II जीवन II
पहले मन के घोड़े पाले, छोड़े बिना लगाम l
अब धीरे-धीरे याद आ रहे, बचे अधूरे काम ll
ऐसा जीवन शुरू हुआ,एक तेरे मिल जाने से l
घर आंगन ही लगता अबतो,जैसे चारों धाम ll
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सुगंध तो दूरियां भी महका देती है l
गले मिलके ही खटास पता देती है ll
तेज़ नजरों से सुकून नहीं मिलता l
बंद पलके जन्नत का पता देती है ll
संजय सिंह सलिल
प्रतापगढ़ उत्तर प्रदेश