II डगर आसान हो जाए II
सफर में बच के तू रहना कहीं ना रात हो जाए l
तेरी जो दौलते असबाब ही जंजाल हो जाए ll
ठिकाना ढूंढना अपना समय रहते यहां पर तुम l
कहीं ऐसा ना हो तनहाई कि चर्चा आम हो जाए ll
समय की है कमी सबको कभी होती नहीं पूरी l
जियो कुछ इस तरह से सब इसी में काम हो जाए ll
परिंदों को भि है शिकवा नहीं परवाज़ है पूरी l
रखो जो हौसला ऊंचा गगन भी पार हो जाए ll
समय की है सियासत और पहरा फजाओं का l
बड़ी है बंदिशे फिर भी आजादी आम हो जाए ll
कभी मुड़कर “सलिल” पीछे न देखो हाल तुम अपना l
निगाहें मंजिलों पर हो डगर आसान हो जाए ll
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश ll