ISBN-978-1-989656-10-S ebook
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डा. दाऊ जी गुप्ता : हिन्दी के पुरोधा डा. दाऊ जी गुप्ता (स्मृति ग्रंथ ) पृष्ठ – 125
संपादक :डा. हरिसिंह पाल, प्रकाशक सौजन्य– डा. पदमेश गुप्त (आक्सफोर्ड(यू.के.)
PUBLISHER : MADHU PRAKASHAN , 44 BARFORD ROAD, TORONTO, ON, M9W 4H4 CANADA
Phone : +1-416-505-8873
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स्व. डा. दाऊ जी गुप्ता जी की प्रथम पुण्य तिथि पर आदरणीय डा. हरिसिंह पाल जी द्वारा संपादित पुस्तक प्राप्त हुई। मुझ जैसे अल्पज्ञ पाठक के लिए यह बहुत अद्भुत अनुभव था। पुस्तक के विमोचन के अवसर पर मुझे शामिल होने का सुअवसर मिला था। उनके परिवारीजनों तथा अन्य करीबियों को सुन कर मन डा. गुप्त जी के प्रति अगाध सम्मान से भर गया। लखनऊ में तथा पूरे देश में, उनके द्वारा किए गए सत्कार्यों को, नागरिक कभी विस्मृत नहीं कर पायेंगे।
मैं पुस्तक के आरंभ में उत्कृष्ट संपादकीय को पढ़कर ही अभिभूत हो गई। आदरणीय पाल साहब ने जो भाव अभिव्यक्त किए हैं, वो अनमोल हैं। आजकल के बहुत सारे नवयुवाओं को शायद यह सारी बातें पता ही नहीं होगीं कि डा. दाऊ जी गुप्ता जी भारतीय संस्कृति से इतनी गहनता से जुड़े थे।
यह जानकार भी बहुत सुखद अनुभूति हुई कि आज से लगभग 30 वर्ष पूर्व ‘विश्व हिन्दी समिति’ की स्थापना की गई थी। ‘सौरभ त्रैमासिक पत्रिका’ के बारे में जानकर भी बहुत प्रसन्नता हुई।
इतने सक्रिय, निष्ठावान और प्रेरक व्यक्तित्व के स्वामी डा. दाऊ जी गुप्ता जी के बारे में इतनी विशिष्ट जानकारी पाकर मैं चकित रह गई। भारत और भारतवंशियों के मध्य सांस्कृतिक दूत की सक्रिय एवं सार्थक भूमिका निभाने वाले डा. गुप्ता जी के इस चमत्कृत कर देने वाले व्यक्तित्व से जुड़ी जितनी बातें पढ़ीं, सब अविस्मरणीय रहीं।
डा. दाऊ जी गुप्ता ‘अखिल विश्व हिन्दी समिति’ के एक ‘संस्थापक’, ‘अंतराष्ट्रीय अध्यक्ष’ , ‘सौरभ पत्रिका के संपादक’, ‘भारतीय धर्म , संस्कृति एवं भारतीय साहित्य के महान विद्वान थे’। जनमानस के मध्य उनकी लोकप्रियता तो सभी को पता है, पर जिस तरह परिवारीजनों के अनुभव पढ़ने को मिले, वो अद्भुत हैं।
पुस्तक पढ़ने पर ज्ञात हुआ कि वे विश्व की अनेक भाषाओं के ज्ञानी थे | पुस्तक में क्रमबद्ध तरीके से अनुक्रमणिका को प्रस्तुत किया गया है। प्रवासी भारतीयों द्वारा तथा भारतीयों द्वारा उनकी किस तरह प्रशंसा हुई है, वो उनके व्यक्तित्व की भाँति ही अद्भुत है। चिर-स्मृता, भारत-पाक युद्ध, गीत जैसी गुप्त जी की रचनाएँ पढ़कर चिंतन को नई दिशाएं मिलीं। पुस्तक में उनके चयनित लेखों को भी स्थान दिया गया है, जिसमें उनकें लेख ‘गांधी का समाजवाद’ , ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में डा. अंबेडकर’, ‘विश्व की संपर्क भाषा की क्षमता केवल हिन्दी में’ पढ़कर उनकी सृजनशीलता को नमन करती हूँ |
