II….हो सके तो टाला कर II
जन्नत का रास्ता भी ,यही से निकलेगा l
अंधेरी राह में दीपक, जलाकर तू उजाला कर ll
अपने लिए तो आज तक ,एक उम्र जी लिए l
क्या समाज को क्रेडिट किया लेखा खंगाला करll
रिश्ते जो गिर रहे हैं, तेरे ऊंचे मकान से l
निकल कर तंग गलियों से ,उनको संभाला कर ll
इक रोज यह हवाए करेंगी, तेरे हक में फैसला l
जलता रहे दीपक मगर ,दुश्मनी इनसे न पालाकर ll
उजाले चाहते हैं सब,” सलिल “बाहर के दीप से l
भीड़ भरे रास्तों से गुजरना, हो सके तो टाला कर ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l