kavita
[21/09, 09:48] Dr.Ram Bali Mishra: गायत्री छंद निर्माण
भानु तेज से,बुद्धि प्रखर हो,ज्ञान मिले नित।
शंभु पार्वती,विष्णु व लक्ष्मी,सरस्वती नित।
उर से वंदन,नित दिनकर का,गायत्री का।
वरदान मिले,प्रिय ज्ञान मिले,सावित्री का।
वसुधा पर हो,सूरज छाया, नित हृदय खिले।
देवगणों का,शुभ दर्शन हो,मधु प्रीति मिले।
सूर्य देवता,सहज सरल हो,ज्ञान सिखाओ।
तेरा वंदन,शुभ अभिनंदन,रूप दिखाओ।
तू गुणसागर,तीव्र धरा हो,तेजवान हो।
महा प्रतापी,सुख की राशी,शिव समान हो।
अटल पटल हो,ध्रुव सत थल हो,वैरागी हो।
विश्व विजेता,सृष्टि प्रणेता,अनुरागी हो।
पृथ्वी तुझको,चूम रही है,प्रेम प्रणय है।
सभी ग्रहों के,तुम राजा हो,प्रिय शिवमय हो।
दाता तुम हो,मात पिता हो,जग शिक्षक हो।
दानी बनकर,ऊर्जा देते,ज़न रक्षक हो।
तेरा पूजन,करता य़ह मन,नित स्वीकारो।
सत्य तुम्हीं हो,आदि तुम्हीं हो,मुझे उबारो ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/09, 17:52] Dr.Ram Bali Mishra: खुलता है
मात्रा भार 11/11
चाहे जितना प्यार, छिपाओ खुलता है।
छुप छुप करके प्यार,हमेशा खिलता है।।
छुपता नहीं कदापि,बहुत ही चोखा है।
दिखे मृदुल अति मस्त,अमर य़ह लेखा है।।
सुरभित यह नवनीत,मलाई माखन है।
वीणा की झंकार,मनोहर वादन है।।
यहाँ दिव्य अनुराग,सरस आयोजन है।
देता मन को भाग,प्रीति का भोजन है।।
होता नित अभिव्यक्त,मधुर रस वाणी है।
सभ्य सृजन उपहार,सुजन य़ह प्राणी है।।
चुप रह करता वार,बहुत मस्ताना है।
दिल में सदा सवार,बहुत मौलाना है।।
करता दिल से याद,सुमन अति प्यारा है।
तन मन उर में वास,सुगंधित धारा है।
यह रचना का मूल,लोक का रंजन है।
खुलता है साकार,महक मनरंजन है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/09, 09:47] Dr.Ram Bali Mishra: यादें
मापनी: 22 12 122, 22 12 122
यादें सता रही हैं,फ़रियाद कर रहा हूँ।
तेरा रहा सहारा,इजहार कर रहा हूँ।
गति विधि न भूल पाते,मुखड़ा सहज दमकता।
तू साथ में रहा है,तेरा वदन गमकता।
तू खेल खेलता था,मन को लुभा रहा था।
बातेँ सुना सुना कर,मन को रिझा रहा था।
अब तू नहीं यहाँ है,कर्तव्य शेष दिखता।
तू सो गया गगन में,इतिहास बन विचरता।
माता बुला रही है,पित कर रहा रुदन है।
परिवार रो रहा है,खोया हुआ सदन है।
आओ ललन गगन से,रख पैर अब धरा पर।
महि मां बुला रही है,उतरो अभी सरासर।
य़ह जिंदगी अधूरी,यदि साथ में नहीं हो।
आओ तुरंत प्यारे,चाहे जहां कहीं हो।
यादें सता रही हैं,तुझको बुला रही हैं।
आवाज दे रही हैं,तुझको मना रही हैं।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/09, 11:24] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति काव्य की मिठास (मुक्तक )
प्रीति काव्य की मिठास का न हाल पूछिए।
कथ्य मोहिनीय है सुधा समान पीजिए।।
रसभरी मलाइदार शब्द शब्द प्रेय है।
स्पष्ठ शुद्ध रीति काल का मजा उठाइए।।
भावना प्रियंवदा उकेरती पुकारती।
कल्पना रसामृता सरस हृदय सँवारती।।
व्यक्त रम्य भव्य राग दर्द दूर कर रहा।
काव्य रस अमोल निधि सुगंध सिद्ध भारती।।
ग्रंथ प्रेम अमृतम जगा रहा है चेतना।
हर रहा अनादि से अनंत लोक वेदना।।
चाहता सदैव है बने हृदय मनोरमा।
मालिनी गमक उठे फले कदापि वेत ना।।
गुदगुदी बनी रहे उमंग का बहार हो।
जिस्म में हरीतिमा सुहावनी बहार हो।।
एक एक पंक्ति में दिखे मधुर सरोजिनी।
अंग अंग में चले दिलेर दिल सवार हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/09, 08:58] Dr.Ram Bali Mishra: विश्वास (दोहा सजल)
वही एक विश्वास के,काबिल है इंसान।
जो करता है हर समय,सहज सत्य का पान।।
जो करता सबका भला,रखता उच्च विचार।
मन में है कल्याण का,अति पावन संज्ञान।।
रखता सुन्दर सोच है,कभी न मन में पाप।
मानवता ही मूल है,नैतिकता परिधान।।
सदा निभाता सत्य शिव,का दैवी किरदार।
हितकारी मंगलकरण,जग पर नियमित ध्यान।।
सच्चाई ईमान से,पूजित है विश्वास।
स्वच्छ धवल निर्मल मनुज,पाता अद्भुत ज्ञान।।
बहुत बड़ा विश्वास है,य़ह शंकर का रूप।
परहितवादी कृत्य से,मिलता यश सम्मान।।
सदा अटल सिद्धांत से,बढ़ता है विश्वास।
उत्तम शुभ प्रिय कर्म हो,बिना किये अभिमान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/09, 16:39] Dr.Ram Bali Mishra: गगन का प्रेम (मुक्तक )
गगन तुम नीलिमा मोहक, हृदय में नित्य रहते हो।
भले कोई तुझे जाने,बहुत तुम दूर बसते हो।
तुम्हारा प्यार निर्मल है,मिले हो आप से आ कर।
नहीं नाराज करते हो,हमेशा स्नेह रखते हो।
प्रकाशित मन सहज पावन,तुम्हीं ब्रह्मांड नायक हो।
तुम्हारा नाम प्यारा है, सदा सम्मान लायक हो।
तुम्हीं हो ज्ञान के सागर,बड़ा बनकर झुके रहते।
सहज तुम देखते सब को,सदा शुभ बुद्धिदायक हो।
झुके रहते हमेशा हो, बड़ा बनते नहीं हो तुम।
अहंकारी नहीं बनते,सहज प्रेमार्थ जीते तुम।
धरा से प्यार करते हो,अहर्निश बात करते हो।
मधुर अनुराग पीते हो,सुरभि गो दुग्ध पीते तुम।
तुम्हीं कैनात बन दिखते,सदा महफिल सजाते हो।
सुखी संसार पर प्रियवर,तुम्हीं ताली बजाते हो।
तुम्हीं आदर्श मौलिक हो,सरल सुन्दर सलोना सा।
दिखे अश्लीलता जब भी,तुम्हीं पहले लजाते हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/09, 08:41] Dr.Ram Bali Mishra: ब्राह्मण प्रिय अनमोल (दोहा )
ब्राह्मण है अनमोल,ब्रह्म संस्कृति का ज्ञानी।
आसन है सर्वोच्च,ब्रह्मवत यह दानी।।
रखता सबका ख्याल,बहुत य़ह ध्यानी है।
ऋषि की यह सन्तान,मूल्य की खानी है।।
यही सनातन सत्य,पुरुष उत्तम जग में।
ब्राह्मण पावन सोच,अहिंसा है रग में।।
गुरु बन देता ज्ञान,उपदेशक का भाव।
सकल लोक से प्रेम,छोड़े अमिट प्रभाव।।
याचन इसका एक,रहे नित निर्मलता।
सबमें हो सद्भाव, परस्पर में शुचिता।।
हो उन्नत संस्कार,शिष्ट मनभावन हो।
गुरुकुल का संकाय,बहुत ही पावन हो।।
भौतिक आत्मिक योग,इसी का कल्पन हो।
हो मनुष्य की खोज,दिव्य परिकल्पन हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/09, 15:15] Dr.Ram Bali Mishra: ब्राह्मण प्रिय अनमोल (दोहा )
ब्राह्मण नहिं है जाति,वर्ण यह अतुलित है।
उत्तम शुद्ध विचार,ब्रह्ममय य़ह शिव है।।
यह दैवी उपहार,विश्व की काया है।
यह पावन वट वृक्ष,की सुरभि छाया है।।
इसका कोई जोड़,कहाँ कब दिखता है?
ब्राह्मण का इतिहास,सदा वह लिखता है।।
ब्राह्मण है अनमोल,ब्रह्म संस्कृति का ज्ञानी।
आसन है सर्वोच्च,ब्रह्मवत यह दानी।।
रखता सबका ख्याल,बहुत य़ह ध्यानी है।
ऋषि की यह सन्तान,मूल्य की खानी है।।
यही सनातन सत्य,पुरुष उत्तम जग में।
ब्राह्मण पावन सोच,अहिंसा है रग में।।
गुरु बन देता ज्ञान,उपदेशक का भाव।
सकल लोक से प्रेम,छोड़े अमिट प्रभाव।।
याचन इसका एक,रहे नित निर्मलता।
सबमें हो सद्भाव, परस्पर में शुचिता।।
हो उन्नत संस्कार,शिष्ट मनभावन हो।
गुरुकुल का संकाय,बहुत ही पावन हो।।
भौतिक आत्मिक योग,इसी का कल्पन हो।
हो ब्राह्मण की खोज,दिव्य परिकल्पन हो।।
ब्राह्मण का परिधान,ज्ञानमय श्वेता है।
निर्मल कोमल दृष्टि,सहज य़ह चेता है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/09, 08:52] Dr.Ram Bali Mishra: सुननेवाला कौन यहाँ है?
मेरे बारे में मत पूछो,किसी तरह से मैं जी लूँगा,सुख दुख की मदिरा पी लूँगा,अपनी बातेँ नहीं कहूँगा।
सुननेवाला कौन यहाँ है,अपनी मस्ती में सब जीते,अपने मन की हाला पीते,भूल गये अपना जो बीते।
कोई नहीं यहाँ अपना है,सभी पराये अब लगते हैं,देख दुर्दशा वे भगते हैं,दूर खड़ा हँसते रहते हैं।
जो भी मित्र बने थे इक दिन,हाथ खड़ा अब वे करते हैं,नही मदद करते फिरते हैं,मक्कारी करते रहते हैं।
य़ह कैसा संसार आज है,हर कोई नाराज आज है,जिसको देखो रंगबाज है,हुआ मनुज अब दग़ाबाज़ है।
अब विश्वास बनाता दूरी,
चारोंतरफ दिखे मगरूरी,नहीं प्रेम की इच्छा पूरी,लालच दे कर चलती छूरी।
अपने मन का मीत कहाँ अब,मनमोहक है गीत कहाँ अब,सामूहिक शुभ रीत कहाँ अब,साफपाक मधु प्रीत कहाँ अब?
खोज रहा दिल मनहर प्रियतम,जो हो अतिशय सुन्दर अनुपम,मधु मादक हो हृदय मनोरम,भाव सुरम्य प्रेममय उत्तम।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/09, 18:33] Dr.Ram Bali Mishra: तप्त हृदय को शीतलता दो (चौपाई छंद )
तप्त हृदय को शीतल कर दो।
नम्र भाव का मोहक घर दो।।
समरसता का उत्तम वर दो।
इसमें प्रेम सुधा रस भर दो।।
हर मानव को शांति चाहिए।
मधुर हृदय की क्रांति चाहिए।।
दया दमन प्रिय दान चाहिए।
निर्मल मन का ज्ञान चाहिए।।
मधु वचनों का मेल दिखे अब।
मानवता का खेल दिखे अब।।
शंकाओं का खेल खतम हो।
नहीं धरा पर अहं वहम हो।।
आतंकी को शरण न देना।
मन उर को पावन कर लेना।।
दूषित राजनीति को त्यागो।
तिमिर भगाकर अब प्रिय जागो।।
मत झूठा आक्षेप लगाओ।
अपने भीतर ध्यान जगाओ।।
साफ करो गंदगी स्वयं की।
ग़मकाओ भावना हृदय की।।
गंदी नीति पाप का सूचक।
अधिक अपावन घटिया सूतक।।
शीतल चंदन वृक्ष उगे अब।
मलय समीर सुखांत जगे अब।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/09, 11:20] Dr.Ram Bali Mishra: नादान
मात्रा भार 11/11
मत बनना नादान,जगत को जानो रे।
सोच समझ कर बोल,बात को मानो रे।।
आगे पीछे देख,बात तब करनी है।
बिन चिंतन के बात,नहीं कुछ कहनी है।।
उल्टा करता काम,सदा नादानी का।
फल का नहिं है ज्ञान,उमंग जवानी का।।
दोस्त अगर नादान,काम सब चौपट है।
नहीं बुद्धि एकाग्र,क्रिया हर झटपट है।।
दोस्त बुरा नादान,भला वह दुश्मन है।
जो हो दानेदार,सदा निर्मल मन है।।
नादानों से दूर,बुद्धि का परिचय है।
नादानों के पास,कष्ट का संचय है।।
वही मूर्ख नादान,बिना सोचे बोले।
करे रंग को भंग,अचानक मुँह खोले।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/09, 14:58] Dr.Ram Bali Mishra: तारीफ (अमृत ध्वनि छंद )
होती जब तारीफ़ है,भरता हृदय उड़ान।
उत्साहित मन मचलता,करता मधुरिम गान।।
करता मधुरिम गान,चाह कर, अच्छा बनता।
अति श्रम करता,कोशिश करता,आगे बढ़ता।।
वही जागता,कभी न रुकता,दुनिया सोती।
प्रति पल चलता,सुखी वृत्ति तब,अति खुश होती।।
अपने प्रति तारीफ़ सुन,मन में अति उत्साह।
बाहें लगतीं फड़कने,उत्तमता की चाह।।
उत्तमता की चाह,हृदय में,स्पंदन होता।
ऊर्जा से भर,उर्वर तन मन,बीजू बोता।।
देखन लागे,अपने जीवन,के शुभ सपने।
प्रगतिशील बन,चिंतन करता,मन का अपने।।
विनिमय से तारीफ के,बनते प्रिय संबंध।
सामूहिक जीवन फले,गमके मधुर सुगंध।।
गमके मधुर सुगंध,प्रीति की,रीति जगेगी।
बासंती हो,सारा मौसम,घृणा भगेगी।।
बहुत सुखद है,स्नेह परस्पर, आत्मिक मधुमय।
शुद्ध विधा है,भाव समर्पण, प्रेमिल विनिमय।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/10, 11:21] Dr.Ram Bali Mishra: महात्मा गांधी जी
राष्ट्र भक्ति से युक्त हो,किये जगत में नाम।
सत्याग्रह केअस्त्र से,किये देश का काम।।
सत्य अहिंसा प्रेम ही,जीवन का था मंत्र।
गांधी हृदय विशाल का,यही एक प्रिय तंत्र।।
अति उदार करुणायतन,दैवी भाव अपार।
गांधी जी के नाम का,होता शाखोंच्चार।।
साबरमति का संत यह,दुबला पतला वीर।
हिला दिया अंग्रेज को,य़ह मानव रणधीर।।
भारत को आजाद कर,रचे अमुल इतिहास।
राष्ट्रपिता नायक सबल,गांधी परम उजास।।
गांधी केवल नाम नहिं,यह अति शुचिर विचार।
वही क्रांति का वृक्ष है,सहज गगन के पार।।
सात्विक योद्धा बन किया, भारत का उद्धार।
ऐसे पावन दिव्य को,नमन करो शत बार।।
गांधी नाम असीम है,यह अनंत विस्तार।
गांधी नाम प्रसिद्ध है,जानत है संसार।।
गांधी दर्शन अमर है,यह स्वदेश आधार।
भारतीयता से भरा,मौलिक आत्म सुधार।।
राम नाम का जाप कर,किये अनोखा काम।
रघुपति राघव का मिला,उनको स्वर्गिक धाम।।
दिव्य स्वदेशी भावना,में उनका विश्वास।
आत्म निर्भरा शक्ति से,भारत करे विकास।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/10, 15:57] Dr.Ram Bali Mishra: श्री लाल बहादुर शास्त्री जी (कह मुकरी छंद )
बहुत प्रतिष्ठित अति प्रिय राजा,
कौन लगा सकता अंदाजा ?
अति संघर्षशील मनमोहक,
रे सखि नेहरू?नहिं सखी लाल।
अति शालीन परम वैरागी,
राष्ट्रवाद के शिव अनुरागी,
अति साधारण वस्त्र पहनते,
रे सखि गांधी? नहिं सखी लाल।
साधु संत सा जीवन यापन,
मोहक राष्ट्र गीत का गायन,
रचे बसे प्रिय राष्ट्र हितों में,
रे सखि साधू?नहीं सखी लाल।
देख गरीबी मन मुस्काये,
नहीँ कभी भी हार मनाये,
काया छोटी बादशाह मन,
रे सखि क्या वे? रे सखी लाल।
दिल उदार अति व्यापक शिव सम,
मानववादी प्रेम सुधा सम,
अति कठोर अनुशासित जीवन,
रे सखि मानव? नहिं सखी लाल।
राजा बनकर भी साधारण,
मधु विकासमय शुद्ध आचरण,
दुश्मन को अति हल्का माने,
रे सखि राघव? नहिं सखी लाल।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/10, 10:03] Dr.Ram Bali Mishra: महात्मा गांधी जयन्ती (दोहा गीत)
होता उसका नाम है,जिसे राष्ट्र से प्यार।
जनता के प्रति वेदना,का भरते हुंकार।।
गांधी नाम अमर सदा,बापू नाम महान।
महापुरुष अतुलित सहज,धीर विज्ञ विद्वान।।
सत्याग्रह के मंत्र का,किये रात दिन जाप।
दृढ़ प्रतिज्ञ पुरुषार्थ से,हरे देश का ताप।।
सदा विजय श्री हाथ में,बने राष्ट्र करतार ।
जनता के प्रति वेदना,का भरते हुंकार।।
गीता के उपदेश को, करते अंगीकार।
सत्य सनातन मूल्य प्रिय,पावन शुभ्र विचार।।
तीक्ष्ण बुद्धि मन शुद्ध अति,मानव धर्म पवित्र।
साफ स्वच्छ निर्मल धवल,उत्तम भाव चरित्र।।
साधारण जीवन सरल,दिल से है स्वीकार।
जनता के प्रति वेदना,का भरते हुंकार।।
साबरमति के संत को,जाने सकल जहान।
बनकर रचनाकार वे,दिये आत्म का ज्ञान।।
दिये स्वदेशी नीति पर,बहुत अधिक वे जोर।
किये विदेशी चाल का,अति विरोध घनघोर।।
कुटिल क्रूर अंग्रेज पर,नियमित किये प्रहार।
जनता के प्रति वेदना,का भरते हुंकार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/10, 17:29] Dr.Ram Bali Mishra: श्री लालबहादुर शास्त्री जयंती (दोहा गीत)
रामनगर वाराणसी,के अनुपम श्री लाल।
लाल बहादुर जी बने,भारत के रखवाल।।
जीवन के प्रारंभ से,झेले अति संघर्ष।
किन्तु नहीं विचलित कभी,स्वीकृत किये सहर्ष।।
देख गरीबी आप की,लड़ते दो दो हाथ।
हार कभी माने नहीं,कभी न बने अनाथ।।
झंझावातों से गुजर,करते रहे कमाल।
लाल बहादुर जी बने,भरत के रखवाल।।
ईर्ष्या द्वेष कभी नहीं,अपने पर विश्वास।
घोर परिश्रम लगन का,था उनको अहसास।।
उन्नत मस्तक बाहुबल,का उनको आभास।
सच्चाई ईमान थे,सदा उन्हीं के पास।।
योद्धा बनकर जूझते,बने काल के काल।
लाल बहादुर जी बने,भारत के रखवाल।।
भारत के मंत्री बने,अति प्रधान सर्वोच्च।
पावन अमृत भाव था,दिव्य मनोहर सोच।।
साधारण सुन्दर सहज,अति प्रसन्न शालीन।
लाल बहादुर संत शिव,विद्या निपुण प्रवीन।।
संस्था बनकर कर्मरत,भारत हुआ निहाल।
लाल बहादुर जी बने,भारत के रखवाल।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/10, 08:45] Dr.Ram Bali Mishra: कह मुकरी /मुकरियां छंद
पांव दबा कर वह आता है,
घर में चुपके घुस जाता है,
सतत देखता चारोंओर,
रे सखि साजन?नहिं सखि चोर।
हराभरा चेहरा अति मोहक,
गगन चूमता प्रिय सम्मोहक,
फलदायी रसमय सुखदायक,
रे सखि पीपल?नहिं सखि आम।
सिर पर सदा चढ़ा रहता है,
मुस्काता हँसता दिखता है,
देवलोक का आभूषण वह,
रे सखि राजा?नहिं सखि फूल।
परम्परा से चला आ रहा,
भय से सबको नचा रहा है,
मन को नित उद्वेलित करता,
रे सखि चोरकट?नहिं सखि भूत।
संचित शुभ कर्मों का फल है,
शीतल जीवन सहज सफ़ल है,
इसके आगे सब मुरझाए,
कह सखि संपति?यह संतोष।
हाथ नहीं वह फैलाता है,
जो कुछ मिला वही खाता है,
स्वाभिमान ही उसका जीवन,
रे सखि भिक्षुक?नहिं सखि संत।
हराभरा चेहरा अति मोहक,
गगन चूमता प्रिय सम्मोहक,
फलदायी रसमय सुखदायक,
रे सखि पीपल?नहिं सखि आम।
सिर पर सदा चढ़ा रहता है,
मुस्काता हँसता दिखता है,
देवलोक का आभूषण वह,
रे सखि राजा?नहिं सखि फूल।
परम्परा से चला आ रहा,
भय से सबको नचा रहा है,
मन को नित उद्वेलित करता,
रे सखि चोरकट?नहिं सखि भूत।
संचित शुभ कर्मों का फल है,
शीतल जीवन सहज सफ़ल है,
इसके आगे सब मुरझाए,
कह सखि संपति?नहिं सखि तोष।
हाथ नहीं वह फैलाता है,
जो कुछ मिला वही खाता है,
स्वाभिमान ही उसका जीवन,
रे सखि भिक्षुक?नहिं सखि संत।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/10, 15:21] Dr.Ram Bali Mishra: महफिल में (स्वर्णमुखी छंद /सानेट )
महफिल में हम नृत्य करेंगे।
झूम झूम कर गायन होगा।
प्रेम मगन मधु ध्यायन होगा।
मधुर मनोहर कृत्य करेंगे।
देखेंगे हम केवल उसको।
जिस पर प्रीति निछावर होगी।
दिल की बातेँ बाहर होंगी।
सब कुछ देंगे केवल उसको।
वहीं परम प्रिय रूप सलोना।
मादक नजरें मिल जाएंगी।
ख़बरें दिल में खिल जाएंगी।
खुश होगा मन का हर कोना।
खुलेआम शुभ प्रणयन होगा।
स्नेह स्वयंवर मधु मन होगा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/10, 14:12] Dr.Ram Bali Mishra: शानदार महफिल
महफिल सजी हुई है,आना जरूर आना।
सुनना तुझे यहां पर,करना नहीँ बहाना ।।
चाहे पड़े मुसीबत,हर कष्ट पार करना ।
तूफ़ान से सहज लड़,दरिया को पार करना।।
तेरे लिए बनी है,महफिल बुला रहीं है।
फ़रियाद है जिगर से, बहु याद आ रहीं है।।
तोड़ो नहीं हृदय को, अहसास हो तुम्हारा।
इक तुम मिले सपन में,है मिल गया किनारा।।
अपलक निहारती है,महफिल तुझे यहाँ पर।
लगती उदास प्यारी,तुझको यहाँ न पा कर।।
कर्त्तव्य को निभाने,आना अवश्य आना।
संगीत बन गमकना,मौसम बने सुहाना।।
हँस हँस सभी खिलेंगे,मंजर दिखे दिवlना।
खुशबू रहे गुलाबी,चितचोर को जगाना।।
मधु भाव में बहे मन,सब में सभी समायें।
महफ़िल बने मनोरम,शृंगार रस पिलाये।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/10, 15:53] Dr.Ram Bali Mishra: बात
हर बात में मधुरता,हर बात में रवानी।
हर बात में छिपी है,इक मर्द की कहानी।।
इक बात में हँसी है,इक बात में खुशी है।
इक बात तलमख़ाना,इक बात दिल धंसी है।।
इक बात में कुटिलता,नीचा दिखा रहीं है।
इक बात सभ्यता की,सिर पर बिठा रहीं है।।
इक बात रसभरी है,अमृत पिला रहीं है।
मोहक सरस स्वरों में,मधु गीत गा रही है।।
हर रोज़ बात होती,अच्छी बुरी सभी हैं।
सागर कभी उफनता,हो शांत रस कभी है।।
इक बात से तहलका,इक बात से लड़ाई।
इक मीठ बात प्यारी,करती सदा भलाई।।
मोहक मधुर सलोनी,हर बात रंग लाती।
अनुपम परम मनोहर,सबका हृदय लुभाती।।
वह बात हो सभी से,परहित करे सदा जो।
शुभ काम कर दिखाये,सबके लिए सदा हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/10, 18:16] Dr.Ram Bali Mishra: पशोपेश
पशोपेश में पड़ मनुज कुछ न सोचे।
सदा हाँ नहीं में रहे ज्ञान नोचे।
नहीं कुछ समझता सही क्या गलत क्या?
नहीँ जान पाता इधर क्या उधर क्या?
बुरा क्या भला क्या सशंकित सदा मन।
उतरता फिसलता न स्थिर कदा मन।
नहीं होश में ज़िन्दगी चल रही है।
नहीं नाव पतवार से बह रही है।
कभी अग्र जाता कभी लौटता है।
किनारे कभी वह कभी तैरता है।
अनिर्णय कशमकश अनिश्चित कवायद।
बहुत बेबसी में दिखे बुद्धि शायद।
खतरनाक है मोड़ आपद बुलाता।
कभी यह जगाता कभी य़ह सुलाता।
पशोपेश में मन कहीं खो गया है।
कभी बैठता है कभी सो गया है।
उहापोह की जीवनी व्यर्थ होती।
समस्या बनी वृत्ति हर रोज रोती।
दुखद है अनिश्चय बनो शक्तिशाली।
समाधान हो नित बजे शंख थाली।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/10, 09:08] Dr.Ram Bali Mishra: सताना
सताकर कभी भी नहीं सुख मिलेगा।
न मुखड़ा चमकता कभी भी दिखेगा।
सदा पाप का बोझ ढोता वही है।
दया भाव जिसके हृदय में नहीं है।
मनुज बन दनुज पाप करता सदा है।
नहीं पुण्य का भाव रखता कदा है।
न दिल में रहम है नहीं भाव निर्मल।
नरम मन नहीं है नहीं श्वेत उज्ज्वल।
कमाई सता कर करे जो धरा पर।
सहज क्रोध आता सदा सिरफ़िरा पर।
अनायास जीता कुटिल दुष्ट निर्बल।
करे काम गंदा भयानक पतित खल।
बड़ा आदमी वह नहीं जो सताये।
घृणित काम कर के बहुत धन कमाये।
सहज शिव बना जो चला प्यार करते।
वही प्रिय प्रवर है मधुर भाव रखते।
नहीं गंग धारा नहीं प्रेम पावन।
गलित बुद्धि काया सड़ा मन अपावन।
सताता चला जा रहा वह दनुज है।
बने आदमी वह बड़ा शुभ मनुज है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/10, 18:29] Dr.Ram Bali Mishra: दरिंदगी समाप्त हो
दरिंदगी समाप्त हो।
मधुर मिलाप व्याप्त हो।
अनन्य भावना भरे।
सुकर्म सब हृदय करे ।
सजाति भाव वृद्धि हो।
मनुष्य भाव सिद्धि हो।
दृष्टि में सुसत्व भाव।
शुद्ध कर्म का प्रभाव।
विचार में सुशीलता।
दिखे नहीं मलीनता।
दरिद्र भावना मरे ।
गगन सदा धरा चरे।
सनातनी विकास हो।
सरल सुगम प्रयास हो।
मनीष बन दिखो सदा।
गगन गमन करो सदा।
अधर हिले मधुर कहे।
पवन सुखाय नित बहे।
सरित प्रवाह निर्मला।
बसंत भाव उज्ज्वला।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/10, 17:41] Dr.Ram Bali Mishra: रहे उदार भावना (पंचचामर छंद )
सुकोमलांगिनी सदा,हिताय जीविता सदा।
पवित्र भाव ज्ञानिनी,विशुद्ध प्रेम भावना।।
अमी रसायनीवटी,सुगंध पुष्टिवर्धनी।
मनोहरी धरोहररी,मधुर स्वभाव भावना।।
सदा सभी समान हैं,न अन्य है यहाँ कहीं।
बुला रही समग्र को,सदा पवित्र भावना।।
सदा सुखी रहें सभी,न अन्न का अभाव हो।
समानता बनी रहे,समाप्त हो कुभावना।।
अशोक जीव वृक्ष हो,मनोदशा महान हो।
दिखें हरे भरे सभी,रहे उदार भावना।।
सड़ीगली विडंबना,करे न राजपाट को।
शुभेच्छु कामना रहे,जगे सुरम्य भावना।।
धरा सुहागिनी रहे,अमर्त्य वीर पुत्र हों।
न दंभ का प्रभाव हो,खिले अमूल्य भावना।।
शतायु प्राणि मात्र हों,स्वतन्त्रता मिटे नहीं।
सहायता स्वभाव हो,दिलेर दिव्य भावना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/10, 15:29] Dr.Ram Bali Mishra: दिव्य भावना स्तोत्र
नमामि दिव्य भावना रसामृता सदा जयी।
शिवा समान शोभिता भजामि रूप मोहिनी।।
प्रणम्य प्रेम नायिका भवानि शील सुन्दरी।
नयी नवेलि भव्य दिव्य सुष्ठ सत्य साधिका।
स्वयंवरी यशोधरी पयोधरी सुलोचना।
विशेष ज्ञान वाहिनी स्वरूप सभ्य चिन्तना ।।
यशोमती सुगोमती पवित्र रम्य गंधना।
अजेय अंतहीन शुद्ध अर्थ शब्द वंदना।।
सुगीतिका सुनीतिका सुधारिका विचारिका।
प्रतीति प्रीति रीतिका भली सुखी अनामिका।।
अनूपमा मनोरमा परार्थ नित्य कामना।
सदा बसंत राग है,सुनित्य गेह भावना।।
अजातशत्रु सी बनी परंतु किन्तु है नहीं।
बनी दिखे सुचेतना शिवार्थ स्नेह भावना।।
सुवाक्य ही पसंद है सुशब्द वृत्ति गामिनी।
अनंतलोकवासिनी प्रिया कुमारि भावना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/10, 17:34] Dr.Ram Bali Mishra: मुक्तक
टटोलता चला गया मिली कहीं न मित्रता।
सुदूर तक चला गया दिखी कहीं न मित्रता।
बहुत सुखी दुखी मिले निरीह सा दिखे सभी।
नहीं किसी तरफ दिखी सुगंध भाव मित्रता।।
अजब गजब जगत दिखा सभी स्वयं अधीर थे।
नहीं परार्थ भावना अचेत वीर धीर थे।
नहीं किसी सुचाल की कमाल भावना दिखी।
न सोच में गुलाब था न राम के कबीर थे।
समूह नाम मात्र था सभी अकेल जा रहे।
न मित्र का ठिकान था न मित्रता निभा रहे।।
निगम बने चले सभी नहीं पुरुष दिखा कहीं।
न मित्रता मिली कहीं सभी पराय जा रहे।।
नरम गरम मनुष्यता लगी नहीं परम्परा।
अकेल जूझता मनुज विलुप्त प्रेम भू धरा।।
समूह चेतना बिना मनुष्य आज रो रहा।
न प्रिय यहां दिखे कहीं न शेष प्रीति अम्बरा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/10, 16:11] Dr.Ram Bali Mishra: कन्यादान (सरसी छंद )
कन्या रत्न महान सदा है,धर्मशास्त्र उपदेश।
भारतीय संस्कृति विशाल है,देती यह संदेश।।
कन्या का सम्मान जहां है,वहीं संत का भाव।
कन्या से घर भर जाता है,अमृत तुल्य स्वाभाव।।
सृष्टि बीज़ बन कन्या आती,करती जग विस्तार।
देती रहती सबको सेवा,करती नहीं प्रचार।।
कन्या ही लक्ष्मी रूपी है,हो इसका अहसास ।
कन्या जन्म सहज मंगलमय,धन दौलत का वास।।
कन्या आती भू मण्डल पर,बनकर मधु उपहार।
भाग्यशालिनी बन जाती मां , पहने कन्या हार।।
मात पिता कन्या को देकर,हो जाते खुशहाल।
कन्यादान मोक्ष का सूचक,य़ह है स्वर्णिम काल।।
ब्रह्मा खुश हो रचते कन्या,यह वैभव अवतार।
बिन कन्या के कभी न सम्भव,अनुपम सुरभित प्यार।।
कन्यादान यज्ञ अति पावन,उच्च कोटि का दान।
देवलोक सारा खुश होता,मिलता दैवी ज्ञान।।
भार समझता जो कन्या को,वह अधमाधम नीच।
कमल नहीं वह हो सकता है,केवल दूषित कीच।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/10, 11:21] Dr.Ram Bali Mishra: नमामि मातृ शारदे
नमामि मातृ शारदे प्रसीद मातृ शारदे।
भजामि हंसवाहिनी कृपालु दिव्य शारदे।।
महान काव्य लेखिका हिताय पंथ साधिका।
सदैव प्रेम धारिका प्रशांत स्नेह राधिका।।
विनम्रता असीम है,सुपूजनीय शारदे।
विवेकिनी विकासपूर्ण मोक्ष मंत्र शारदे।।
निरोग धाम सिद्धिदा स्वयं प्रसिद्ध बुद्धिदा।
प्रशंसनीय कर्म सर्व वंदनीय शारदे।।
सुवीन विज्ञ वादिनी प्रवीण वाद्य यंत्रिका।
सुवाक्य लेख लेखनी सुलेख मातृ शारदे।।
अमूल्य मूल्यवान मान ध्यानलीन ब्राह्मणी।
निदान वेद दिव्यमान द्रव्य दान शारदे।।
अनात्म आत्म रूपिणी मनोहरी शिवा प्रिया।
सरस्वती स्वनाम धन्य श्वेत मातृ शारदे।।
अतीत वर्तमान आदि अंत से अनंत को।
वरद बनो दया करो कृपा निधान शारदे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/10, 12:10] Dr.Ram Bali Mishra: तूफान (मधु मालती छंद )
मापनी 2212,2212, 2212, 2212
आता भले,रुकता कहाँ,आना लगा,जाना लगा।
गाता भले,रोता कभी,आता भगा,जाता भगा
सुख का यहाँ,दुख का यहाँ, स्थायी सफ़र,है ही नहीं।
गोरा शहर, काला मगर,उत्तम डगर,है ही नहीं।।
संवेग से,दूरी रहे,विचलित नहीं,होना कभी।
डरना नहीं,डट कर लड़ो,संकट नहीं,थमता कभी।।
तूफ़ान के, परिणाम को,समझो नहीं, काला कभी।
अंकुर छिपा,वट बीज का,निर्माण है,मोहक कभी।।
हँस कर जियो,खुश हो चलो,पीते रहो,गम को सदा।
रोना नहीं,आँसू नहीं,बैठो नहीं,बढ़ना सदा।।
जीवन बने,बहता सलिल,बहते रहो,गाते रहो।
तूफ़ान से,डरना नहीं,लड़ते रहो,जीते रहो।।
ग़म का मदिर,भावुक करे,चिंता मिटे,चिंतन चले।
मायूसियत,जाती रहे,मंजुल सृजन,फूले फले।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[13/10, 12:32] Dr.Ram Bali Mishra: मां सरस्वती स्तोत्र
सदा प्रसन्नना मना दयावती कलावती।
स्वयं अनंत स्वामिनी विराट मां सरस्वती।।
कृपालुता सहिष्णुता पुनीत धर्म धारिणी।
असीम प्रेम मग्न भाव शुद्ध सत्व कारिणी।।
अजेय हंसवाहिनी विवेक बुद्धिदायिनी।
निवेदनीय वंदनीय पूजनीय मानिनी।।
खड़ी सदैव सत्य पंथ ज्ञेय विज्ञ धर्मजा।
बनी हुई प्रमाण आप धीर वीर सर्वजा।।
सुनीति लेखनी बनी लिखा करे चला करे।
पवित्र ग्रंथ गामिनी दिखे सदा भला करे।।
अनन्य भक्त दास ये पुकारता बुला रहा।
सुनो सदैव प्रार्थना कवित्त को पिला रहा।।
“नहीं” कभी कहो नहीं अनाथ को सँवार दो।
मना कभी करो नहीं अभिन्न जान प्यार दो।।
क्षमापराध मां करो हरो समस्त वेदना।
विराजमान मां रहो करो सचेत चेतना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/10, 11:51] Dr.Ram Bali Mishra: कृपा बनी रहे
कृपा बनी रहे अगर नहीं कहीं अभाव है।
प्रभाव नित्य प्रेम का स्वयं अमी स्वभाव है।।
कृपालुता दयालुता सहानुभूति तीव्रता।
अकाट्य योगबद्धता परानुभूति व्यग्रता।।
अतीव स्नेह जाग्रता करुण रसामृता महा।
महान है वही यहाँ कृपा कटाक्ष जो गहा।।
समर्पणाय वृति भावना कृपा वसुंधरा।
जिसे मिली कृपा सुधा वही हुआ सुखी हरा।।
नहीं कृपा जिसे मिली वही मनुष्य मरुधरा।
न पा सका कभी खुशी रहा सदैव अधमरा।।
सहिष्णुता उदारता महान भव्य नम्रता।
सहोदरी कृपालुता विभूति सौम्य दिव्यता।।
परोपकार शिष्ट आचरण कृपा दिला रहे।
सुसभ्यता अमोल नींव को अमुल पिला रहे।।
कृपा समुद्र दर्शनीय ईश वृष्टि यदि करें।
नहीं दुखी कभी मनुष्य शक्ति यदि कृपा करे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/10, 17:54] Dr.Ram Bali Mishra: : सताना नहीं गरीब को
नहीं गरीब को कभी सताइए हुजूर जी।
गरीब के कुकृत्य को बताइए हुजूर जी।।
गरीब रक्त दान कर बना रहा अमीर को।
खुशी खुशी पिसा रहा नहीं कभी अधीर है।।
शिकार हो रहा स्वयं परंतु शीलवान है।
नहीं कहीं विरोध है पवित्र भाव दान है।।
प्रतीक है मनुष्य का सुशांत ध्यान धीर है।
चले सदैव कर्म पथ दहाड़ता सुधीर है।।
हुजूर तुम जरूर हो अनाथ को सता रहे।
गरीब को मिटा मिटा सदा धता बता रहे।।
भले अमीर तुम बने नहीं अमीर दिल कभी।
जवाब दो न मौन हो पवित्र तुम नहीं कभी।।
मिठास है गरीब में खटास है अमीर में।
सदा गरीब शुद्ध है अशुद्धियां ज़मीर में।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[15/10, 16:47] Dr.Ram Bali Mishra: सर्वसाधिका मातृ शैलजा (मुक्तक)
मातृ शैलजा सर्वसाधिका।
धर्म धुरंधर युद्ध नायिका।
मां दुर्गा का प्रथम नाम प्रिय।
अति कल्याणी संत पालिका।
शिव अतिशय प्रिय तुझको लगते।
सृष्टि मर्म सब तुझसे कहते।
महा शक्तिसम्पन्न सात्विकी।
तुझे देख सारे दुख भगते।
वीरों में तुम महा वीर हो।
युद्ध क्षेत्र में परम धीर हो।
पूजा करते सदा राम जी।
भक्त हितैषी धनुष तीर हो।
सर्व देवता तुझमें रहते।
राक्षस वध को प्रेरित करते।
सकल शक्तियों की तुम ज्वाला।
धर्म स्थापना हेतु फड़कते।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/10, 10:22] Dr.Ram Bali Mishra: मौन
मौन में छिपा हुआ सुशक्ति का कमाल नित्य।
मौन शक्ति स्रोत है अमूल्य ध्यान ज्ञान कृत्य।।
व्यग्रता मिटे सदैव क्रोध मोह नष्ट होत।
उर्वरा बढ़े सदैव कर्मशील मौन पोत।।
धर्म कर्म जागरण अशांति का विनाश भाव।
प्रेम स्नेह राशियाँ हरें अनित्य दुष्प्रभाव।।
हिंसकीय वृत्तियाँ जलें मरें भगें सदैव।
दुष्टता गले टले सरोज मन उगे सदैव।।
प्यास सिर्फ योग साध्य काम्य शुभ्र साधनार।
ज्ञान शुद्ध बुद्धि देय प्राण लोक हित प्रचार।।
मौन व्रत अमोल विंदु सिन्धु सम अनंत धार।
वर्ण श्वेत चित्त रश्मि धीर हीर वज्र द्वार।।
आरतीय भारतीय पूजनीय नम्र तार।
मौन हो करो समग्र विश्व से असीम प्यार।।
स्वर्ण के समान मौन हारता विभीषिकार।
सर्व गुण विराजमान स्तुत्य गेय द्वारचार।।
निधि प्रधान सभ्य शिष्ट स्वर्ग से अधिक महान।
रम्य प्रिय सुरम्य सत्य मोहनीय आन बान।।
पाल्य मौन हो सहर्ष रच विधान रंगदार।
बन सहिष्णु साधु तुल्य अति प्रगल्भ शिव उदार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/10, 14:33] Dr.Ram Bali Mishra: प्यारा मन
प्यार बिना य़ह जीवन सूना।
जीवन का य़ह भव्य नमून।।।
प्यार करो तजि के कुटिलाई।
प्रेमिल भावन घाव दवाई ।।
आ कर पास सदा रुक
जाओ।
धीर बने नित प्यार जगाओ।।
मूरत में मधु मादकता हो।
स्नेहिल भावुक मोहकता हो।।
त्याग जगे घर छोड़ चले आ।
शीश झुकाकर शीघ्र भगे आ।।
आतुर सुन्दर रास रचाओ।
निर्मल मोदक भाव जगाओ।।
उर्मिल नर्तन हो मनमानी।
संगति में मधु प्रीति सुहानी।।
कोमल शीतल स्पर्श अनोखा।
दृश्य मनोरम मंजर चोखा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/10, 16:10] Dr.Ram Bali Mishra: दिल सच्चा हो
बात चीत से मोड़ मुँह,हो अपने में लीन।
सारे काम पड़े हुए,रह उनमें तल्लीन।।
बात नहीं रुचिकर लगे,तो मत पीछे भाग।
बहुत लोग हैं पास में,केवल उनमें जाग।।
प्रांजल भावों के बिना,दिल है सदा उदास।
जिससे मतलब है नहीं,रहो न उसके पास।।
जिसके प्रति मधु भाव हो,करो उसी से बात।
कभी फालतू मनुज पर,मत बरसो दिन रात।।
प्यार करे जो हृदय से,हो उससे संवाद।
कभी न सूखे पेड़ से,करना व्यर्थ विवाद।।
करना है तो प्यार कर,सच्चे मन से नित्य।
कभी न ऊबो मित्रवर,हो प्रेमिल उर कृत्य।।
सच्चाई की राह पर,चलता है नित प्यार।
जिसकी ढुलमुल नीति है,कभी न सच्चा यार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[17/10, 10:41] Dr.Ram Bali Mishra: सुंदरता (चौपाई )
मापनी 211 211 211 22
सुंदरता अनमोल ख़ज़ाना।
आत्म प्रवाहित दिव्य निधाना।।
सार्थक उत्तम आलय सादा।
रक्षक रात्रि दिवा मर्यादा।।
पावन आश्रय आश्रम सत्या।
स्वस्थ प्रकाशन भावन प्रीत्या।।
सृष्टि रचा करती अति भव्या।
सादर प्रेम करे नित नव्या।।
खींच रही यह चुम्बक जैसा।
भावुक मोहक बोधक जैसा।।
राग भरे अनुराग सिखाये।
स्तुत्य सदा यह पंथ दिखाये।।
शुद्ध प्रबुद्ध अमंगलहारी।
सुन्दरता प्रिय शिष्ट विचारी।।
जो इसके प्रति शीश झुकाये।
सभ्य सुशील वही बन जाये।।
जो इसका अपमान किया है।
रौरव नर्क विषाक्त गया है।।
जो इसके शरणागत होता।
उन्नत बीज वही नित बोता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/10, 15:24] Dr.Ram Bali Mishra: मोहिनी मूरत (चौपाई)
निर्मल मन अतिशय प्रिय मोहक।
सच्चाई का सुन्दर द्योतक।।
प्रांजल भाव जहां रहता है।
उत्तम पथ को यह गढ़ता है।।
शुभ कृति की अति उत्तम रचना।
मुख से निकले पावन वचना।।
आतंकी का वध य़ह करता।
पाक साफ य़ह संस्कृति रचता।।
यही प्रेम का ज्ञान सिखाता।
मानसरोवर में नहलाता।।
संतों का य़ह गंगासागर।
परम पुण्य धाम का आखर।।
मोहिनीय मूरत है चाहत।
राधे कृष्णा में य़ह व्यापत।।
स्नेह और रति नीति प्रणय है।
सकल लोक का यहाँ विलय है।।
चक्र सुदर्शन इक कर धारे।
सहज प्रेमवत संत उबारे।।
मोहन वह जो राक्षस मारे।
सभ्य कॄष्ण बन जग को तारे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/10, 16:23] Dr.Ram Bali Mishra: दिल से दिल के तार
दिल में मन तो बसा हुआ है।
जन्म जन्म से सज़ा हुआ है।।
नहीं निकल कर यह जायेगा।
मधु वर माला पहनायेगा ।।
शुभ सोलह शृंगार दिखेगा।
मस्ताना दिल नित चहकेगा।।
गगन मगन हो नृत्य करेगा।
सुरभित प्याला नित गमकेगा।।
जन्मांतर तक मिलन रहेगा।
दीवानापन सदा खिलेगा।।
धरती अम्बर मिल जायेंगे।
मन के वंधन खिल जायेंगे।।
क्यों चुपचाप पड़े रहते हो?
