II मोहब्बत का दिया…..I
मोहब्बत का दिया, यार अब तो जलाओ l
अब मेरे होसले को, मत और आजमाओll
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बहुत कुछ है यहां खोया ,नफरतों में हमनेl
हम वतन और हमसे वतन ,उनको बताओll
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आज परेशान हम, ज्यादा पाने की धुन में l
जिसको जितना मिला ,उसमें ही मुस्कुराओll
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जिंदगी जो है यारों, एक मुश्किल डगर है l
रूठ कर और इसको, न मुश्किल बनाओ ll
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मैं समुंदर में भी, पार लग जाऊंगा l
बन पतवार बस ,तुम मेरे साथ आओ ll
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दीप भी जलेंगे ,होगी रोशनी यहां l
हो सके तो वहां ,तुम भी जगमगावो ll
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संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेशl