिलेंगे
इन अश्कों को न दिखलाओ , तलबगार बहुत मिलेंगे ।
जहां जहां जब भी मैंने , नजर उठाकर देखा
यकी करो हर सिम्त बस तेरे बीमार बहुत मिलेंगे ।
गमों की तिश्नालबी कब तक सिर उठाएगी
उसके सजदे में झुक जाओ चमत्कार बहुत मिलेंगे ।
मत इतराओ कैद हुनर पर , बिना टटोले दुनिया की चाहत
मुकाबला आजमाकर देखो , तुम जैसे फनकार बहुत मिलेंगे
दुनिया की किसी भी महफिल में बेशक चले जाना
हर महफिल मे मेरे ही आशिक ए अशआर बहुत मिलेंगे ।
यूं तो प्रेम के ढाई अक्षर गूढ़ नही पर कठिन बहुत है
गहराई तक उतरो एक बार , ढाई के विस्तार बहुत मिलेंगे ।
मोहब्बत के वादे, जिंदगी के इरादे मजाक या खेल नही
इसकी आग में झुलसते, राह में किरदार बहुत मिलेंगे ।
रात जब आओगे सोने अपने मुलायम बिस्तर पर
सिरहाने मेरी खुशबू में लिपटे सुर्ख गुलाब हर बार मिलेंगे ।
अपने गम जदा की तसकीन, सच्चे इश्क की तस्वीर है
झूठी कसमें खाकर तोड़ने वाले , बे गैरत खुद्दार बहुत मिलेंगे ।
रचयिता
शेखर देशमुख
J-1104, अंतरिक्ष गोल्फ व्यू -2
सेक्टर 78, नोएडा (उ प्र)