दिल की बात नहीं करते हो।।
चुप हो कर क्या मिल जायेगा?
क्या सचमुच मन खिल जायेगा??
दिल से दिल का तार जुड़े जब।
अति मनमोहक राग बढ़े तब।।
अंग अंग में तीव्र जोश हो।
मन में मस्ती सुखद होश हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/10, 08:18] Dr.Ram Bali Mishra: दिल में सारा व्योम
मात्रा भार 11/11
दिल से दिल के तार,जोड़ कर आना रे।
मेवा मिश्री प्यार,हमेशा पाना रे।।
दे कर उर का हार,सहज नित झूमो रे।
अंतस से सत्कार,गगन को चूमो रे।।
आना बनकर मीत,तुम्हारी चाह्त है।
बिना तुम्हारे मौन,सदा मन आहत है।।
दिल कोमल मासूम,परम मनभावन है।
इसका मधुर स्वभाव,यही शिव सावन है।।
लिखो प्रणय के गीत,सुहानी रातों में।
मन में मधु संगीत,ध्वनित हो बातों में।।
बन गुलाब का फूल,सुगंधित आना रे।
बनकर दिव्य बहार,हृदय छा जाना रे।।
एक तुम्ही मधु मीत,हृदय में उतरो रे।
खाओ कसम सुजान,नहीं पर कतरो रे।।
तुमसे ही बस नेह,न कोई दूजा है।
मन उर एकाकार,यही प्रिय पूजा है।।
मनभावन दिलदार,बहुत ही भोला है।
सतत मधुर रसधार,बहाता चोला है।।
दिल में सारा व्योम,परम यह व्यापक है।
हरदम य़ह तैयार,प्रीति का मापक है।।
जिसको इसका ज्ञान,वही प्रिय ज्ञानी है।
जिसको इसका भान,वही सम्मानी है।।
जो इसको दे तोड़,वही अति निर्दय है।
जो इसको दे जोड़,वही प्रिय मधुमय है।।
यही प्रेम भंडार,नहीं य़ह घटता है।
यह है अक्षय पात्र,निरन्तर बढ़ता है।।
इसका हो विस्तार,गगन तो अपना है।
निज कर में ब्रह्मांड,नहीं य़ह सपना है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/10, 11:07] Dr.Ram Bali Mishra: स्वयं सरस्वति मातृ शैलजा (मुक्तक)
दंभ द्वेष से दूर खड़ी मां।
अतिशय अनुपम पावन महिमा।।
विद्या दान किया करती हो।
शुभ पुस्तक दे दुख हरती मां।।
तुम्हीं शैलजा सर्वसाधिका।
धर्म धुरंधर युद्ध नायिका।
मां दुर्गा का प्रथम नाम प्रिय।
अति कल्याणी संत पालिका।
शिव अतिशय प्रिय तुझको लगते।
सृष्टि मर्म सब तुझसे कहते।
महा शक्तिसम्पन्न सात्विकी।
तुझे देख सारे दुख भगते।
वीरों में तुम महा वीर हो।
युद्ध क्षेत्र में परम धीर हो।
पूजा करते सदा राम जी।
भक्त हितैषी धनुष तीर हो।
सर्व देवता तुझमें रहते।
राक्षस वध को प्रेरित करते।
सकल शक्तियों की तुम ज्वाला।
धर्म स्थापना हेतु फड़कते।
मां सरस्वती का हो गायन।
भाजनामृत गीतों पर वादन। हंसवाहिनी नाम पवित्रम।
हो मां तव नियमित अभिवादन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/10, 18:07] Dr.Ram Bali Mishra: जीवन को खुशहाल बनाओ
मात्रा भार 16/14
क्या तुम सचमुच भूल गये हो,या नटखट नादानी है?
नहीं समझ पाता कोमल मन,क्या य़ह प्रीति कहानी है??
लुका छिपी क्यों करते प्यारे, क्या इसमें ही मजा बहुत?
नहीं सामने खुल कर आते,क्यों देते हो सजा बहुत??
तुझसे ही है नाता सच्चा,क्यों अधीर तुम होते हो?
खोल हृदय के पट को प्रियवर,क्यों आपा तुम खोते हो??
शंका हो यदि मन में कोई,तो आओ संवाद करो।
कह दो अपनी बात बराबर,कभी न तुम प्रतिवाद करो।।
जीवन का है नहीं ठिकाना,थोड़े दिन का मेला है।
एक राह के सभी मुसाफिर,सारा जीवन खेला है।।
हँसी खुशी से बातेँ करना,ही जीवन का मकसद है।
जीवन में उत्साह अगर हो,तो य़ह पावन वरगद है।।
मस्ताना अंदाज अगर हो,तो जीवन आनंदित है।
खुशियां देह गेह में आतीं,मतवाला मन स्पंदित है।।
जो भी करता जाप प्रेम का,
वह भवसागर पार करे।
जिसे स्नेह से हरदम नफ़रत,वही सिन्धु में डूब मरे।।
मन काया दिल साफ स्वच्छ से,मानव तरुवर चन्दन है।
जिसके अमृत भाव मनोरम,उसका नित अभिनंदन है।।
आकर निकट मनोहर बातें,घुलमिल करके करना है।
जीवन का संग्राम मिटेगा, प्रीति सुधा रस भरना है।।
साहित्यकार:डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/10, 10:29] Dr.Ram Bali Mishra: नारी शक्ति
मात्रा भार 11/11
नारी शक्ति महान,विश्व की रानी है।
पूजन करना नित्य,यही शिव ज्ञानी है।।
जिसको इसका ज्ञान,वही विज्ञानी है।
नारी रत्न अथाह,दयालू दानी है।।
नारी है संगीत,प्रेम की धारा है।
गायन मोहक स्निग्ध,नृत्य अति प्यारा है।।
यही कला साहित्य,गीत अति पावन है।
सरस्वती साकार,मधुर मनभावन है।।
इसमें स्नेह अनंत,सृष्टि की धात्री है।
परम त्याग की मूर्ति,सहज करपात्री है।।
विदुषी सत्य सुजान,ज्ञान की राशी है।
यही प्रकृतिमय बीज़,सदा अविनाशी है।।
हरती सब संताप,भाव अति शीतल है।
उर में जोश अपार,उमंगित निर्मल है।।
नारी रूप अनेक,सभी अति उज्ज्वल हैं।
यह रहस्य संसार,सर्व गुण विह्वल है।।
यह गंगा का नीर,विष्णु से वंदित है।
शंकर का यह प्यार,जटा में स्पंदित है।।
य़ह ब्रह्मा की सृष्टि,मधुर मुख मण्डल है।
यह आभा की खान,मद्य चंचल है।।
यही पद्य का स्रोत,अमिय संसाधन है।
विश्व विजय का सार,नारि अभिवादन है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/10, 17:16] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति:एक खोज (वीर रस)
अति मोहक भावुक हो चितवन,भरा हुआ हो दिल में प्यार।
नैनों से मादकता झलके,कोमल भाव स्नेह का द्वार।
बरसे हरदम स्नेह रसामृत,मृदुल भवन का हो विस्तार।
मस्तक पर हो तिलक लालिमा,केशों में हो शिष्टाचार।
बात चीत उत्तम मस्ताना,दिल में उत्तम स्वच्छ विचार।
कहीं नहीं से शिकवा आये,स्पष्ट हृदय मन के अनुसार।
होली और दिवाली का हो,अति उत्तम पावन त्योहार।
मनमोहन संवाद सदा हो,नफरत को हरदम धिक्कार।
रसिक भावना का उद्भव हो,टप टप टपके रस की धार।
राधे कृष्णा की संस्कृति का,दिखे जगत में सहज प्रचार।
सात्विकता के प्रिय आलय में,सत्य द्रव्य से हो उपचार।
एकाकार विश्व मानवता,करुण धर्म का पालनहार।
कोयल का हो अमर बसेरा,मधुर मधुर बोली का भान।
गीत सुरीले कंठ विराजे,मोहक बुद्धि करे गुणगान।
प्रतिनिधि आतम बने हमेशा,चित्तवृत्ति हो माणिक खान।
हीरा प्रीति चमकती जगमग,इसे ढूढ़ने को नित ठान।
प्रीति रसायनशाला खोजो,पूरे हों दिल के अरमान।
गंगोत्री के पावन जल में,डूब डूब कर करो नहान।
तभी मिलेगी प्रीति सुन्दरी,जब मन हो निर्मल मनमान।
जीवन का तब ध्येय अलौकिक,प्रीति रीति का हो जब ज्ञान।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/10, 11:37] Dr.Ram Bali Mishra: नहीं बात होगी (मुक्तक)
मापनी:122 122 122 122
नहीं आज से सुन कभी बात होगी।
तसल्ली मिलेगी नहीं रात होगी।
ज़माना गुजरता भले बीत जाये।
नहीं अब कभी भी मुलाकात होगी।
न सुलगे कभी आग हिम्मत जुटाओ।
मनोबल हमेशा मगन हो दिखाओ।
न टूटें कभी भी हृदय की लकीरें।
चलो मस्त हो कर न दिल को दुखाओ।
सहज अलविदा हो चलो वीर धीरे।
चमकता सितारा बनो धीर हीरे।
न आशा करो छोड़ दुनिया किनारे।
यहाँ है न कोई सभी हैं अधीरे।
नहीं बात सुनना किसी को गवारा।
मतलबी मनुज चाहते हैं सहारा।
न सिद्धांत इनका न कायम कहीं ये।
बहुत स्वारथी ये इन्हें अर्थ प्यारा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/10, 14:50] Dr.Ram Bali Mishra: साहित्य
साहित्य समाज का दर्पण है।इसके द्वारा सामाजिक अनुभूतियों और सामाजिक दशाओं का चित्रण किया जाता है।इसके द्वारा हित की पूर्ति की जाती है तथा य़ह मनोरंजन का साधन भी है।व्यक्तित्व के निर्माण और विकास में साहित्य की अहं भूमिका होती है।पशु प्रवृत्ति का उन्मूलन और स्वस्थ मानव समाज का उन्नयन ही साहित्य का ध्येय होता है।विभिन्न रसों की अनुभूतियों के लिये साहित्य का अनुशीलन परम आवश्यक होता है।समाज के सौंदर्य बोध के लिए साहित्य सर्जना नितांत अपेक्षित है।”क्या ” “क्यों ” “कैसे” और “क्या होना चाहिए”का रसात्मक वर्णन और विवेचन ही साहित्यशास्त्र कहलाता है।
उपदेश,प्रेरणा,सहानुभूति और आत्मबोध के साथ साथ य़ह आत्माभिव्यक्ति का एक सशक्त माध्यम है।
साहित्य के अभाव में मनुष्य मौन और मूक है।साहित्य हमें कर्तव्यपथ की ओर चलने व बढ़ने का संकेत देता है।हम मनुष्य हैं क्योंकि हमारे पास साहित्य है।
डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/10, 16:13] Dr.Ram Bali Mishra: साहित्य:एक विश्लेषण
मात्रा भार 11/11
है साहित्य हितार्थ,लेखनी चलती है।
करता सदा कमाल,लेखनी गढ़ती है।।
यह है सुख का सार,विनोदी भावन है।
मनरंजन का केंद्र,हृदय से पावन है।।
रखता सबका ख्याल,दृष्टि में समता है।
करता भावोद्गार ,हृदय में ममता है।।
दशा दिशा का ज्ञान,स्तुत्य यह दर्शन है।
सभी रसों की खान, रसामृत नर्तन है।।
विश्लेषण व्यवहार,परत को खोले यह।
है य़ह मधु विज्ञान,प्रेम से बोले य़ह।।
य़ह समाज का ज्ञान,निरंतर करता है।
यहाँ वहाँ हर ओर,स्वतंतर चरता है।।
यह साधन कवि धाम,काव्य की रचना है।
मस्ताना अनमोल,सुघर प्रिय वचना है।।
है साहित्य अनंत,सहज हितकारी है।
करता उत्तम कार्य,बहुत उपकारी है।।
नहीं किसी से द्वेष,दंभ का मारक है।
सुष्ठ स्निग्ध अनुराग,असुर संहारक है।।
करता है शिव कर्म,मर्म का ज्ञाता है।
यही विश्व गुरुदेव,अमर व्याख्याता है।।
जिसको इससे प्यार,वही हंसासन है।
वही सरस्वति पुत्र,वेद प्रिय वासन है।।
है साहित्य विराट,मनुज की गरिमा है।
हो इससे अनुराग,इसी में महिमा है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/10, 15:32] Dr.Ram Bali Mishra: दुर्गा अष्टमी
जहाँ पहुँच अभेद्य है वहीं सदेह दुर्ग मां।
विराट शक्ति सर्व मान्य पूजनीय दुर्ग मां।
असुर विनाशकारिणी सदैव वंदनीय मां।
सुशांत पंथगामिनी प्रशांत दिव्य भव्य मां।
स्वरूप सर्व मोहिनी विशाल नेत्र दामिनी।
सुसाधु सिद्ध सेवनीय दैत्यवंश नाशिनी।
ओम् ऐं ह्रीं आदि चंड मुंड घातिनी।
गगन अनंत युद्ध भूमि जोश धैर्य वादिनी।
सुकाल अष्टमी पवित्र धर्म श्रेय धारिणी।
त्रिकाल दर्शनीय मोक्ष धाम पीर हारिणी।
अपार शक्ति सम्पदा त्रिशूल हस्त शोभते।
खुशी सदैव संत वृंद देख मातृ लोभते।
ममत्व मातृ अष्टमी सुपूज्य काल अंत तक।
शुचिर सुधा समान पेय गेय काम्य संत तक।
अमर्त्य है अनादि है अनंत अष्टमी सदा।
पवित्र कर्म धर्म योग यज्ञ होम सर्वदा।
उपासना किये सदैव रामचन्द्र शक्ति की।
विजय उन्हें मिली अनन्य भक्ति की अजेय की।
कृपालु दुर्ग मां सहाय भक्त को सँवारती।
पवित्र भावना करे सदैव मातृ आरती।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/10, 09:49] Dr.Ram Bali Mishra: सिद्धिदात्री मां दुर्गा जी
मापनी:2122 2122 212
सिद्धिदात्री मातृ भव्या साथ हैं।
दे रही हैं प्रेम उर्मी नाथ हैं।
सींचती हैं ज्ञान देतीं भक्त को।
खींचती हैं आप ही आसक्त को।
खास की आशा बनी वे आ रहीं।
स्नेह आभा सी खिली वे छा रहीं।
वाक्य का आशीष वाणी दायिका।
भक्त के सौभाग्य की मां गायिका।
सिद्ध पीठाधीश्वरी मां वंदनी।
सातवें आकाश में मां नंदिनी रम्य भोली सिद्ध साधू चंदनी।
कारुणी उच्चार मोहक क्रंदनी।
पावनी साकार शोभा खान हैं।
आप में सिद्धांत धर्मी ज्ञान हैं।
कामना सारी मिली माता मिलीं।
भावना सात्विक पली माता खिलीं।
मातृ की आराधना में सिद्धि है।
मान में सम्मान में अभिवृद्धि है।
आसरा में मां सदा सहयोगिनी।
सिद्धिदानी दर्श प्यारी योगिनी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/10, 20:02] Dr.Ram Bali Mishra: सादर नमन
आज कर रहा तुझे प्रणाम हूँ।
शक्ति के स्वरूप को सलाम हूँ।।
भाव की पवित्रता में लीन मन।
कर रहा हूँ प्रेम से तुझे नमन।।
प्रेमगत विशेषता महान है।
प्रीति सिन्धु में सदा नहान है।।
आभवा विभोर आज कर रही।
चित्तवृत्ति गंदगी से डर रही।।
माननीय वंदनीय नाम हो।
कामनीय सौम्य भाव काम हो।।
चांदनीय चन्दनी चकोरिनी।
नृत्य कृत्य मोहिका मयूरिनी।।
प्यार के मिजाज को प्रणाम है।
जीत स्नेह प्रीति को सलाम है।
हो रहा अमोल भाव भोर है।
जिंदगी सुलेख चित्तचोर है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/10, 13:13] Dr.Ram Bali Mishra: विजयादशमी की हार्दिक शुभकामनाएं
विजय दशमी मनाएंगे,विभीषण लंक आएंगे।
न रावण अब दिखे जग में, सदा राक्षस जलाएंगे ।।
मरेगी गंदगी चित की,असुर का नाश करना है।
बहाना खून पापी का,धरा को शांत रखना है।।
बहेगी राम की गंगा,यहां शंकर विराजेगे।
सदा हो राम की सेना,अमिय कलशा सजाएँगे।
सहज आतंक मर जाये,अधर्मी को मिटाएँगे।।
बनेगा शुद्ध आश्रम जग,असुर सब मौत पाएंगे।
विजय दशमी मने हरदम,हमेशा प्रेत को जारो।
उजाड़ो भूत का डेरा,सदा दूषित मनुज मारो।
लगे नित संत का मेला,रहें सब राम में मानव।
दुशासन कंस मिट जाएं,दिखें मत भूमि पर दानव।
रहे मानस सतत पावन,विजय दशमी यही कहती।
सदा निर्मल रहे जगती,कटुक भाषा दिखे भगती।
लगे कम भी बहुत ज्यादा,रहे संतोष का भावन।
विजय हो आत्म मन्थन की,मनोरथ हित परक साधन।
सदा हो सत्व मन सावन,तपस्वी राम बन चलना।
चरित श्री राम का पालन,विजय के हेतु नित करना।
विजय दशमी सनातन है,मधुर संदेश राघव का।
कलुष सब भाव जल जाएं,यही है धर्म माधव का।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/10, 19:22] Dr.Ram Bali Mishra: सानेट (दोहा )
करते सब हैं अर्थ की,नहीं स्नेह की बात।
सब के मन में विभव की,रहती हरदम चाह।
मन में फितरत हर समय,सदा खोजते राह।
धन के भूखे मनुज का,लगता दिन भी रात।
कामी मन को है लगी,सदा काम की भूख।
रग रग में है वासना,कूकर जैसी दौड़।
भवसागर में कूद कर,
सदा लगाता पौंड़।
पेट कभी भरता नहीं,तन जाता है सूख।
चित्तवृत्ति का क्या कभी,होगा मूल निरोध?
काम वासना कुंडली,बैठी मन में मार।
होगा मानव मुक्त कब,अहं प्रश्न का सार।
इस पर होना चाहिए,सदा निरन्तर शोध।
यम नियमादिक योग से,मन का हो उद्धार।
उत्तम पावन भाव का,उर में हो संचार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/10, 10:41] Dr.Ram Bali Mishra: जिज्ञासा (अमृतध्वनि छंद )
ज्ञानी बनता है वहीं,जिसमें ज्ञान पिपास।
जिज्ञासा भरपूर है,पाने की अति आस।।
पाने की अति आस,सदा वह,उत्सुक रहता।
करता रहता,खोज निरंतर,आगे बढ़ता।।
प्रश्न बनाकर,तार्किक हो कर,मानव ध्यानी।
हर कारण को,जान सहज में,बनता ज्ञानी।।
विकसित मन मस्तिष्क में, जिज्ञासा की जान।
जितना जो जिज्ञासु है,उतना उसको ज्ञान।।
उतना उसको ज्ञान,हमेशा,खोजा करता।
देखा करता,चिंतन करता,उत्तर पाता।
बार बार वह,करे परीक्षण,रुक बढ़ जाता।।
वैज्ञानिक है,विश्लेषक है,होता स्थापित।
देता रहता,ज्ञान कोश को,मानव विकसित।।
जिज्ञासा के उदर में,भरा ज्ञान भंडार।
पाने की हो यदि ललक,खुला हुआ है द्वार।।
खुला हुआ है द्वार,सूंघते,हरदम चलना।
दृढ़ निश्चय हो,करो प्रतिज्ञा,पल पल बढ़ना।।
प्रश्न बने जो,समाधान हो,रहो न प्यासा।
कठिन समस्या, जब हल होती,पुनि जिज्ञासा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/10, 16:28] Dr.Ram Bali Mishra: शुभांगी छंद
8/8/8/6
जो भी आया,आस लगाये,नहीं निराशा,हाथ लगी।
देना चाहा,जितना सम्भव,बिना हिचक के,प्रीति पगी।
निर्मल मन से,खुशी हृदय से,भावुकता में,नीति जगी।
पूर्वाग्रह में,कभी न जकड़ा,दूषित बाधा,सहज भगी।
जीवन दाता,ज्ञान विधाता,अति सुख दाता, हितकारी।
प्रिय सहयोगी,मन से योगी,उत्तम मानव,शिवधारी।
बिन शंका के,परहितकामी,दिखे दिलेरी,मनहारी।
भाव उड़ेले,सदा गगनमय,चुम्बकीयमय,फुलवारी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/10, 21:31] Dr.Ram Bali Mishra: लघु(दोहे)
लघु को छोटा मत समझ,लघु है बहुत महान।
देख सदा परमाणु को,अति बलशाली बान।।
जितना ही जो सूक्ष्म है,उतना दिखे सशक्त।
परम सूक्ष्म भगवान के,आगे जगत अशक्त।।
राजा बलि का दर्प भी,होता चकनाचूर।
किये ईश वामन सहज,बलि मर्दन भरपूर।।
वह छोटा है आदमी,जिसके तुच्छ विचार।
वैचारिक भूगोल का,हो पावन विस्तार।।
बड़ा वहीं इंसान है,जिसके सात्विक भाव।
डूब रहे का साथ दे,बने सफ़लतम नाव।।
लघुता उसमें है भरी,जिसके भाव अशुद्ध।
तन से लघु के हृदय में,रहता प्रेम विशुद्ध।।
लघु भी छाया बन करे,जगती का उद्धार।
है पवित्र की दृष्टि में,सारा जग परिवार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/10, 11:06] Dr.Ram Bali Mishra: वरदान (दुर्मिल सवैया )
वरदान बिना सब शून्य लगे य़ह रत्न अमोल सदा सुख दे।
जिसको वरदान मिला प्रभु का वह धन्य महान विभा शुभदे।
करता प्रिय कर्म मनुष्य यदा उससे खुश होत प्रिया शरदे।
तम जीवन का मिटता तब है शिव लोक प्रकाश कृपा कर दे।
जिसके मन में रहता हित भाव मनुष्य वही जग में सफला।
मधु चिंतन नित्य करे मन में कटती विपदा भग जात बला।
उर में जगती चलती बढ़ती हँसती रहती अति स्तुत्य कला।
बहती मधु धार सदा दिल में वह मानव लागत दिव्य भला।
वरदान वहीं नर पावत है जिसमें अति मोहक भाव भरा।
रहता चलता बन संत महा प्रिय सेवक मित्र सदा गहरा।
करता अभिनंदन वन्दन है सबको वह जोड़त है मधुरा।
सबके प्रति उत्तम भाव रखे रहता मन में नम लोच हरा।
वरदान मिला शिवशंकर को जग से तम मोह भगावत हैं
हरि विष्णु किया करते जग पालन प्रेम सुधा बरसावत हैँ।
प्रिय ब्रह्म किया करते रचना खुश हो धरती हँस गावत है।
जिसको जिसको वरदान मिला वह ढोल मजीर बजावत है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/10, 15:07] Dr.Ram Bali Mishra: फकीर हूँ (मुक्तक)
फकीर हूँ नहीं कभी गरीब हूँ।
दिखूँ सदा मजाकिया अजीब हूँ।
नहीं कभी उदास का सवाल है।
मनुष्य मात्र भातृ के करीब हूँ।
धरा समान नाचता यहाँ वहाँ।
दिनेश के प्रकाश सा नहीं कहाँ?
पुनीत भाव उर्वरा मनोज हूँ।
दिखूँ सदा फिरंग सा ज़हाँ तहाँ।
चलायमान अस्तिमान नीर हूँ
सदाबहार मस्त ध्यान धीर हूँ।
न मोह की तुला कभी खड़ी दिखे।
सुखांत गीत गा रहा कबीर हूँ।
अघोर पंथ सेवनीय पीर हूँ।
जरा नहीं कपाट प्यार हीर हूँ।
न अंध दंभ से कभी सटा मिलूँ।
परम्परा सनातनी फकीर हूँ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/10, 18:29] Dr.Ram Bali Mishra: कितना करें बखान?
मात्रा भार 11/11/11
बहुत मतवाले हो,मधुर रसवाले हो,कितना करें बखान?
परम रंगीले हो,स्नेह मन पीले हो,सदा करें सम्मान।।
सोच में माधुर हो,प्रेम के आतुर हो,रहो हमेशा संग।
नित्य रहना ही है,नृत्य करना ही है,देख प्रेम का गंग।।
बहुत मस्ताना हो,सुघर दीवाना हो,देते रहना भाव।
शुभ्र चंचलता से,दिव्य भावुकता से,छोड़ो भव्य प्रभाव।।
चमक शिव हीरा हो,दमक गंभीरा हो,तेरे जैसा कौन?
पूछ रहा मन मोर,कहीं नहीं है शोर,सारी धरती मौन।।
प्रणय का अभिनय हो, हृदय शुभ निर्भय हो,करना समय पुकार।
यही शुभ मौका है,नहीं कुछ शंका है,खुला प्यार का द्वार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/10, 08:23] Dr.Ram Bali Mishra: पति पत्नी और प्यार (अमृतध्वनि छंद )
पति पत्नी अरु प्यार में,यदि अटूट संबंध।
य़ह ज्यादा है स्वर्ग से,दिल का प्रिय अनुबंध।।
दिल का प्रिय अनुबंध,हृदय में,मोहक लाली।
अतिशय कोमल,भाव मनोरम,मादक प्याली।।
मधुरिम सोहर,सघन सनोहर ,पति पत्नी प्रति।
उमा प्रणय य़ह,सर्वाधिक मधु,शुभ वर शिव पति।।
पति पत्नी के प्यार में,मादक मधुर बहार।
शीतलता अनमोल है,प्रिय सुगंध की धार।।
प्रिय सुगंध की धार,गमकता ,मन में सावन।
हृदय सुमन है,प्रियतम मन है,बहुत लुभावन।।
सारा जीवन,अमृत जैसा,मोहक संपति।
संगति प्यारी,अति मनहारी,जिमि सिय रघुपति।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/10, 09:11] Dr.Ram Bali Mishra: प्यारा जीवन (कुंडलिया )
सारा जीवन प्रिय सफ़ल,श्रम के प्रति यदि चाह।
तन्मयता तल्लीनता,अति जुनून उत्साह।।
अति जुनून उत्साह,बढ़ाता मन बल आगे।
मन में रहे उमंग,मनुष्य हमेशा जागे।।
कहें मिश्र कविराय,मनुज का जीवन प्यारा।
ले पवित्र संकल्प,बिताये जीवन सारा।।
प्यारा जीवन है वही,जिसमें अमृत भाव।
सदा व्यवस्थित कर्म की,हो उसमें अति चाव।।
हो उसमें अति चाव,हमेशा उन्नत चिंतन।
करे स्वयं पर गर्व,कर्म का हो अभिनंदन।।
कहें मिश्र कविराय,मनुज हो सकता तारा।
यदि है दृढ़ विश्वास,कर्म पथ उज्ज्वल प्यारा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/10, 13:02] Dr.Ram Bali Mishra: कह मुकरी/मुकरिया छंद
धधकत दहकत जलत सहज ही,
नींद न आवत गाल बजावत,
कालिख पोते लगे भयंकर,
रे सखि ईर्ष्या,नहिं सखी आग।
सदा उतारे आरति बढ़ चढ,
हाँ में हाँ को चले मिलाये,
असहज बोली कभी न बोले,
रहे चेत में कभी न प्यारा,
रे सखि स्वार्थी,नहिं सखी मीत।
पढ़ने में मन सदा लगाता,
लिखने का शौकीन कहाता,
उन्नति हेतु सतत श्रम करता,
रे सखि लेखक,नहिं सखि शिक्षक।
चलते चलते नींद आ गयी,
सो जाने पर शांति छा गयी,
संघर्षों का किया सामना,
रे सखि पंथी,नहिं श्रद्धांजलि।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[29/10, 16:50] Dr.Ram Bali Mishra: छोड़ सब जाना है
मात्रा भार 11/11
थोड़े से संतोष,करे वह योगी है।
धन के पीछे भाग,रहा मन रोगी है।।
आत्मतोष की चाह,बनाती साधक है।
थोड़े में खुशहाल,दिव्य आराधक है।।
नश्वर यह संसार,देह भी नश्वर है।
हो मिथ्या का ज्ञान,सत्य परमेश्वर है।।
मिला हुआ है श्वांस,सुनिश्चित सीमा है।
निश्चित जीवन दंड,एक दिन धीमा है।।
करे मनुज शुभ कर्म,इसी में जीना है।
हो अमृत की बात,इसी को पीना है।।
हर भौतिक उपलब्धि,छोड़ कर जाना है।
यही सनातन सत्य,कर्म फल पाना है।।
हो सबका कल्याण,इसी पर चलना है।
वंदनीय हर जीव,इसी को करना है।।
जीवन को बिन स्वार्थ,समर्पित करना है।
यही जन्म का अर्थ,रथी बन चलना है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/10, 10:11] Dr.Ram Bali Mishra: गुजारा (स्वर्णमुखी छंद /सानेट )
बिना अर्थ के नहीं गुजारा।
धन ही जीवन का है साधन।
श्रम से हो इसका आराधन।
धन वैभव का सुखद नजारा।
जीना है तो अर्थ जरूरी।
बिन इसके सारा घर सूना।
संकटमय है प्रति पल दूना।
धन से सारी इच्छा पूरी।
भूखा प्राणी रोता रहता।
नहीं नींद उसको आती है।
खुशी निरंतर मिट जाती है।
सोता नहीं हमेशा जगता।
जीवन सदा गुजरता रहता।
अगर गुजारा मिलता रहता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/10, 16:26] Dr.Ram Bali Mishra: मिलता कहाँ अपार,प्यार तो मिथ्या है।
सूखा य़ह संसार,यहाँ सब झूठा है।
लगता मानव शून्य,अधिक मन रूठा है।।
सबमें दिखता स्वार्थ,सभी दिल कच्चे हैं।
सब मतलब के यार,मानसिक बच्चे हैं।।
देखो जाकर पास,समझ में आयेगा।
कभी न करना आस,सहज बिक जायेगा।।
यहाँ कहाँ है प्यार,अर्थ की नैया है।
दे कर उतरो पार,सभी छुट भैया हैं।।
सात्विकता की छांह,यहाँ से गायब है।
दिखते सभी अजीब,गरीब अजायब है।
यहाँ कहाँ सम्मान,सभी में फ़ितरत है।
बनते सभी महान,हृदय में नफरत है।
ईर्ष्या की भरमार,कपट सौदागर है।
तन मन विष की बेलि,जहर का आगर है।।
छोड़ जगत को घूम,अकेले चलना है।
कर आशा का त्याग,निरापद रहना है।।
नहीं प्यार की बात,कभी भी करनी है।
जो करता इजहार,जिन्दगी मरनी है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[31/10, 11:04] Dr.Ram Bali Mishra: सपने में (हंस गति छंद)
मापनी:11/9
आना बारंबार,सदा सपने में।
दिखे झलक हर रोज,सदा सपने में।।
जीवन हो उजियार,सदा सपने में।
मन में उमड़े प्यार,सदा सपने में।।
आना कर शृंगार,सदा सपने में।
आये मधुर बहार,सदा सपने में।।
खिले हृदय में प्यार,सदा सपने में।।
रिमझिम गिरे फुहार,सदा सपने में।।
मधुमिल हो बौछार,सदा सपने में।
होय मनोरथ पूर,सदा सपने में।
सपना हो साकार,सदा अपने में।
जीवन हो खुशहाल,सदा सपने में।।
दिल का हो सत्कार,सदा सपने में।
हो उर्मिल मनहार,सदा सपने में।।
उठे स्नेह का ज्वार,सदा सपने में।
चार आँख का मेल,सदा सपने में।।
तन मन एकाकार,सदा सपने में।
खुले आत्म का द्वार,सदा सपने में।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[31/10, 17:23] Dr.Ram Bali Mishra: दर्द (स्वर्णमुखी छंद/सानेट )
दर्द है सीने में।
कोई नहीं हकीम।
लगता नामुमकीन।
व्यर्थ है जीने में।
य़ह जीवन दुखदार।
सभी बेगाने हैं।
बहुत अनजाने हैं।
यहाँ न आयुषकार।
अधिक घबड़ाहट है।
सभी दिशाएं मौन।
सुननेवला कौन?
मृत्यु की आहट है।
यही नियति का खेल।
शून्य दिलों का मेल। ।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/11, 08:51] Dr.Ram Bali Mishra: शृंगार छंद
सदा निर्मल हो दिल का प्यार।
लगे अति मोहक प्रिय मनहार।।
सदा हो मन में उत्तम भाव।
जुड़े नित मानवता का तार।।
,
मधुर मन का पावन संचार।
हरित सावन की हो मधु धार।।
नष्ट हो दूषित मन का भाव।
धरा का हल्का हो अब भार।।
प्रश्न हों सारे यहाँ पवित्र।
हृदय में ग़मके मादक इत्र।
स्वच्छ हो धूमिल भाव विचार।
सुखद हो शिष्ट स्वभाव चरित्र।।
तपोवन लगे सकल संसार।
धूप ले शीतल मधु आकार।।
सुरभि बन दिखे दिव्य य़ह लोक।
एक रस शांत सौम्य व्यवहार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/11, 17:11] Dr.Ram Bali Mishra: कहाँ ? (मुक्तक )
मापनी 11/11
नहीं करोगे काम,कहाँ से खाओगे ?
बिना किये श्रमदान,कहाँ से पाओगे??
बना रहे श्रमचोर,अपाहिज लगता है।
तोड़ खाट को नित्य,कहाँ तुम जाओगे??
मन में है अभिमान,नशे में पागल हो।
भीतर गंदा भाव,क्रूर मद जागल हो ।।
नहीं काम का अर्थ,लचर मन तेरा है।
नाली के इंसान,बहुत ही घायल हो।।
इज्जत से अति दूर,आलसी निर्मम हो।
रखे दरिन्दा भाव,कूदते जंगम हो।।
उत्तरदायी बोध,हृदय से भागा है।
बनते हो चालाक,दुष्ट विष अंगम हो।।
दिल के सब अरमान,कहाँ से पूरे हों?
बिगड़े हुए गृहस्थ,सकल नित चूरे हों।।
विघटित घर परिवार,दिशाएं सूनी हैं।
उजड़े सुन्दर कर्म,दनादन हूरे हों।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/11, 08:31] Dr.Ram Bali Mishra: मां सरस्वती की वंदना (चौपाई)
जय जय जय जय मेरी माता।
एक मात्र मां विद्या दाता।।
वीणा नित्य बजाती माता।
धुन सुन जग मोहित हो जाता।।
माँ का जो अभिवादन करता।
भवसागर से पार उतरता।।
माँ ही मधुरिम ज्ञान सहेली।
तीन लोक में दिव्य पहेली।।
विनयशीलता का वर देती।
भक्तजनों का दुख हर लेती।।
जो पाया वरदान मातृ का।
भाग्य उसी का तीन मात्र का।।
वही शिष्य है बना तपस्वी।
सारे जग में महा यशस्वी।।
जो माँ के शरणागत होता।
उसका ही प्रिय स्वागत होता।।
लेखन पाठन रुचिकर जिसको।
दिल में रखती माता उसको।।
जो माँश्री का है अनुरागी।
वहीं विश्व में है बड़ भागी।।
जिसको माता ने अपनाया।
वही लोक में नाम कमाया।।
वर दे वर दे वर दे माता।
आत्मतोष का घर दे माता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/11, 10:23] Dr.Ram Bali Mishra: गरीब की आरजू
आरजू गरीब की कभी नहीं गरीब है।
आत्मतोष वृत्ति के सदैव ही करीब है।।
चाहता बने सदैव खुशनुमा महाल हो।
जिंदगी दिखे सुखी हरीतिमा बहाल हो।।
लुप्त हो दरिंदगी समानता शुमार हो।
मानवीय भाव की असीम प्रिय खुमार हो।।
धर्म अर्थ कामना सदैव नित्य पूर हो।
चक्र हो सुदर्शनीय निम्न भाव दूर हो।।
वस्त्र अन्न घर मिले सुखी समग्र लोक हो।
रोग शोक नष्ट हो मनुष्य हर अशोक हो।।
आरजू गरीब की कभी नहीं गरीब है।
आत्मतोष वृत्ति के सदैव ही करीब है।।
चाहता बने सदैव खुशनुमा महाल हो।
जिंदगी दिखे सुखी हरीतिमा बहाल हो।।
लुप्त हो दरिंदगी समानता शुमार हो।
मानवीय भाव की असीम प्रिय खुमार हो।।
धर्म अर्थ कामना सदैव नित्य पूर हो।
चक्र हो सुदर्शनीय निम्न भाव दूर हो।।
वस्त्र अन्न घर मिले सुखी समग्र लोक हो।
रोग शोक नष्ट हो मनुष्य हर अशोक हो।।
कर्म पूजनीय का गुणानुवाद नित्य हो।
सम समाज नित्य स्तुत्य स्नेह वन्दनीय हो।।
चाहता गरीब है सप्रेम भाव भोर हो।
नाचता दिखे सदेह मस्त चाव मोर हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/11, 17:09] Dr.Ram Bali Mishra: मानस
गागाल,गागाल,गागाल,गागा
221 221 221 22
मानस बने राम की पाठशाला।
योद्धा धनुष ले बने शांतिवाला।
धर्माधिकारी रचे संत सेना।
चाहे मनुज भावना दान देना।
संयम बहाये सदा राम गंगा।
स्नानार्थ मानव चले हो उमंगा।
कल कल बहे प्रेम की ज्ञान धारा।
अध्यात्म साहित्य का हो प्रचारा।
दानव दनुज का सदा नाश होगा।
यदि राम चित का हृदय ध्यान होगा।
दिल में अगर राम अवतार होगा।
नामी अयोध्या सुगम धाम होगा।
हनुमान सेना स्वयं ही बनेगी।
सर्वात्म सेवी मनुजता खिलेगी।
अन्याय का अंत निश्चित दिखेगा।
रामार्थ सेवी धरम मत लिखेगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/11, 09:30] Dr.Ram Bali Mishra: स्वार्थ
स्वार्थ सिर्फ प्यार का यही बहार चाहिए।
माधुरी बयार का सुगंध हार चाहिए।।
धारदार प्रेम अस्त्र की मिसाल चाहिए।
सर्व मंगलीय काम वृत्ति चाल चाहिए।।
वंदनीय प्यार का मिजाज साफ पाक हो।
निंदनीय हो नहीं सदैव दिव्य धाक हो।।
तार तार हो नहीं सदा बहार प्यार हो।
रूप शुद्ध सत्व सौम्य नम्य रंगदार हो।।
बार बार मंत्र जाप हो रहा अनादि से।
भावना सराहनीय हो सदा जनादि से।।
मामला यहां यही मिले सुखांत प्यारिका।
वायु हो असीम मंद शीत गंध धाविका।।
प्यार शब्द अर्थवान ब्रह्मलीन तंत्र है।
स्वस्थ सार्वभौमिकी सुधा समग्र मंत्र है।।
स्वार्थ प्यार भाव से समस्त कर्म कीजिये।
मांगिये कभी नहीं सदैव दान दीजिये।।
वासना रहे नहीं सदैव शुभ्र कामना।
वास में मिठास की अमर्त्य प्रीति भावना।।
कष्ट क्लेश चूर चूर द्वंद्व फंद नष्ट हो।
प्यार की कृपा मिले सहर्ष नेह स्पष्ट हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/11, 11:02] Dr.Ram Bali Mishra: हंस गति छंद
11/9
छेड़ो मन की बात,सदा मनभावन।
भर जाये उत्साह,हृदय में सावन।।
प्रीति करे मनहार,नेह की बेला।
सदा रहेंगे संग,कभी न अकेला।।
छोड़ो सकल प्रपंच,स्नेह हो केवल।
पूरा हो संकल्प,दिलेरी के बल।।
गाएँ गीत मल्हार,मधुर मस्ताना।
हृदय चमन में पुष्प,खिले मनमाना।।
हो सुरभित बरसात,देव भी लोलुप।
देखें सारा दृश्य,अनोखा गुपचुप।।
हो ब्रह्मा को हर्ष,देख कर मंजर।
हो लीला पर गर्व,सहज उर अंदर।।
धरा दिखे खुशहाल,प्यार से रंजित।
अमृत बरसे नेह,हृदय हो सिंचित।।
सावन के प्रिय मेघ,दूत बन आयें।
देख सकल परिदृश्य,मनहि मुस्कायें।।
होगा मधु संवाद,मिलन का उत्सव।
मंगल सृष्टि विचार,काम का उद्भव।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/11, 16:04] Dr.Ram Bali Mishra: अमृत ध्वनि छंद
साधक उसको जानिए,जो सुधि खो तल्लीन।
लक्ष्य सिर्फ वह देखता,शुभद कर्म में लीन।।
शुभद कर्म में लीन,राह वह,एक पकड़ता।
सबकुछ भूले,झूला झूले,चिह्नित करता।।
बाधाओं को,पार करे वह,नहिं कुछ बाधक।
धनुष वाण ले,लक्ष्य वेधता,अर्जुन साधक।।
कमतर कुछ नहिं आंकता,बना सदा गंभीर।
मानव करता साधना,सोच समझ मति धीर।।
सोच समझ मति धीर,कर्म में,दृढ़ता रहती।
मन में हर पल,शुभ करने की,इच्छा जगती।।
चाहत रखता,सफ़ल कर्म हो,सदा बेहतर।
किसी क्रिया को,कभी न माने,मानव कमतर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/11, 10:47] Dr.Ram Bali Mishra: प्राकृतिक सौंदर्य
मापनी: 2122, 2122, 212
प्राकृतिक सौंदर्य पावन रत्न है।
मूल रूपी आत्म भावी यत्न है।।
जो करे सम्मान इसका देवता।
देव का यह स्थान निर्मल जागता।।
रीझते आनंद विह्वल सर्व हैं।
प्राकृतिक सौंदर्य अनुपम पर्व है।।
कृति परम यह प्राकृतिक शिव शंभु है।
वायु क्षिति पावक गगन प्रिय अंबु है।।
छेड़ता है जो इसे वह पाप है।
कब हुआ वह इस जहां में माफ है??
पक्षियों की गूंज में मधु राग है।।
आदमी भी गा रहा मद फाग है।।
जिंदगी है दीखती अति खुशनुमा।
प्राकृतिक संपत्ति मोहक रहनुमा।।
पूजनीया सुंदरी अति भव्य है।
नित नवल इतिहास लिखती सभ्य है।।
प्राकृतिक सौंदर्य से शोभित मनुज।
सुंदरम इस भाव पर मोहित मनुज।।
सिद्धिदाता प्राकृतिक उन्मेष है।
सिद्धि पाने का सुखद परिवेश है।।
ज्ञानदायी प्रेमदायी शांतिदायी लोक है।
दानदायी मानदायी गुरु वरेण्य अशोक है।।
शैल उन्नत सिन्धु सरिता पावनी।
दे रहे आशीष सब मन भावनी।।
दान का अभिमान सारा नष्ट है।
कामना कल्याण जग की स्पष्ट है ।।
प्राणियों में जीवनी यह शक्ति है।
प्राकृतिक संवाद में अनुरक्ति है।।
प्राकृतिक सौंदर्य पर अभिमान हो।
“चल प्रकृति की ओर” का अभियान हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/11, 13:27] Dr.Ram Bali Mishra: प्यार (शिव छंद)
मात्रा भार 11
मापनी: 21 21 21 2
प्यार को न कोसना।
यह अमूल्य ज्योत्सना।।
रश्मि य़ह मनोरमा।
बांधता सदा समा।।
बाल रूप प्यार है।
ब्रह्म सूत्रधार है।।
नम्र स्तुत्य रंग है।
लालिमा उमंग है।।
ब्रह्मलीन कर्म है।
शुद्ध सत्य धर्म है।।
चेतना प्रसाद है ।
हित परार्थ नाद है।।
अस्तिमान कीर्ति है।
प्रेमिला प्रतीति है।।
कृत्य शुभ स्वभाव है।
द्वेष का अभाव है।।
प्यार का दुलार हो।
नित्य जय जकार हो।।
लो पहन अमोल को।
प्यार से सुबोल को।।
प्यार सर्वसाधिका।
कृष्ण और राधिका।।
प्यार है कमाल का।
गुल गुलाब लाल का।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/11, 17:38] Dr.Ram Bali Mishra: बिकता कहाँ है? (शक्ति छंद)
मापनी:122, 122 , 122, 12
बताओ जरा प्यार बिकता कहाँ?
दिखा दो जगह द्वार खुलता जहां।।
मदद कर मुसाफिर बहुत थक चुका।
चला है बहुत तेज अब रुक चुका।।
नहीं शक्ति इसमें जरा दो पता।
छिपाओ नहीं राह को दो बता।।
थकित तन व्यथित मन नहीं बोलता।
रुका पांव ऐसा नहीं डोलता।।
तरसता न कोई सभी भागते।
हृदय की दया को नहीं जानते।।
नहीं चैन से देखता आसमां।
दिखायी न देता कहीं भी समां।।
चलो आज खोजें स्वयं में बसें।
मिलेगा सितारा सदा ही हँसे।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/11, 16:15] Dr.Ram Bali Mishra: प्रभु श्री रामचन्द्र (मरहठा छंद)
10/8/11
अतिशय बलशाली,राम कृपा है,लगता जग का थाह।
प्रिय प्रभु श्री रघुवर,परम दयालू ,महिमा दिव्य अथाह।।
नित राम बरसतें,करुण मेघ बन,दीन दुखी सब तृप्त।
सब के दुख भंजन,ज़न मनरंजन,उनसे जग संतृप्त।।
प्रिय समतावादी,मधु संवादी,रखते सबका ख्याल।
अतिशय उदारता,नित मानवता,सदा मोहिनी चाल।।
नित वेद बखानत,जगती जानत,रघुबर ज्ञान अनंत।
वे भक्त हृदय में,बसे हमेशा,उन्हें पूजते संत।।
अतुलित रामेश्वर,मधु परमेश्वर,मन में सत्य विचार।
सबसे सम्मानित,जग में स्थापित,मूल्यवान व्यवहार।।
शिव द्वारा पूजित,शंकर गुंजित,सदाचार से प्यार।
शिव हैं रामालय,राम शिवालय,रघुबर शिष्टाचार।
नित राम भजन जो,करता रहता,पाता है निर्वाण।
प्रिय राम हृदय में,बसे निरंतर,और उन्हीं में प्राण।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[05/11, 16:41] Dr.Ram Bali Mishra: प्रभु का हो सत्कार
समतावादी मुल्य का,जिसने किया प्रचार।
यही राम आदर्श है,सबके प्रति सत्कार।।
बनवासी श्री राम ने, किया असुर संहार।
संत समागम अति सुखी,हल्का महि का भार।।
काम क्रोध मद लोभ से,मुक्त सदा श्री राम।
ऐसे प्रिय श्री राम को,भज पाओ विश्राम।।
जो प्रभुवर श्री राम का, करता है गुणगान।
राम चरित का पान कर, पाता मोहक ज्ञान।।
राम नाम के जाप से,कटते सारे पाप।
मिटते सारे क्लेश है,और कटे संताप।।
राम ईश आराध्य हैं,जीवन का है सार।
पुण्य कर्म आधार पर,जीव जगत के पार।
रामचंद्र संघर्ष के,हैं अनुपम पर्याय।
उन्हें जानने के लिए,करना सकल उपाय।।
जो जाने श्री राम को,वही बड़ा विद्वान।
राम कथा के श्रवण से,उपजे अद्भुत ज्ञान।।
रामचरण में ध्यान कर,भजन करो दिन रात।
काल निशा भागे सदा,गिरे क्लेश की पात। ।
जिसको प्रिय श्री राम धुन,वही मधुर मतवाला।
मस्ती की हो जिंदगी,दिव्य मनोहर चाल।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/11, 09:01] Dr.Ram Bali Mishra: प्रभु राम पर सोरठा
सुखी राम का राज,नहीं दुखी दिखता यहां।
करे राम पर नाज़,शोक रहित सारे मनुज।।
मानवता से प्रेम,करते हैं श्री राम जी।
बने हुए हैँ हेम,दिव्य बन सदा चमकते।।
पुरुष महा निष्काम,राम हित करते सबका।
करते उत्तम काम,सभी रीझते देख कर।।
राम ब्रह्म भगवान,अजर अमर अति सिद्ध हैं।
हो उनका गुणगान,जीवन तभी सफल बने।।
कण कण में हैं राम,सकल जगत है राममय।
रहो उन्हीं के धाम,सकल साधना सिद्ध हो।।
लगे राम से नेह,ध्यान लगे हर समय ही।
रहो उन्हीं के गेह,सदा साथ उनका पकड़।।
मन पाता विश्राम,जब वह बोले राम से।
बनते विगड़े काम,शांति प्रदाता राम हैं।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/11, 10:58] Dr.Ram Bali Mishra: भगवान राम पर रोला छंद
दशरथ सुत प्रभु राम,अवध में जन्म लिये हैं।
अति प्रतिभा संपन्न,कर्म सब दिव्य किये हैं।
बुद्धि सम्पदायुक्त,ज्ञान है अतुल व्योममय।
पड़ते उनके पांव,बने धाम प्रिय राममय।।
गुरु वशिष्ठ से ज्ञान,अल्प काल में ले लिये ।
वेदों के मर्मज्ञ,राम धर्म पथ चल दिये।।
वनवासी श्री राम,किये अलौकिक कर्म हैं।
दैत्यों का संहार,धनुष वाण ही धर्म है।।
जो कहता श्री राम,राममय बन जाता है।
मिटता सकल तनाव, तृप्त वह हो जाता है।।
संरक्षित हैं संत,राम चरण का रज लिये।
राम ब्रह्म साकार,धर्म स्थापना के लिये।।
जिसे राम से प्रेम,वही भक्त बनता सदा।
रहे राम के गेह,विष्णु लोक में सर्वदा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/11, 16:09] Dr.Ram Bali Mishra: इंसानियत की मांग
मात्रा भार 14/10
इंसानियत की मांग है, आतंक छोड़िए।
इंसानियत के धर्म को,न कदापि तोड़िए।।
इंसान सार्व भौम नित्य,सदा स्वीकारिए।
प्राणी रहे सुधा समान,आभा निहारिए। ।
दिल में रहे सुधारवाद,हिंसा कभी नहीं।
टूटे कभी न सेतु बंध,ईर्ष्यालु बन नहीं।।
श्रद्धा बने स्वभाव धन्य,अमृत पिलाइए।
पावन बने प्रवृत्ति देश,गंगा नहाइए।।
हैवानियत कहाँ कबूल,भाई बनाइए।
स्नेहिल मनुष्यता स्वभाव,उर में बसाइए।।
सच्चा हृदय समुद्र होय,संकल्प लीजिए।
साधो स्वयं की आतमा,मधुमान दीजिए।।
इंसान की जिंदगी हो,यही भावना हो।
इंसानियत दीर्घायु हो,सदा कामना हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[06/11, 21:08] Dr.Ram Bali Mishra: श्री राम पर चौपाई गीत
हे प्रभु!जीवन में रस भर दो।
ब्रह्म स्वरूप राम अविनाशी।
दिव्य अनंत ज्ञान आकाशी।।
निर्गुण निराकार प्रिय संता।
ज्ञानातीता अज़ भगवंता।।
हे परमेश्वर!अपना घर दो।
हे प्रभु!जीवन में रस भर दो।।
हे ईश्वर!तुम हो जग रक्षक।
बने हुए हो ज़न के शिक्षक।।
अति पवित्र तुम शिव गंगा हो।
मोहक भावुक मधु अंगा हो।।
हे अविनाशी!उत्तम वर दो।
हे प्रभु!जीवन में रस भर दो।।
परम तत्व अनुपम बल धामा।
परमार्थी पुरुषोत्तम नामा।।
धनुष वाण है चक्र सुदर्शन।
देता मोक्ष प्रेम तव दर्शन।।
हे ईश्वर!सिर पर रख कर दो।
हे प्रभु!जीवन में रस भर दो।।
सात्विक शुद्ध धर्म के वाहक।
सत्य अहिंसा के हो ग्राहक।।
नाम तुम्हारा सदा अमर है।
कीर्ति तुम्हारी नित्य अजर है।।
श्रद्धा अरु विश्वास अतर दो।
हे प्रभु!जीवन में रस भर दो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/11, 16:07] Dr.Ram Bali Mishra: प्रभु श्री राम पर गीत (सरसी छंद )
जब आये प्रभु राम अयोध्या,सुखी नगर के लोग।
राम आगमन सुन सब हर्षित,लगी अयोध्या झूम।
अति आनंदित प्रेम मगन सब,मची सब जगह धूम।।
भागे सारे कष्ट कलेवर,भागे सारे रोग।
जब आये प्रभु राम अयोध्या,सुखी नगर के लोग।।
अति प्रसन्न माता कौशल्या,जैसे जल में मीन।
देख राम की छवि मनमोहक,रहा न कोई दीन।।
अवधपुरी सरयू मैया के,पावन मन का योग।
जब आये प्रभु राम अयोध्या,सुखी नगर के लोग।
गांव गांव में बाजे बजते,होते सभी निहाल।
हर प्राणी में जोश भरा है,दिव्य मतंगी चाल।।
राम राम सबके मुख में है,दूर भगा मनरोग।
जब आये प्रभु राम अयोध्या,सुखी नगर के लोग। ।
नर नारी अरु वृद्ध बालगण,सभी नाचते आज।
राम दरश करने को व्याकुल,सबकी मधु आवाज।।
सभी स्वर्ग का सुख पाते हैं,दिखता कहीं न ढोंग।
जब आये प्रभु राम अयोध्या,सुखी नगर के लोग।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[07/11, 18:12] Dr.Ram Bali Mishra: राम और शिव
मात्रा भार 11/11
बसते शिव में राम,राम में शिव रहते।
त्याग और कल्याण,भावना नित भरते।।
दिखे जहां भी त्याग,वहाँ पर राम खड़े।
जहां कहीं कल्याण,वहाँ पर शंभु अड़े।।
फेरी देते राम,हमेशा काशी में।
रहता उनका प्राण,सदा अविनाशी में।।
रामेश्वर वह धाम,जहां शिव रामा हैं।
करते ज़न का काम,सहज निष्कामा हैं।।
त्याग करे कल्याण,यहीं सच्चाई है।
परहित का मधु भाव,दिव्य अच्छाई है।।
रामचरित का ग्रंथ,लिखे शिवशंकर हैं।
कविवर शिव विद्वान,सदा खुश रघुवर हैं।।
तत्व त्याग कल्याण,अमर हैं जगती में।
उभय सतत हृदयस्थ,गगन में धरती में।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/11, 11:23] Dr.Ram Bali Mishra: सरिता संदेश
मापनी: 112 112 112 112
सरिता कविता लिखती रहती।
कहती चलती उपकार करो।।
मद में मत चूर कभी रहना।
सहयोग करो सुविचार करो।।
मृदु मोहक गीत लिखा करती।
मधु राग भरा करती रहती।।
सबसे कहती इक बात यही।
सब में अति शीतल प्यार भरो।।
यह जीवन धन्य तभी लगता।
जब शुद्ध प्रवाह बना रहता।।
सबके प्रति उत्तम भावन हो।
परमारथ हो जग पीर हरो।।
सरिता इतिहास पुराण सदा।
प्रिय शाश्वत सत्य सुप्राण सदा।।
य़ह पावन गंग बनी शिव में।
य़ह आग्रह है,”शुभ धाम चरो।।”
सरिता जग की जननी लगती।
प्रिय वत्सल वृत्ति सदा भरती।।
करुणा ममता सरिता लिखती।
शिव सागर रूप अनन्य धरो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[08/11, 16:53] Dr.Ram Bali Mishra: मित्रता (शुभांगी छंद)
8/8/8/6
सदा स्वस्थ तन,अति प्रसन्न मन,जीवन उत्सव,सुखदायी।
भावुक कोमल,मृदुल मधुर स्वर,विमल मित्र प्रिय,वरदायी।।
नूतन नित नव,हँसता अभिनव,प्रीति जगाता,मीत प्रवर ।
हितकर वाणी,मधु कल्याणी,स्नेह पखेरू,उर अन्तर।।
सूखी रहे जब,मीत हमेशा,है मनभावन,हीर सदा।
तन मन से जब,मीत दुखी हो,हो जाता दिल,दुखी सदा।।
मेरे प्यारे,स्वस्थ रहो नित,मुस्कानों से,मन भरना।
एक तुम्हीं हो,अपना सपना,दिल में बैठे,नित बहना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[09/11, 09:31] Dr.Ram Bali Mishra: मां सरस्वती पर चौपाई गीत
माँ श्री अनुपम मोहक प्यारी
भव्य भारती ज्ञान भानु सम।
वीणा में मां अति प्रिय अनुपम।।
भारतीय संस्कृति की वाहक।
स्वयं वेद श्री वक्ता पाठक।।
मधु सम्मोहक अतिशय न्यारी।
माँ श्री अनुपम मोहक प्यारी।।
भवन पूर्ण सम्पूर्ण त्रिलोकी।
नाथ विज्ञ विज्ञान अशोकी।।
महा महान मर्म मन मधुरी।
धर्म धरातल धारणि सुघरी।।
धारक धरणि धरा बुधिधारी।
माँ श्री अनुपम मोहक प्यारी।।
भाग्य भगीरथ भरत भवानी।
भव भविष्य भृकुटी भल भानी।।
सहज सरल सरसिज सम सुन्दर।
आम्र अमिय अज्ञेय अनंततर।।
विद्या विपुल वनस्पति वारी।
माँ श्री अनुपम मोहक प्यारी।।
अर्थ आरती अभय अलौकिक।
अज अमृत अद्वैत अभौतिक।।
आशा उन्मुख उन्नत आतम।
प्रिया प्रियंवद प्रभु परमातम।।
मात शारदे जय जय नारी।
माँ श्री अनुपम मोहक प्यारी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[10/11, 16:53] Dr.Ram Bali Mishra: धन तेरस (दुर्मिल सवैया )
धन तेरस पावन पर्व महा, प्रिय शुद्ध सनातन धर्म लगे।
यह रीति रिवाज पुरातन है,इससे घर का सब रोग भगे।
य़ह वैभव का सत श्रोत सदा,धन धान्य पुनीत सदैव जगे।
धनवंतरि वैद्य लिये अवतार,सुआयुष का शुभ ज्ञान पगे।
जिसको नित चाहत है धन की,शुचि मानस हो घर स्वच्छ रहे।
वह आज करे धन तेरस को,धन स्वामि कुबेर जपे सुबहे।
प्रभु विष्णु प्रिया दिखतीं हँसाती,भजनामृत में हरहाल बहें।
बन दीप शिखा जलतीं दिल में,सुख सम्पति आगम रीति कहें।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/11, 12:05] Dr.Ram Bali Mishra: दीपक का दीपक से प्यार (चौपई/जयकरी/जयकारी छन्द)
दिल से करते रहना प्यार।
करना कभी नहीं इंकार।।
आजीवन रहना प्रिय पास।
तेरा ही बस हो अहसास।।
दीपावली मने हर रोज।
खाने को हो छप्पन भोज।।
दीपक बनकर करो उजास।
रहना प्रिय मत कभी उदास।।
मन्द मन्द हो मधु मुस्कान।
मुखड़े पर शोभा की खान।।
वायु बने नित करना स्पर्श।
मधुर मिलन से उपजे हर्ष।।
पावन शीतल हृदय प्रदेश।
मधुर वचन हितकर उपदेश।।
दीप प्रज्वलित हो दिन रात।
जन्मांतर तक उर्मिल बात।।
एक दिव्य रस की सौगात।
हो अतिशय रोमांचित गात।।
मन की चाहत पल पल पूर।
दीप दीप के निकट न दूर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[11/11, 20:16] Dr.Ram Bali Mishra: त्रिपद छंद
तीन पँक्तियाँ,प्रत्येक में 11 मात्रा,प्रथम और तृतीय तुकांत या तीनों तुकांत हो सकते हैं।
दीपक का है प्यार।
दिल में अति उत्साह।
सुखी सकल संसार।
जीवन का यह रंग।
रहे हमेशा मस्त।
देख जगत हो दंग।
सर्वोत्तम त्योहार।
यह अति पावन भाव।
लक्ष्मी का अवतार।
हर्षोल्लास उमंग।
अति प्रफुल्ल हर अंग।
अंतस में मधु जंग।
यह प्रकाश का पर्व।
सारा जग गुलजार ।
इस पर सबको गर्व।
देख देव खुशहाल।
सारी पृथ्वी दिव्य।
मन की मोहक चाल।
देवों की बारात।
धन वैभव का वास।
दें लक्ष्मी सौगात।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/11, 10:36] Dr.Ram Bali Mishra: दीपावली पर्व
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
आज अवध में राम आ रहे।
रावण का वध किये आ रहे।।
सीता जी को संग ला रहे।
लक्ष्मण जी भी साथ आ रहे।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
चौदह वर्ष बाद प्रभु आये।
रक्षक बनकर संत बचाये।।
असुरों का वध करनेवाले।
पापीज़न को हरनेवाले।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
राम आगमन साधु सुखारी।
हर्षित हैं सारे नर नारी।।
बाल वृद्ध सब नृत्य कर रहे।
राम कर्म सब स्तुत्य हो रहे।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
पुष्प वृष्टि हो रहीं गगन से।
लगते कण कण बहुत मगन से।।
पक्षी कलरव करते गाते।
स्वागत में वे गीत सुनाते।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
अतिशय देवलोक हर्षित है।
विष्णुलोक अति आकर्षित है।।
सकल भुवन में चमक प्रकाशन।
पुष्पकयान राम सिंहासन।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
सीता राम लखन का आना।
खुशहाली का ताना बाना।।
सुरभित वातावरण सुगंधित।
सियाराममय अवध सुवंदित।।
स्वागत में दीप जलाओ रे,स्वागत में।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[12/11, 16:13] Dr.Ram Bali Mishra: त्रिपद छंद
करो दीप का दान ।
अभिनंदन की बात।
नित्य राम का गान।
दीप जला कर बोल।
करें राम कल्याण।
प्रभु को उर में घोल।
दीपक हृदय प्रतीक।
इसे जलाओ नित्य।
लगें राम अति नीक।
ढोल मजीरा संग।
झूम झूम कर नृत्य।
घुले राम का रंग।
करना राम निवास।
सीता मैया साथ।
महके दिल में वास।
दीपोत्सव त्योहार।
सहज मनाओ रोज।
रामोत्सव सुविचार।
राम आ रहे आज।
अवधपुरी खुशहाल।
दीप करे सब काज।
लीलाएं हों आज।
प्रभु जी का पुरुषार्थ।
हर्षित अवध समाज।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[13/11, 08:06] Dr.Ram Bali Mishra: दीपोत्सव (चौपई/जयकरी/जयकारी छंद)
दीपोत्सव का करना मान।
रामोत्सव का सदा बखान।।
जलता रहे हमेशा दीप।
अजर अमर प्रभु राम महीप।।
दीपक बनकर राम प्रकाश।
लोक राममय दिव्याकाश।।
सकल धरातल पर श्री राम।
धन्य अवधपुर भव्य ललाम।।
सुन्दर बाती घृत अरु तेल।
अग्नि भावना मोहक खेल।।
जगमग जगमग जलता दीप।
अति मनमोहक दूर समीप।।
श्रद्धा घृत बाती मुस्कान।
स्वाभिमान दीपक पर ध्यान।।
दीप जला कर स्वागत गान।
रामचन्द्र का हो सम्मान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[13/11, 16:22] Dr.Ram Bali Mishra: दिव्य ग्रंथ
शब्द शब्द अर्थ अर्थ भाव भाव एक हो।
प्रेम नेह प्रीति रीति सौम्य स्निग्ध नेक हो।।
लेखनी चले बहे प्रवाह में उछाल हो।
ज्ञान दीप दान की सदा सुगंध चाल हो।।
जोशपूर्ण अर्थयुक्त मंगली सुलोचनी।
भव्य सभ्य नव्य नित्य चिंतना सुबोधनी।।
शुद्ध वृत्ति भव्य लेख लेखनी लिखा करे।
सर्व ग्राह्य ज़न हितार्थ चाशनी दिखा करे।।
पंक्ति पंक्ति मालिका सुहागिनी सजी धजी।
गा रहे सुशब्द गेय गीत लालिमा मजी ।।
ग्रंथ शिष्ट आचरण निभा रहा महान हो।
पाठ्य वाच्य श्लोक व्योम अंतहीन मान हो ।।
संतती बने महान ज्ञान सिन्धु भू धरा।
हो भविष्य उज्ज्वला मनोहरी वसुन्धरा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[13/11, 18:31] Dr.Ram Bali Mishra: दिव्य पंथ
सदा दिखाना,प्रेम ख़ज़ाना,करना य़ह स्वीकार।
प्राण नाथ हो,सदा साथ हो,अतिशय प्रिय आधार।
रहो हमेशा,करो भरोसा, चलना हरदम संग।
मेरे प्यारे,व्योम सितारे,दिखे प्रेम का रंग।।
दंगल होगा,मंगल होगा,गाओ गीत मल्हार।
संगम तीरा,मोहक हीरा,करो हृदय गुलजार।।
कदम मिलाकर,दिल बहलाते,बनो गले का हार।
खुशी खुशी में,हँसी हँसी में,मिले प्रेम पतवार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/11, 13:41] Dr.Ram Bali Mishra: कुंठित मन
जब तक मन में,कुंठा रहती,तब तक मनुज सियार।
रहे हमेशा,चूर अहं में,डाले सदा दरार।।
बात बात में,झगड़ा करता,करता सदा कुतर्क।
सुनी हुई सब,बातेँ करता,सदा निरर्थक तर्क।।
वह अपने को,समझे बौद्धिक,किन्तु नहीं है ज्ञान।
घिरा हुआ है,तम मातम से,बनता स्वयं सुजान।।
अपने मुँह से,मिट्ठू बनता,नहीँ लोक का लाज।
नहीँ भाव का,ज्ञान उसे है,सिर्फ दंभ पर नाज़।।
अति विचित्र है,कुंठित मानव,उससे रहो सचेत।
दिखे भयानक,कभी न मानक,रहता सतत अचेत।।
रहे जो बच कर,वही मनीषी,वही सत्य विद्वान।
सदा उलझता,उस कायर से,जो मूरख इंसान।।
मधुर वचन वह,नहीं बोलता,करता केवल काट।
कुंठित जन मन,दूषित चिंतन,ओढ़े घृणित कपाट।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[14/11, 21:10] Dr.Ram Bali Mishra: गोवर्धन पूजा
मात्रा भार 16/15
जो करता गोवर्धन पूजा,उस पर खुश कृष्णा भगवान।
देव इन्द्र का दंभ चूर है,सदा कन्हैया मेहरबान।।
इन्द्र चाहते जल की धारा,से गोकुल का सत्यानाश।
किन्तु इन्द्र हो गये हतप्रभ,खड़ा हुआ जब कॄष्ण प्रकाश।।
इक ऊंगली पर गोवर्धन ले,रोके सारे जल की धार।
ग्वाल बाल गोकुल के वासी,सभी सुरक्षित खुशी अपार।।
प्रभु की लीला देख अचंभित,इंद्र देवता थे लाचार।
चक्रसुदर्शन काट रहा था,जल की धारा बारंबार।।
सब नर नारी खुशी मनाते,सहज बोलते जय जयकार।
चरण पड़े सब ज़न प्रेमातुर,किये श्याम सबका उद्धार।।
गोवर्धन बन गया धाम है,पूजनीय श्रद्धा का गांव।
वंदनीय श्री कृष्ण महा प्रभु,देते यहाँ सभी को छांव।।
गोवर्धन को जो पूजेगा,वह विपत्ति से हरदम दूर।
बाधाएं सब मिट जाएंगी,क्लेश कष्ट विपदा काफ़ूर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[15/11, 20:07] Dr.Ram Bali Mishra: खोज
व्यष्टि में समष्टि भाव आत्म दृष्टि मूल है।
खोजते चलो स्वयं कहीं नहीं त्रिशूल है।।
पौड़ना यहाँ वहाँ कभी नहीं विवेक है।
मार कुंडली सदैव सिद्ध योग एक है।।
तैरता अनन्य भाव से मनुष्य आप में।
दृष्टि को करे सदैव आत्म निष्ठ जाप में।।
बाह्य को न देखना चलो सदैव आत्म में।
देखना सहर्ष एक तत्व आप नाम में।।
भीतरी दिवार का सचित्र रूप भव्य है।
खास दिव्य सम्पदा अमूल्य राशि द्रव्य है।।
सर्वदा प्रसन्नचित्त मोहनीय रंग है।
हीर है सुधीर है सुबुद्ध पीत अंग है।।
सर्व सिद्ध पावनी सुभावना सराहनी।
आत्मतुष्ट आत्मशक्ति शांति स्नेह वाहिनी।।
जाति धर्म से परे अमोल बोल कर्म है।
अंतहीन माधुरी सदा परार्थ मर्म है।।
द्वार से चलो बढ़ो दिखे सदैव आंगना।
मीर है अमीर है अमर्त्य आत्म भावना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/11, 10:53] Dr.Ram Bali Mishra: कविता का लक्ष्य
मात्रा भार 11 प्रत्येक चरण
आत्म मन समाज पर,
राज पर स्वराज पर,
धर्म कर्म जाति पर,
काव्य का उमंग है।
प्रीति रीति नीति पर,
संगठित अनीति पर,
देश द्रोह जाल पर,
काव्य दृष्टि ज़ंग है।
संविधान ज्ञान पर,
राष्ट्रवाद मान पर,
देश की रुझान पर,
लेखकीय रंग है।
द्वेष दांव पेच पर,
दंभ के विरेच पर,
व्यंग्य वाण सेज पर,
लेखनी मतंग है।
विश्व की दशा दिशा,
बंधनीय भ्रम निशा,
कल कछार तम तृषा,
सर्व लेख्य अंग हैं।
कौरवीय चाल पर,
पांडवीय भाल पर,
संत के मलाल पर,
लेखनी अनंग है।
लेखनी विवेचनी,
हंस सम विवेकिनी,
ढूंढ़ती अदृश्य को,
खंग शिव विरंग है।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/11, 15:22] Dr.Ram Bali Mishra: सरस्वती वंदना
मात्रा भार 16/15
उर अन्तर में मां रहती है,
माँ को करते रहो प्रणाम।
सुन्दर बातेँ नित करती है,
अति मोहक माँ दिव्य ललाम।।
माँ का जो अभिवादन करता,वह पाता रहता विश्राम।
नहीं कभी भी वह थकता है,लेता रहता मां का नाम।।
दिव्य ज्ञान रस सदा पिलाती,माता पर करना अभिमान।
ऐसी माँ श्री कहाँ मिलेंगी,करना प्रति पल उन पर ध्यान।।
बैठ हंस पर शुभ विवेक दे,माता देतीं वेद पुराण।
बनकर रक्षक गले लगातीं,बनी हुई माँ दिल प्रिय प्राण।।
उच्चासन पर माँ अति शोभित,बनी हुई हैं शोभा धाम।
कर में पुस्तक ले कर चलतीं,देती रहती स्वर्णिम नाम।।
य़ह मन माँ से बोला करता,दर्शन होता है साक्षात।
कवि लेखक बन जाता मानव,जो लिखता पढ़ता दिन रात।।
आओ माँश्री! चरण पड़े हम,करें तुम्हारी महिमा गान।
कृपा पात्र बनने का वर दो,मातृ शारदे ! हे भगवान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[16/11, 16:21] Dr.Ram Bali Mishra: प्रिय का द्वार (मुक्तक)
क्या आना,प्रिय पास तुम्हारे।
रहता मन नित तेरे द्वारे।
तुमसे करता स्नेह हमेशा।
हो दिलवाले अति प्रिय तारे।
मन को मुग्ध सदा करते हो।
सारी पीड़ा हर लेते हो।
नहीं बहाना कभी बनाते।
मोहक मुस्कानें भरते हों।
अति सम्मोहक मधु सपना हो।
भीतर बैठे सुख अपना हो।
जीवन सारा तुझको अर्पित।
रिश्तों के अनुपम नपना हो।
नहीँ बनोगे कभी पराया।
सदा रहोगे बनकर साया।
दृढ़ श्रद्धा विश्वास रूप हो।
सहज सरस मन मन्दिर काया।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[17/11, 11:36] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति काव्य रस अमृतधारा
मात्रा भार 11/11
प्यार धार पावनी,शुभ्र सौम्य कामिनी।
लेखनी दिखा करे,स्वार्थमुक्त भामिनी।।
काव्य में बहार है,प्रीति दिव्य हार है।
गीत लेखनी लिखे,हित परार्थ ज्वार है।।
रस प्रधान काव्य ही,रम्य चुम्बकीय है।
भाव भंगिमा लिये,भव्य शोभनीय है।।
धारणीय प्रीति रस,अस्थि चर्म मुक्त है।
स्वाद में सुगंध है,हर्ष भाव युक्त है।।
प्रीति काव्य मन प्रभा,व्यापकत्व है भरा।
काव्य साधना अमी,रस सरस मधुर हरा।।
सात्विकीय उच्चता,लेख जश्न वास है।
शुद्ध सिद्ध अमृता,चांदनी निवास है।
सावनी खुमार है,गेय मधु शुमार है।
वंदनीय प्रीतिका, जोश दिलबहार है।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[17/11, 18:31] Dr.Ram Bali Mishra: दिल इक खिलौना है
तोड़ न देना,कोमल दिल को,ऐ प्रियवर सरकार।
भले खिलौना,इसको जानो,यह मनरंजक यार।।
दिल बहलाए,यही प्रेम से,इसको निश्चित जान।
फेंक न देना,व्यर्थ समझ कर ,यह लाता मुस्कान।।
बहुत मुलायम,अति भावुक है,भरा हुआ है स्नेह।
सीधा सादा,दिल का राजा,सदा प्रीति का गेह।।
भाग्य उदय है,अरुणोदय है,मिलन आज साकार।
प्रेम परस्पर,बढ़ता जाये,हो हरदम दीदार।।
मन नहिं माने,राह निहारे,थक जाती है आँख।
रोता दिल है,अति उदास हो,लगता अतिशय माख।।
लगता ऐसा, यहां दयालू,हुए धरा से लुप्त।
सब स्वारथ में,लिप्त जगत में,दीखते सभी सुसुप्त।।
करुणा सागर,सूख चुका है,नहीं नेत्र में नीर।
शुष्क हृदय है,मन नीरस है,दूषित अब है क्षीर।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[18/11, 11:36] Dr.Ram Bali Mishra: सफ़र की यादें
बहुत याद आता सफर का मिलन है।
मुलाकात ही जिंदगी का चयन है।।
सुखद है दुखद भी सफर की कहानी।
बुढ़ापा यहाँ है यहीं है जवानी।।
कभी हँस रहा मन कभी रो रहा है।
कभी जागता है कभी सो रहा है।।
मिला इक मनुज हमसफर सादगी में।
न वैसा कभी और इस जिंदगी में।।
दिया स्नेह अमृत पिलाया जिगर से।
लिया कुछ नहीं वह दिया ज्ञान घर से।।
मदद कर किया खुश बहुत याद आती।।
सताती मुलाकात जब हो न पाती।
सफर है सुहाना मधुर प्रेम धारा।
दिखाता सदा भव्य मोहक सितारा।।
उदारीकरण खुशनुमा लोक साधन।
जगत के सफर में जहाँ योग भावन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/11, 16:44] Dr.Ram Bali Mishra: खुश रहना मेरे यार
सदा प्रसन्नता रहे हँसी खुशी दिखे सदा।
रहे न कष्ट क्लेश द्वंद्व स्वस्थ जिस्म सर्वदा।।
हृदय रहे प्रफुल्ल नित्य प्रेम राग जागरण।
मिले सदैव स्निग्ध स्नेह भोर रश्मि का रमण।।
तरुण बना रहे युवा सरोज मन खिला करे।
सहायिका सरस्वती सप्रेम नित मिला करें।।
घमंड का अभाव हो असत्य का विनाश हो।
बहे सदैव सत्य वायु भानु का प्रकाश हो।।
पुनीत धर्म संपदा सदा हृदय निवास हो।
उजास कर्म योग का स्वयं सदेह वास हो।।
कदम कदम बढ़ा करें सुपथ सुमन प्रसून मन।
चलो सहर्ष मान से मिला करे सुघर वतन।।
विनम्र वासना बनी रहे सदैव भामिनी।
दिवा चमक विखेरती दिखे शरीर यामिनी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[19/11, 18:49] Dr.Ram Bali Mishra: प्यार का सच्चा स्वरुप
मुखड़े पर प्यार बहे हँसता।
बन मूक नियंत्रण में रहता।।
बहरा अति गूंग दिखा करता।
पर जीवन धन्य सुखी दिखता।।
यह अद्भुत रूप अलौकिक है।
प्रिय दिव्य विधान अभौतिक है।।
मनमोहक उत्तम नैतिक है ।
शिव सौम्य महा मधु ऐकिक है।।
यह सृष्टि कला अति निर्मल है।
मुख मण्डल सभ्य सुमंगल है।।
यह प्यार प्रभा वरदान सदा।
यह दृश्य विनम्र विभूतिशुदा।।
अनमोल महान महातम है।
हरता रहता जग का तम है।।
पुरुषोत्तम भाव सुभद्र धनी।
रघु राम समान महा सुमनी।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/11, 08:02] Dr.Ram Bali Mishra: भगवान राम पर चौपाई
जग में कोई नहीं राम सा।
परमेश्वर अवतारी प्रिय सा।।
धरा धाम को पावन करने।
रखे कदम सब का दुख हरने।।
भुवनेश्वर भगवान राम हैं।
महाकाल अज विश्व धाम हैं।।
पावन तन मन निर्मल उर है।
अति मनमोहक सुन्दरपुर है।।
वन को तपोभूमि में बदले।
हो प्रसन्न जंगल में मचले।।
खोज खोज कर राक्षस मारे।
साधु संत को सदा उबारे।।
राम दिव्य आदर्श कर्म हैं।
अति पुनीत प्रिय सुखद धर्म हैं।।
करे राम को जो अभिनंदन।
बन जाये वह शीतल चन्दन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/11, 09:27] Dr.Ram Bali Mishra: भगवान राम पर चौपाई
जग में कोई नहीं राम सा।
परमेश्वर अवतारी प्रिय सा।।
धरा धाम को पावन करने।
रखे कदम सब का दुख हरने।।
भुवनेश्वर भगवान राम हैं।
महाकाल अज विश्व धाम हैं।।
पावन तन मन निर्मल उर है।
अति मनमोहक सुन्दरपुर है।।
वन को तपोभूमि में बदले।
हो प्रसन्न जंगल में मचले।।
खोज खोज कर राक्षस मारे।
साधु संत को सदा उबारे।।
राम दिव्य आदर्श कर्म हैं।
अति पुनीत प्रिय सुखद धर्म हैं।।
करे राम का जो अभिनंदन।
बन जाये वह शीतल चन्दन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/11, 10:33] Dr.Ram Bali Mishra: पवित्र रिश्ता (दोहे )
रिश्ता वही पवित्र है,जहाँ न विषय विकार।
स्वार्थरहित सम्बंध ही,दिखे दिव्य साकार।।
भक्त और भगवान का,रिश्ता परम पवित्र।
यह अमूल्य सम्बन्ध है,गमके जैसे इत्र।।
माता का रिश्ता सदा,अति शुचिता से युक्त।
बच्चों को दिल में रखे,रहे सहज संयुक्त।।
गुरु परमेश्वर रूप का,करो हमेशा ध्यान।
पूजनीय वह लोक में,देता पावन ज्ञान।।
दुर्लभ सच्चा मित्र है,अति पवित्र यह रूप।
कपट कुचाली कृत्य कर,बनना नहीं कुरूप।।
मात पिता गुरु मित्र का,जो करता सम्मान।
वह पवित्र सम्बन्ध में,बंधा हुआ इंसान।।
निर्मल उज्ज्वल श्वेत प्रिय,मोहक व्यक्ति पवित्र।
वह उत्तम रिश्ता रखे,खींचे अनुपम चित्र।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/11, 16:02] Dr.Ram Bali Mishra: कल्पना लोक
मात्रा भार प्रत्येक पंक्ति 11
कल्पना समस्त का,
मस्त मस्त वस्तु का,
एक एक चुन सदा,
छान बीन सर्वदा।
मत कहीं भ्रमण करो,
आत्म में रमण करो,
खींच खींच पास ला,
शून्य देख फ़ासला।
रात दिन सुचिंतना,
माधुरी सुकामना,
एक में अनेक हो,
मोहनीय नेक हो।
मानसिक स्वराज हो,
स्वस्थ आत्म राज हो,
हाथ में समग्र है,
वांछनीय अग्र है।
आसमान पास है,
भूमि लोक न्यास है,
चाह में बहार है,
गीत मधु मल्हार है।
कल्पनीय भाव हो,
दिव्य भव्य चाव हो,
हस्त में सुचाल हो,
प्रेमपूर्ण चाल हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[20/11, 19:18] Dr.Ram Bali Mishra: मर्म (सोरठा )
बहुत बड़ा है मर्म,ईश्वर भी नहिं जानते।
रहे हमेशा गर्म,शीतल होता है नहीं।।
खोजे अपना गाँव,व्यग्र सदा उन्माद में।
इसे चाहिए छांव,तभी शांति इसको मिले।।
पाता य़ह विश्राम,गर्मजोश अंदाज में।
जगती करे प्रणाम,एक एक रण बांकुरे।।
होता है सम्मान,य़ह पूजित सर्वत्र है।
इस पर सबका ध्यान,सर्व मान्य जिमि भू धरा।।
यह है अमित विराट सबका शुभ मंगल करे।
चमके सदा ललाट,रत्न खान अद्भुत सुभग।।
यह अमूल्य प्रासाद,भाग्यमान को सुलभ य़ह।
होता है अवसाद,जो वंचित है सर्वदा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[21/11, 18:55] Dr.Ram Bali Mishra: भगवान राम (चौपाई )
राम चरण रज का अनुरागी।
इस जगती में अति बड़भागी।।
राम कृपा का वह अधिकारी।
विषय मुक्त मन नित अविकारी।।
धर्मधुरंधर वह हो जाता।
प्रभु का चरणामृत जो पाता।।
सदा राम हैं जिसके मन में।
वह रमता है राम भजन में।।
प्रभु के साथ सदा जो रहता।
नित्य प्रेमवश गायन करना।।
महा पुरुष वह बन जाता है।
राम रसायन मधु पाता है।।
राम पदारथ प्रिय है जिसको।
नहीं कमी है जग में उसको।।
प्रभु में अर्पित कर दो मन को।
चूमा करना नित्य गगन को।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/11, 11:39] Dr.Ram Bali Mishra: साहित्य का संदेश (दोहे)
बने सकल यह विश्व प्रिय,कहता है साहित्य।
विश्व बंधु की कामना,अजर अमर हो नित्य।।
मनरंजन करता सदा,हरे जगत की व्याधि।
देता चिंतक को यही,कवि की दिव्य उपाधि।।
यह यथार्थ का पारखी,आदर्शों से मेल।
सत्य पंथ पर कदम रख,खेले उत्तम खेल।।
य़ह संस्कृति के पाठ का,करता है अभ्यास।
ज़न मानस की रीति का, देता है आभास।।
सामाजिक विक्षोभ से,करता दो दो हाथ।
विघटित ज़न मन से लड़े,कभी न देता साथ।।
पुरुषार्थों के विंदु पर,अडिग खड़ा साहित्य।
सामाजिक आकाश में,य़ह पावन आदित्य।।
सत्य अहिंसा प्रेम का,देता है संदेश।
मानवता की राह पर,चलने का आदेश।।
सामाजिक निर्माण का,करता है य़ह काम।
सत शिव सुन्दर रूप ही,इसका अंतिम धाम।।
सभी रसों से युक्त य़ह,वीर करुण इत्यादि।
है विराट अनुपम सहज,शुभ चिंतन का आदि।।
जीव मात्र से स्नेह का,देता है उपदेश।
गद्य पद्य नाटक विधा,से देता निर्देश।।
आस्था अरु विश्वास का,संगम है साहित्य।
सर्वोपरि य़ह लोक में,करे काम्य य़ह नृत्य।।
प्रकृति पुरुष के मध्य में,शोभित स्तुत्य लकीर।
दिखे अमुल साहित्य है,जैसे मस्त फकीर।।
कहता सबसे है यही,करते चल परमार्थ।
परहितवादी कृत्य हो,छोड़ संकुचित स्वार्थ।।
कॄष्ण पार्थ पांडव बनो,दुर्योधन को मार।
दूषित मन को कुचल दो,प्राणि मात्र से प्यार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[22/11, 15:51] Dr.Ram Bali Mishra: रामचन्द्र प्रभु सर्व हैं।
रामचन्द्र प्रभु सर्व हैं,वही ब्रह्म भगवान।
जो पूजे श्री राम को,उसे मिले शुभ ज्ञान।।
राम सखा माता पिता,राम सर्व साकार।
कण कण में श्री राम का,होय सहज दीदार।।
नेह लगे श्री राम से,अन्य नहीं कुछ देख।
अद्वितीय अद्भुत अमर,रघुवर दिव्य सुलेख।।
राम भक्ति से ग्रह रहें,आजीवन अनुकूल।
जिसको प्रिय श्री राम हैं,उसको य़ह जग धूल।।
भूख लगे श्री राम की,मिटे उन्हीं से प्यास।
जिसके उर में राम हैं,वही दिव्य प्रभुदास।।
रा का मतलब राज है,म का मतलब मस्त।
राम नाम के जाप में,लगा रहे मन व्यस्त।।
रा से करना राष्ट्र का,आजीवन उद्धार।
म से मारो मंत्र वह,सुखी दिखे संसार।।
रा से रमण भ्रमण करो,चिंतन करो पवित्र।
म से मारो क्रोध को,गमको जैसे इत्र।।
राम नाम व्यापक मधुर,नित अनंत आकाश।
देत सकल ब्रह्माण्ड को,अनहद नाद प्रकाश।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[23/11, 15:56] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति माधुर्य (दोहा गीत)
प्रीति मधुर रस अमृता,यह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
तन मन सूना प्रीति बिन,उर में अति अंधियार।
जहां प्रीति विचरण करे,वहीं स्वर्ग का द्वार।।
प्रीति मधुर रस अमृता,य़ह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
मनमोहक आनंद का, होता मधु अहसास।
प्रीति ईश्वरी भाव में,दिव्य इत्र का वास।।
प्रीति मधुर रस अमृता,य़ह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
झूठा लगता जगत य़ह,उत्तम प्रीति महान।
अति आकर्षक मोहिनी,रग रग में है ज्ञान।।
प्रीति मधुर रस अमृता,यह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
अद्भुत स्वाद पराग अमि, सुमधुर द्रव्य मिठास।
शोभा यह संसार की,प्रीति अमोल उजास।।
प्रीति मधुर रस अमृता,य़ह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
प्रीति वर्णनातीत है, प्रेमिल राधा भाव।
स्नेह मिलन साकार सत,एकीकरण प्रभाव।।
प्रीति मधुर रस अमृता,य़ह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
प्रीति हृदय की वस्तु है,ईश्वरीय आसक्ति।
प्रीति परस्पर भाव में,भरी हुई है भक्ति।।
प्रीति मधुर रस अमृता,य़ह है अनुपम घोल।
पीनेवाला झूमता,बोले मीठे बोल।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/11, 11:25] Dr.Ram Bali Mishra: गांव की परम्परा
कृषि प्रधान गांव में किसान की परम्परा।
खेत लोक में दिखे सदैव स्वर्ग अप्सरा।।
प्राकृतिक स्वरूप दिव्य गांव गांव घूमता।
स्नेहपूर्ण भाव से समग्र गांव चूमता।।
मूल्य गांव का महान विश्व बंधु भावना।
राम कृष्ण शंभु वंदना असीम कामना।।
पूजनीय लोक देव देवता महान हैं।
वंदनीय शारदा सरस्वती जुबान है।।
धर्म की परम्परा प्रथा सजीव है यहाँ।
लोक रीति स्वच्छ सभ्य शुचि मधुर सरल यहाँ।।
गांव लोक सत्य निष्ठ उर विशाल दय सदा।
प्रीति रंगदार पीत सह उषा प्रियंवदा।।
मूल भाव शुद्धतम पवित्रतम उदार है।
व्यस्त नित्य कृत्य में प्रवृत्ति शिष्टकार है।।
अर्चना किया करे सदैव इष्ट देव की।
गांव के मनुष्य में सुवास वासुदेव की।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/11, 15:56] Dr.Ram Bali Mishra: अछूत
अछूत है मनुष्य जो करे न योग साधना।
भरी हुई असत्यता मलीन कृत्य वासना।
अधीर चित्त वृत्ति है अनित्य देह सत्य है।
स्वभाव संकुचित रहे महानता असत्य है।।
परार्थ की न कामना सदैव स्वार्थ भाव है।
न शुद्ध धर्म कर्म है अनीति का प्रभाव है।।
अभाव ज्ञान बुद्धि का परोपकार है नहीं।
नहीं पवित्र दृष्टि है प्रशांत मानसी नहीं।।
अधर्म पाप पुंज पर खड़ा दिखे अछूत है।
सहायता करे नहीं अछूत का कपूत है।।
असभ्य शब्द अर्थ है दरिंदगी
बहाल है।
पता नहीं मनुष्यता अमानवीय चाल है।।
न शिष्ट आचरण कभी दरिद्रता भरी हुई।
अछूत भाव दृश्य है सुचिंतना मरी हुई।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/11, 17:17] Dr.Ram Bali Mishra: बाल गीत (2)
मैं ईस्कूल नहीं जाऊंगा।
पापा का मन बहलाऊँगा।।
पापा मार्केट ले जाएंगे।
मुझको रबड़ी खिलवाएंगे।।
पापा!पढ़ने को मत कहना।
तुम किताब को लेकर पढ़ना।।
थक जाना तो तुम सो जाना।
मुझको भी तुम पास सुलाना।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[24/11, 17:18] Dr.Ram Bali Mishra: बाल गीत (1)
पापा!मुझको आज घुमाओ।
मुझको मेला अभी दिखाओ।।
घोड़ा पर चढ़ कर चलना है।
अपने साथी से मिलना है।।
बेटा!मेला बहुत दूर है।
थक जाओगे राह पूर है।।
पापा!मुझको मत बहकाओ।
ले चल मेला आज दिखाओ।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/11, 09:56] Dr.Ram Bali Mishra: माँ सरस्वती वंदना (सरसी छंद )
तुम्हीं चंद्रमा शिव मस्तक पर,आसन उच्च महान।
चमक रहा है तेज तुम्हारा,तुम्हीं दिव्यतम ज्ञान।।
प्यार तुम्हारा पाकर मानव,बन जाता विद्वान।
बना तपस्वी खींच रहा है,सारे जग का ध्यान।।
तुम उत्साहित करती सबको,भरती सबमें जोश।
ज्ञान मदिर का पान करे जो,हो जाये मदहोश।।
खुश होती हो नतमस्तक पर,देती अपना राज।
दिव्य अदाएं दिखला कर तुम,करती सारा काज।।
बैठी हो सुन्दर पुस्तक पर,तुम्हीं अक्षराकार।
पावन लेखन वाचन करती,तुम अमृत रसधार।।
मधुर भाव है चाल मस्त है,परम अलौकिक प्यार।
खुला हुआ है सकल धरा पर,विद्या का दरबार।।
विनयशीलता का वर दो मां,मन बन जाये हंस।
रोम रोम में देव वास हो,मारा जाये कंस।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/11, 11:22] Dr.Ram Bali Mishra: आत्म दर्पण (शिव छंद)
राम नाम कामना,
सौम्य शुद्ध भावना,
दिव्य धाम याचना,
धर्म की प्रवृत्ति हो।
दर्शनीय भव्यता,
आत्म दृष्टि नव्यता,
रम्य रश्मि नम्रता,
सभ्य चित्तवृत्ति हो।
प्रेम राग रागिनी,
शील सत्य गामिनी,
स्पष्ट रूप कामिनी,
चित्त की निवृत्ति हो।
आन बान शान हो,
मान ज्ञानवान हो,
सृष्टि सत्यवान हो,
प्रज्वलीय वृत्ति हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[25/11, 16:12] Dr.Ram Bali Mishra: अकेला नहीं हो (शक्ति छंद )
चला था अकेला सहारा मिला।
मिली बूँद प्यारी सितारा मिला।।
अनायास पाया न सोचा कभी।
पुराना नहीं था नया था अभी।।
लगा किन्तु ऐसा पुराना सदा।
मिला एक प्यारा रहा जो बदा।।
सदा चाल मस्ती भरी दिव्य श्री।
छिपी बूँद में भव्य सी राज श्री।।
मनो तन्तु में नव्य राधा समा।
करारी दिलेरी दिखी थी जमा।।
न बंदा अकेला रहा जान ले।
सदा प्यार पाया इसे मान ले।।
कभी ये न सोचो अकेला खड़ा।
सहारा मिलेगा जरूरी बड़ा।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/11, 11:16] Dr.Ram Bali Mishra: प्रेम की मर्यादा (दोहा गीत)
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
स्वाभिमान से प्रेम में,होय निरंतर वृद्धि।
उत्तम निर्मल मन बने,रहे हृदय में शुद्धि।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
दिखलायी दे प्रेम में,पावन भाव विचार।
विकृत चित नित दग्ध हो,मिले हंस का द्वार।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
प्रेम तत्व अमृत अमर,इसको रखो संभाल।
सदा चमकता है सहज,इसका उन्नत भाल।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
इसकी सीमा उच्च हो,हद में हो इंसान।
नहीं वासना प्रेम है,य़ह पवित्र मन ध्यान।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
माँ का सच्चा रूप है,प्रेम अमी रस ज्ञान।
यह ईश्वर का नाम है,दिव्य रतन धन खान।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।
गंगा जल सम प्रेम है,स्वयं गंग साकार।
बना भगीरथ नित करो,प्रेम सिन्धु उद्धार।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
मत विकार पैदा करो,यही स्वर्ग सोपान।
रौरव नरक उसे मिले,जो करता अपमान।।
बहुत प्रतिष्ठित प्रेम है,इसका हो सम्मान।
सात्विक मोहक भाव से,बढ़े प्रेम का मान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[26/11, 18:18] Dr.Ram Bali Mishra: आत्म सम्मान
मात्रा भार 15/11
जो करता अपना सम्मान,मधुर मनोहर चाल।
देता हर मानव को स्नेह,रखता सबका ख्याल।।
सबसे चाहे उत्तम मेल,निर्विकार का भाव।
सदा बने वह प्रिय आदर्श,विनयी दिव्य स्वभाव।।
सबके प्रति सद्भाव विचार, रुचिकर ज़नसहयोग।
खुले हृदय से करता बात,आत्म भाव का योग ।।
मन में नहीं पराया बोध,सब अपने हैं मीत।
घुलमिल कर देता है साथ,जीवन मधु संगीत।।
अति संवेदनशील मनीष,दिल में प्यार अपार।
हाथ जोड़ कर करे मिलाप,करे न आत्म प्रचार।।
सदा पराये का सुख देख,मन में हो उल्लास।
देखे सब में अपना रूप,खुद में भी अहसास।।
रक्षित करता अपना मान,अन्यों का सम्मान।
सहन नहीं करता अपमान,सदा प्रतिष्ठा ध्यान।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/11, 09:31] Dr.Ram Bali Mishra: प्रेम गीत (शिव छंद )
मुक्तक
प्रेम गीत गाइए,
प्रीति को जगाइए,
पी सदा अमी सुधा,
दर्द को भगाइए ।
कर्म मध्य धर्म हो,
आदि अंत नर्म हो,
भाव खींचता रहे,
गीत प्रीत्य मर्म हो।
शब्द दर्शनीय हो,
अर्थ स्पर्शनीय हो,
स्नेह गूंजता रहे,
वाक्य वंदनीय हो।
बोल शिष्ट अर्चना,
हर्षयुक्त अर्जना,
माँग हो सजी धजी,
स्निग्ध माल सर्जना।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[27/11, 17:37] Dr.Ram Bali Mishra: सर्वार्थ साधिका दिव्य सरस्वति (सरसी छंद )
तू ही रहती है सत्ता में,उच्च आसनासीन।
सबको देखा करती है मां,उत्तम कुशल प्रवीन।।
हिलती पीपल के पत्ता में,पावन लोक निवास।
कण कण में तू ही बैठी है,भक्तों को अहसास।।
तू ही काली कलकत्ता में,दिव्य शक्ति धर्मार्थ।
दम्भनाशिनी ज्ञान वर्धनी,आजीवन परमार्थ।।
अर्थ अनंत अतुल अनुमाना,तू आकाशी भाव।
आदि काल से अंतहीन तक,तेरा विपुल प्रभाव।।
परम वंदनीया यशदायी,तू ही ज्ञान विधान।
करुणा सागर नेति नेति मां,सर्वश्रेष्ठ विद्वान।।
वर दे वर दे सदा मातृ प्रिय,सतत हंस पर बैठ।
पुस्तक ले कर आना माता,सहज हृदय में पैठ।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/11, 09:58] Dr.Ram Bali Mishra: कल कैसा हो?
कल कैसा हो?
स्वर्णिम सा हो।।
स्वर्गिक सुख हो।
कभी न दुख हो।।
हरित धरा हो।
दिल गहरा हो।।
मधुर प्रीति हो।
सहज नीति हो।।
प्रेम परस्पर।
निर्मल मन्तर।।
शांत राह हो।
शुभ्र चाह हो।।
तन उर पावन ।
जग मनभावन।।
द्वेष दूर हो।
दुष्ट चूर हो।।
कोमलता हो।
मानवता हो।।
पर उपकारी।
दिल हितकारी।।
कपट नहीं हो।
मनुज सही हो।।
सभी एक हों।
भाव नेक हो।।
उन्नत स्तर हो।
दिव्य शहर हो।।
भावुक मानव।
पीड़ित दानव ।।
खुश हो परिजन।
सुधरें दुर्जन।।
आस पास हो।
सभ्य न्यास हो।।
मधु चिंतन हो।
हरि कीर्तन हो।।
मलय समीरा।
शुचिकर नीरा।।
मीठी बोली।
मोहक टोली।।
अहित नकारो।
शिवम सकारो।।
सरसिज कल हो।
भाग्य प्रबल हो।।
गंगा जल हो।
स्नेह कुशल हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/11, 19:00] Dr.Ram Bali Mishra: नाम अमर हो (मुक्तक)
तेरा मेरा नाम अमर हो।
प्यार निभाना सत्य अगर हो।
छोड़ न देना कभी भूल कर।
साथ निभाना सहज अगर हो।
तुझको पाया है तप तप कर।
अति प्रिय संगति तुझको जप कर।
प्रभु के कृपापात्र हम दोनों।
साथ मिला य़ह शुभ मधु प्रियतर।
गहरा वंधन, डर लगता है।
खो जाने का भय लगता है।
दिल में रहती है बेचैनी।
कभी न मन निर्भय रहता है।
हर क़ीमत पर दर्शन देना।
हट जाने का नाम न लेना।
नाम तुम्हारा प्रीति माधुरी।
अमर रहे य़ह साथ मधुर री!
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/11, 22:17] Dr.Ram Bali Mishra: प्रीति राग
प्रीति राग सत्य हो,
य़ह नहीं असत्य हो,
प्रीति में पराग हो,
शुद्ध हो,न दाग हो।
माधुरी तरंग हो,
स्नेह रंग ज़ंग हो,
भाव की पुकार हो,
चाँद की दुआर हो।
लोक मस्त मस्त हो,
कुछ न अस्त व्यस्त हो,
पावनी खुराक हो,
सत्व सिद्ध धाक हो।
चाँदनी सुहाग हो,
देवदार वाग हो,
प्रीति नव्य निर्मला,
दिलरुबा सुमंगला।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[28/11, 23:38] Dr.Ram Bali Mishra: डॉ0 रामबली मिश्र के दोहे
धर्म यही साहित्य का,सबका हो सहयोग।
सब की सेवा में निहित,हृदय सुधारक योग।।
जिसके मन में है रचा,बसा अमिट सहयोग।
वह उत्तम मानव सरल,करे प्रेम का भोग।।
बैठा जिसके हृदय में,मानव एक उदार।
वहीं दिव्यतम आतमा,जीवनभर उपकार।।
सबके प्रति संवेदना,नहीं वैर का भाव।
संत शिरोमणि है वही,निर्मल सहज स्वभाव।।
जो पहुंचाता ठेस है,उसका पतित कुचाल।
संस्कार से रहित ज़न,चलता गंदी चाल।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/11, 09:31] Dr.Ram Bali Mishra: अनाम
अनाम नाम राम का।
महत्वपूर्ण काम का।।
यहाँ वहाँ विचर रहे।
सदैव काम कर रहे।।
भला किया करें सदा।
बुरा नहीं कभी कदा।।
सहज सरल कुशल महा।
अजर अमर स्वयं जहां।।
अनन्त राम कामता।
समस्त विश्व जानता।।
करोति धर्म स्थापना।
सदैव राम ध्यानना।।
प्रकार्य राम अस्मिता।
सदेह है सहिष्णुता।।
सनातनी अजेय हैं।
पुराण वेद ज्ञेय हैं।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/11, 11:00] Dr.Ram Bali Mishra: परिश्रम का फल (शुभांगी छंद )
कर्म मुख्य है,यही बीज़ है,तरुवर दिखता,फलदायी ।
जो जैसा भी,करता रहता, बढ़ता चलता,भरपायी।।
जो विद्यार्थी,करे परिश्रम,नित्य साधना,स्वयं कढ़े।
पढ़ता लिखता,पुस्तक प्रेमी,बनकर खुद ही,आप गढ़े।।
वही मनुज जो,करे तपस्या,बने तपस्वी,शिव साधक।
पर उपकारी,कर्म करे वह,जग का सेवक,आराधक।।
कृषक मनीषी,करे परिश्रम, खेत हरित हो,अन्न मिले।
जीवन यापन,होता रहता,पूर जरूरत,मूँछ खिले।।
पढ़ने लिखने,वाला शिक्षक,तप तप तप कर,हो ज्ञानी।
शिष्य हेतु वह,सहज समर्पित,प्रिय अनुशासन,नित ध्यानी।।
जैसा भी जो,करे परिश्रम,वैसा ही वह,फल पाये।
घोर परिश्रम,का फल मीठा,गीता कहती,समझाये।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/11, 15:07] Dr.Ram Bali Mishra: जब तुम मिलते (त्रिभंगी छंद )
जब जब तुम मिलते,प्रेम निखरता,चंचल होता,दिव्य मिलन।
मधु स्वर्गिक सुख का,दर्शन होता,चार आँख हो,अद्भुत मन।।
अति मोहक चितवन,प्रिय मनरंजन, मुस्कानों से,उर विह्वल।
अतिशय मनभावन,हृदय लगावन,तन मन सावन,हिय हलचल।।
अति कोमल अंगी,उर्मिल जंगी,मधु बहुरंगी,सुख देता।
हरता दुख पीड़ा, प्रेमिल क्रीड़ा,चित की चोरी,कर लेता।।
जब याद तुम्हारी,मन में आती,तुम आते हो,मिल लेते।
य़ह कैसा रिश्ता?वर्णन कैसे?इसका होगा,जो देते।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/11, 17:30] Dr.Ram Bali Mishra: माँ (गीत)
माँ को कौन भला पायेगा?
माँ को कौन भुला पायेगा??
नीर बनी माँ प्यास बुझाती।
दिल में शिशु को सदा बसाती।।
बनी सेविका सेवा करती।
शिशु के लिए सदा वह तपती।।
माँ को कौन भला पायेगा?
माँ को कौन भुला पायेगा??
हँस हँस खुश हो दूध पिलाती।
लोरी वह दिन रात सुनाती।।
सुन्दर उत्तम बात बताती।
गोदी में ले नित सहलाती।।
माँ को कौन भला पायेगा?
माँ को कौन भुला पायेगा??
श्वांस प्राण से भी वह प्यारा।
माँश्री का शिशु अनुपम न्यारा।।
शिशु सर्वोत्तम प्यार खिलौना।
उसके आगे सब कुछ बौना।।
माँ को कौन भला पायेगा?
माँ को कौन भुला पायेगा??
हाथ पकड़ कर उसे घुमाती।
महा पुरुष की राह दिखाती।।
शिशु के लिए झगड़ जाती है।
बनी रक्षिका लड़ जाती है।।
माँ को कौन भला पायेगा?
माँ को कौन भुला पायेगा??
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[30/11, 21:19] Dr.Ram Bali Mishra: याद (सरसी छंद )
याद आ रही आज बहुत है,रहो हमेशा पास।
बिना तुम्हारे जीवन नीरस,मन है बहुत उदास।।
छाया बनकर दिल बहलाना,करता हर पल आस।
मन में एक तुम्हीं बैठे हो,खत्म न कर उल्लास।।
वातावरण सुहाना कर दो,खुशियों से गुलजार।
बन प्रकाश चमको उर प्रांगण,मिटे सकल अंधियार।।
बिना हिचकते आना प्रियव्रत,तुझ पर है इतवार।
तुम्हीं हँसी हो तुम जीवन हो,हो तेरा दीदार।।
तड़पा तड़पा कर मत मारो,साया बन आ मीत।
तुझ पर लिखता रहता हरदम, दुखद विरह के गीत।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/12, 10:25] Dr.Ram Bali Mishra: रामभक्ति (रोला)
जिसमें हो अनुराग,वही भक्त बनता सदा।
जहाँ न उर में स्नेह,नहीं भक्ति धारा कदा।।
अति श्रद्धा विश्वास, दिलाते भक्ती रहते।
लाते प्रभु के पास,बात करने को कहते।।
सर्व श्रेष्ठ है भक्ति,इसके आगे तुच्छ सब।
सदा भजे जो राम,मिल जायेंगे राम तब।।
राम भजन है सार,यह है दिव्य महान धन।
जादू उनको जान,करते निर्मल सकल तन।।
स्वयं त्रिलोकीनाथ,राम भुवनेश्वर प्यारा।
दीनबंधु भगवान,ब्रह्ममय सबसे न्यारा।।
प्रभु को साथी मान,बना जो उनका स्नेही।
रहा नहीं वह देह,बना खुद पावन देही।।
शर्मसार संसार,राम ब्रह्म अमृत सरस।
नश्वरता से प्यार,पा सकता क्या रामरस??
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/12, 14:53] Dr.Ram Bali Mishra: जीवन है अनमोल
मात्रा भार 11/11
जीवन है अनमोल,इसे मत खोना रे।
य़ह है अमृत बीज़,खाद दे बोना रे।।
होय परिश्रम नित्य,जिन्दगी सुधरेगी।
कौशल हो साकार,चाँदनी चमकेगी।।
चित्त गगन हो पीत,प्यार का प्याला हो।
जीवन भू पर नेह,दृष्टि मधु हाला हो।।
बहुत सुखद संदेश,अगर जीवन हो सार्थक।
यही नरक की खान,रहे यदि यही निरर्थक।।
जीवन है संग्राम,हमेशा लड़ना है।
कभी न जाना चूक,निरन्तर चढ़ना है।।
जीवन का सम्मान,किया जो करता है।
वह रहता निष्काम,कर्मश्री बनता है।।
जीवन हो सरपंच,न्याय रखवाला हो।
रखे धर्म का ख्याल,मस्त मतवाला हो।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/12, 16:01] Dr.Ram Bali Mishra: जी कहता है
जी कहता है,
रहूं साथ में,
मन करता है।
मतवाला मन,
अति चंचल तन,
मोहक जीवन।
सत्य हृदय है,
अतिशय आतुर,
शीत मलय है।
मन की चाहत,
पूर न हो जब,
उर अति आहत।
जी व्याकुल है,
मन उदास हो,
अति आकुल है।
प्रिय आशा में,
जीवन जीता,
प्रत्याशा में।
साथ मिलेगा,
निश्चित य़ह है,
मन बहलेगा।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[01/12, 16:35] Dr.Ram Bali Mishra: कुछ तो कह दो
कब आओगे?
जरा बताओ,
कुछ तो कह दो।
आना प्यारे,
हृदय दुलारे,
कुछ तो कह दो।
सिर पर रख कर,
बनो सुघर नर,
कुछ तो कह दो।
नहीं करो मत,
हो जा सहमत,
कुछ तो कह दो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/12, 08:31] Dr.Ram Bali Mishra: आशा (सरसी छंद )
मात्रा भार 16/11
आशा सुख है आशा दुख है,य़ह कैसा है भान?
सुखमय दुखमय जीवन सारा,य़ह है सच्चा ज्ञान।।
साधारण मानव के मन में,आशा से ही नेह।
गौतम बुद्ध कहा करते हैं,आशा दुख का गेह।।
आशा ही दुख का कारण है,जब आहत हो आस।
प्रत्याशा जब घायल होती,मन तब दिखे उदास।।
खुद से आशा जो करता है,वह रहता है मस्त।
जिसे दूसरों से आशा है,वह रहता संत्रस्त।।
आशा अरु विश्वास तोड़ता,अब का मनुज समाज।
जहाँ आत्मबल उन्नत होता,पूरे होते काज।।
जब भी विकट परिस्थिति आती,आशा सिर्फ विकल्प।
और नहीं कोई चारा है,आशा ही संकल्प।।
आशा मरण निराशा जीवन,कहते वेद पुराण।
सच्चाई भी यही अद्यतन,आशा लेती प्राण।।
अपने ऊपर करे भरोसा,आशा का हो त्यागा।
मानव वही सुखी है जग में,जिसे आत्म अनुराग।।
जो आशा का सेवन करते,वे रहते बेचैन।
आशा छोड़ चलो पैदल ही,खुश रहना दिन रैन।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[02/12, 16:30] Dr.Ram Bali Mishra: सरस्वती वंदना
मात्रा भार 10/8/12
माँ!घर में आना,कभी न जाना,तुम्ही परम हितकारी। तेरी नित सेवा,होगी मन से,बनो सुलभ सुखकारी।
तुम विद्यादायी,ज्ञान विधायी, प्रिय आकर्षण भारी।
हर लो माँ पीड़ा,लेकर वीणा,बने जिंदगी प्यारी।
तुम विज्ञ मनोरम,वैभव अनुपम,शुभकर पुस्तकधारी।
अति मोहक ज्ञाता,जगत सुजाता,रिद्धि-सिद्धि अधिकारी।
अति शुद्ध सुहानी,प्रिय सम्मानी,निर्मल मन अविकारी।
पावन सुर सरिता,कर्म योगिता,रुचिकर सभ्य विचारी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/12, 09:32] Dr.Ram Bali Mishra: जिंदगी (मुक्तक)
मात्रा भार 19
जिंदगी सजती सदा है प्यार से।
यह गमकती है सदा दिलदार से।
तोड़ देना मत इसे बेइंतहां।
जिंदगी इंसान शिष्टाचार से।
मधु मिलन के भाव में है जिंदगी।
शुद्ध मानव रूप में है जिंदगी।
जिंदगी को जानने का अर्थ हो।
गेह सच्चे मूल्य का है जिंदगी।
पा गया जो प्रीति का प्याला वही।
हँस रहा मदमस्त हो यौवन वही।
है नहीं चिंता पड़ा बेफिक्र जो।
जिंदगी श्रीमान जी की है वही।
जिंदगी व्यापक बने खुशहाल हो।
नेह की तस्वीर का ननिहाल हो।
प्यार पाने के लिए शुभ कर्म कर।
शुभ्र मोहक कृत्य में भूचाल हो।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/12, 11:40] Dr.Ram Bali Mishra: आदमी (मुक्तक)
मात्रा भार 19
अति सिकुड़ता जा रहा है आदमी।
जल चुका पर ऐंठता है आदमी।
ठोकरें खाता लुढ़कता चल रहा।
दम्भ का मारा विदकता आदमी।
भूल जाता है बड़ों को आदमी।
अर्थ लोभी मर रहा है आदमी।
वह भटकता चैन से रहता नहीं।
दीन लगता है दरिन्दा आदमी।
दुष्टता के जाल में जकड़ा हुआ।
निंद्य वंदी जेल में पकड़ा हुआ।
श्रेष्ठ बनने का बहुत शौकीन है।
मृत दिखे शैतान पर अंकड़ा हुआ।
गल रहा नित जल रहा है आदमी।
हाथ अपना मल रहा है आदमी।
वृत्ति में दुर्भावना की बू दिखे।
मारता खुशबू नहीं अब आदमी।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/12, 13:43] Dr.Ram Bali Mishra: सरस्वती मां का हो वन्दन (सरसी छंद )
सरस्वती माँ का पूजन कर,उतर सिन्धु के पार।
उनके वन्दन अभिनंदन से,मिलता ज्ञान अपार।।
करो नमस्ते आगे बढ़कर,हो अपना उद्धार।
चतुर्भुजी माँ वीणा ले कर,देतीं सच्चा प्यार।।
देर नहीं करतीं हैं माता,आ कर रहती पास।
ज्ञान सिन्धु में स्नान करा कर,सदा बुझातीं प्यास।।
माँश्री से जो नेह लगाता,बन जाता विद्वान।
सत्य लेखनी चले निरंतर,हो छंदों का ज्ञान।।
कविता लिख मन कवि बनता है,भावों का भंडार।
आसमान के आने जाता,पा अनंत विस्तार।।
श्रीमाँ से जो बातेँ करता,बनता प्रिय अद्वैत।
ज्ञान भक्ति की धारा बहती,रहे न भ्रामक द्वैत।।
शंकाएं सब जल जाती हैं,मिटते सब संदेह।
चिंतन मनन अहर्निश चलता,कविवर बने विदेह।।
हंसवाहिनी माँ सरस्वती,देती हैं यश नाम।
भोलीभाली माता जी को,करते रहो प्रणाम।।
उनसे ही हर ज्ञान सीख लो,कर जग का उपकार।
इसी दिव्य गुरु मंत्र निराला,से कर शुभ उपचार।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[03/12, 16:35] Dr.Ram Bali Mishra: मेरा परिचय
क्षणभंगुर तन,
मस्ती का मन,
मधुर भाव ही,
मेरा परिचय।
सत्संगति ही,
शुभग प्रीति ही,
सहयोगी उर,
मेरा परिचय।
निर्मलता ही,
मधु समता ही,
न्यायनिष्ठता,
मेरा परिचय।
स्वाभिमान से,
आत्ममान से,
निर्मित है य़ह,
मेरा परिचय।
दिल न दुखाना,
ग़म का खाना,
सादा जीवन,
मेरा परिचय।
गांव सुहाना,
मन दीवाना,
मधुमय वाचन,
मेरा परिचय।
कपट त्याग में,
धर्म राग में,
जिवित रहता,
मेरा परिचय।
साफ़पाक हो,
सभ्य धाक हो,
सहनशील हो,
मेरा परिचय।
सहज समर्पण,
दिल का तर्पण,
सत्व साधना,
मेरा परिचय।
अहित नहीं हो,
दुखद नहीं हो,
प्रिय सद्भावन,
मेरा परिचय।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/12, 08:35] Dr.Ram Bali Mishra: मेरी चाहत
सुख से जीवन,
सबका बीते,
दिल को जीतें,
खुश घर आँगन।
प्रिय भावों का,
भंडारण हो,
उच्चारण हो,
मधु हावों का।
प्रीति परस्पर,
का आलय हो,
मोहक लय हो,
स्नेह निरन्तर।
मधु मुस्कानें,
नृत्य करें अब,
पीर हरें तब,
मधुर तराने।
सावन छाये,
लोक लुभावन,
अति सुख आवन,
बायें दायें।
प्रीति सरित हो,
स्नेह लहर हो,
स्वच्छ शहर हो,
भाव गणित हो।
सुरभित धन हो,
सच्चा अर्जन,
हार्दिक अर्चन,
उर कंचन हो।
प्रेम दिवस हो,
मन कोमल हो,
दिल निर्मल हो,
वचन सरस हो।
भावुक वाचन,
नैतिकता का,
शिष्ट वीर्य का,
मधु अनुशासन।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/12, 09:45] Dr.Ram Bali Mishra: जय श्री राम (स्वर्णमुखी छंद/सानेट )
रामचन्द्र विष्णु सा।
धर्म सा महान हैं।
धीर वीर ज्ञान हैं।
देवव्रत सहिष्णु सा।
राम नाम सिद्ध है।
युग अनंत स्वामि सा।
ब्रह्म रूप धामि सा।
नौजवान वृद्ध हैं।
जो सघन विशाल हैं।
नीर जन्म जात हैं।
हीर सुप्रभात हैं।
विश्व भूमि पाल हैं।
राम नाम अमृता।
दृष्टि भव्य वंदिता।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।
[04/12, 16:26] Dr.Ram Bali Mishra: खौफ (रोला )
खौफजदा इंसान,हमेशा डरता रहता।
बोली उसकी बंद,नहीं मुख से कुछ कहता।।
भय मन में है व्याप्त,भूख प्यास गायब सभी।
दिखता सदा उदास,शांति नहीं मिलती कभी।।
व्याकुलता की नींव,सदा दुखदायी होती।
रहता सहज तनाव, हमेशा जागृति रोती।।
भयाक्रांत है बुद्धि,मलिन है दैहिक बस्ती।
लुटा लगे संसार,छोड़ घर असहज मस्ती।।
सूखा तन मन रूप,भाव कुंठा को गाता।
खौफ भयानक दैत्य,मानसिक वृत्ति दुखाता।।
मची खलबली देख,डरा दिल धकधक करता।
करे हताशा घाव,शांत रस धूमिल लगता।।
सकल वीरता छिन्न,अंग सब शैथिल होते।
जीवन बहुत निराश,भयाकुल मानस रोते।।
साहित्यकार डॉ0 रामबली मिश्र वाराणसी।