II नसीबा हि दुश्मन…..II
नसीबा हि दुश्मन हमारा हुआ है l
जहां डूबी कश्ती किनारा हुआ है ll
मेरी मुफलिसी छोड़ जाती नहीं हैl
मेरा घर हि उसका ठिकाना हुआ है ll
दिया उसने जबसे पता अपना लिखकर l
मुसीबत क ही आना-जाना हुआ हैll
थि साजिश रकीबों कि पहचान अपनी l
मुलाकात बस एक बहाना हुआ हैll
जो रिश्ते थे पहले ही टूटे सभी हैं l
रहा फर्ज अब तो निभाना हुआ हैll
चलाए थे हमने सभी तीर अपने l
छुपे पीठ पीछे यह धोखा हुआ हैll
बचाया नहीं हमने गिरके भि खुद को l
कई दाग जो रंग चोखा हुआ है ll
‘सलिल’ भूल सब कुछ सिला क्या मिलेगा l
लगाया गले जो भि मेरा हुआ हैll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश l