II मतदाताओं का अधिकार II
मतदाताओं का अधिकार ,
बस एक मत पत्र,
चंद बूंद स्याही,
और कुछ वर्षों तक,
मुंह बंद रखने के लिए एक मोहर l
और उसके बाद फिर वही,महंगाई ,
बेकारी, बेबसी और लाचारी का तांडव,
जिसमें अपना अस्तित्व और पहचान ढूंढता,
स्वाधीन देश का स्वाधीन नागरिक l
और दूसरी तरफ मतों की ईटों पर ,खड़ी होती,
प्रजातंत्र के रहनुमाओं की ऊंची हवेलियां ,
और उसमे भौंकने वाले कुत्ते,
ऐसे कुत्ते जो सिर्फ भोंकते हैं l
यह भौंकते हैं पांच वर्षों के अंतराल पर ,
जनता को अपनी उपस्थिति का एहसास,
दिलाने के लिए या उस वक्त ,
जब कभी खतरा नजर आता है ,
इन हवेलियों के ढहने का l
और एक बार फिर मिलता है ,
जनता को उसका अधिकार ,
एक मतपत्र चंद बूंद स्याही और एक मोहर,
साथ में अपनी लाचारी और बेबसी का एहसास l
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l