II रास्ते में हूं…II
रास्ते में हूं, पर उसे ढूंढता l
नासमझ हूं यह, क्या ढूंढता ll
ईंट बालू के जंगल, वही देवता l
फरियादों का क्यों, असर ढूंढ़ता ll
शाम आई पूरा ,सफर ना हुआ l
चाल डगमग है ,हमसफ़र ना हुआ ll
मन तलाशे क्या, अजनबी देश में l
राह गुम है जो, वही पता पूछता ll
जो मिले दोस्त भी, मतलब के यहां l
जीवन यहां है, कहो जाएं कहां ll
मन में मरुस्थल ,कब से ,भटकता रहा l
प्यार में सागर अब ,शिखर ढूंढता ll
संजय सिंह “सलिल ”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l