Il कैसी-कैसी सुनता हूं Il
मत पूछो मैं निस दिन किसकी कैसी-कैसी सुनता हूं l
सब सपनों में मस्त सो रहे जगकर सपने बुनता हूं ll
क्या आएगी कभी धूप मेरे भी छोटे आंगन तक l
जाने कितनी बार में उठकर आसमान को तकता हूं ll
जिसको सिखाया चलना वही हर पल चाल बदलते हैं l
दशकों से हालात ना बदले इंतजार बस करता हूं ll
काला, गेरुआ, हारा, लाल ,सबकी अपनी ख्वाइश है l
खाली जेब दिखावे को बस बटवा साथ में रखता हूं ll
बर्तन भी आपस में लड़तेे भूखे पड़े रसोई में l
मौत के डर से भाग रहा हूं समझ रहे नहीं थकता हूं ll
हक मेरा वही लूट रहे जो बैठे ऊंचे आसन पर l
कैसे अर्जी दे दूं उनको जो कहते चोर पकड़ता हूं ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश l