II ठहर गया हूं मैं II
हर कोई गुजर जाता है, हवा के झोंके की तरह l
दुनिया की दौड़ में शायद ,ठहर गया हूं मैं lI
आज मुझसे भी किसी ने ,उसका पता पूछाl
जिसकी तलाश में खुद ही, भटक गया हूं मैं lI
सजाता हूं करीने से ,घर की चीजो कोl
शायद अंदर से कहीं, बिखर गया हूं मैंlI
संजय सिंह “सलिल”
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश l