II….जो गाते रहे हैं….II
गमों को छुपा के जो गाते रहे हैंl
अकेले में आंसू बहाते रहे हैं ll
ए लैला ए मजनू किताबी जो बातें l
अनाडी जगत में निभाते रहे हैं ll
कहीं फूल जिद में खिलाने की धुन हीl
वो कांटों पे बिस्तर लगाते रहे हैं ll
ए जीवन भि अपना बे मतलब गवाया l
लिखा रेत का खुद मिटाते रहे हैं ll
मेरी मान लो तो मोहब्बत न करना l
कई मर मिटे कितने जाते रहे हैं ll
‘सलिल’ बात पूरी ना होगी कभी भी l
बहाने वो कितने बनाते रहे हैं ll
संजय सिंह ‘सलिल’
प्रतापगढ़ ,उत्तर प्रदेश ll