II मोहब्बत II
एक लफ्ज है नाम मोहब्बत ,
दुनिया का है राज मोहब्बत,
बिन इसके ना बाप न बेटा ,
राखी की है लाज मोहब्बत lI
ना गांधी ना नेहरू होते,
आजाद भगत शहीद न होते ,
जीने की यह राह मोहब्बत,
और मरने में भी यार मोहब्बत Il
फिर झगड़े और दंगे क्यों हैं ,
यदि है दुनिया बस प्यार मोहब्बत ,
जरा गौर से सोच कर देखो है ,
इसमें भी गुमराह मोहब्बत lI
कहीं किसी का कत्ल ना होता,
घर कोई शमशान ना होता,
यदि होता बस भाईचारा,
और हर दिल में एक पाक मोहब्बत lI
ना जीते हैं हम वादों पर ,
ना किसी हसीना के ख्वाबों पर ,
बस अपना ईमान मोहब्बत ,
अपनी लेला यार मोहब्बत lI
अमीर औ गालिब की शायरी देखी,
मानस, कुरान, रामायण देखा ,
इससे अलग ना कुछ भी उसमें ,
उसका भी आधार मोहब्बत lI
आज कौन है किसका जग में,
हर एक अपनी अपनी धुन में ,
रहा ना आपनो तक अपनापन,
अपनों तक भी प्यार मोहब्बत lI
मैंने किसी का कत्ल किया ना ,
ना कोई घर बार ही लूटा ,
फिर भी जमाने का मुजरिम हूं,
मुझ पर है इल्जाम मोहब्बतlI
कत्ल किया था उसने मेरा,
और मुजरिम भी मुझे बनाया,
कत्ल तो कोई जुर्म नहीं था ,
मुझपे बड़ा इल्जाम मोहब्बत lI
बांध सका ना कोई जिस को ,
शब्द हो या जंजीरों में ,
बहुत बड़ा है यह छोटा सा,
दिल का एक जज्बात मोहब्बत Il
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l