II सजा दिल लगाने की II
साथ मेरे मिली उसको, सजा दिल लगाने की
l
मुझको पता उसने मुझसे, यह छुपाया होगा ll
बात कर लेता हूं अपनी, मैं मेरी ग़ज़ल से l
हाल क्या उसका ना जिसे, यह शरमाया होगा ll
शमशीर से नहीं मिलता ,दुनिया का तख्तो ताज l
झुक जाओ तो, कदमों में सब आया होगा ll
कुछ मजबूरियां तो होगी, उसकी भी “सलिल” l
ऐसे ही तो नहीं जख्म ,अपना छुपाया होगा ll
संजय सिंह “सलील”
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश
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