डा. विजय कुमार मेहता जी द्वारा रचित गीत ‘याद आती रहेगी तेरी उम्रभर …’ पढ़कर मन भावुक हो गया | ऐसे लोग बिरले ही होते हैं, जिनकों कोई इस तरह याद करे। डा. मीरा सिंह जी (फिलडेल्फिया) जो कि अध्यक्ष ‘अंतराष्ट्रीय हिन्दी साहित्य प्रवाह’ है ने कविता ‘मातृभूमि आह्लादित होती है जब/तब लोकहित सेनानी जन्मते हैं’ लिखकर उनके एक और रूप का परिचय कराया। आ. गोपाल बघेल ‘मधु’ (कनाडा), डा. राजेन्द्र मिलन (आगरा), डा. इन्दू सेंगर (दिल्ली) , शशिलता गुप्ता (बेगलुरू) आदि की काव्य रचनाओं में जिस तरह डा. दाऊ जी को याद किया गया है, वो अतुलनीय है। सबसे ज्यादा खुशी तब हुई जब ‘मेरे प्रेरणापुरूष’ शीर्षक से एक बेटे ने (पदमेश गुप्ता )अपने पिता जी के बारे में इतने अच्छे भाव प्रस्तुत किये कि मन जैसे उसी जीवन में रम गया। जब वो लिखते हैं कि “उनकी रचनाओं ने विश्व की विभिन्न संस्कृतियों और एक दूसरे से भिन्न तौर तरीकों और जनता की भावनाओं को अपने अंदर समेटा है” तो सुलभ स्नेह की सुखानुभूति होती है। कितने भाग्यशाली पिता रहे वो, जिन्हें इतना समझने वाला पुत्र मिला।
पुस्तक के द्वारा यह भी पता चला कि वो सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध रहते थे तथा मानवता की भावना से ओत-प्रोत रहते थे। दलित – शोषित वर्गों के प्रति उनके हमदर्दी-पूर्ण व्यवहार को जानकर मन भावुक हो जाता है |
पुस्तक का एक और भाव हृदयतल को स्पर्श कर गया जब उनके ईग्लैंडवासी पुत्र की यह पक्तियाँ पढ़ीं कि “अद्भुत क्षमता वाले प्रतिभावान पिता का पुत्र होने पर मुझे गर्व है। पिछले पैंतीस वर्ष से मैं इग्लैंड में रह रहा हूँ परंतु फिर भी संभव है इसी गर्व ने मुझे पिता-पुत्र के सम्बन्धों पर अनेक कृतियाँ रचने की प्रेरणा दी”।
कितने सुलझे हुए पिता होंगे वो जिनका पुत्र आज के जमाने में ऐसी बात लिख रहा है। बहुत बहुत धन्यवाद कहना चाहूंगी श्री हरिसिंह पाल जी को, जिन्होंने इस अनूठी पुस्तक को पढ़ने का अवसर प्रदान किया। ‘पूरी दुनिया से जुड़ाव था उनका’ शीर्षक से डा. अंजना संधीर जी, जो कि पूर्व प्रोफेसर कोलंबिया यूनिवर्सिटी न्यूयार्क की है, उन्होने इतना विलक्षण रूप प्रस्तुत किया डा. गुप्ता जी का, कि पढ़ते पढ़ते मन भाव –विभोर हो गया।
अनिल शर्मा जोशी जी से लेकर प्रो. श्री भगवान शर्मा आदि लोगों की स्मृतियों में जिस तरह डा. दाऊ जी गुप्त जी एक प्रेरणा बनकर जी रहे हैं , वो सबके भाग्य में नहीं होता। साहित्य की इस अनमोल कृति के लिये पूरी टीम को स्नेहिल धन्यवाद।
रश्मि लहर
लखनऊ, उ.प्र.